कभी किसी शहर में तनाव की ख़बर को मुहावरेदार भाषा में कहा जाता था कि हवा में ज़हर फैल गया है, लेकिन देश की राजधानी दिल्ली के लिए यह मुहावरा नहीं ख़ौफ़नाक हक़ीक़त है। दिसंबर में ये शहर दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर माना गया है। तमाम कोशिशों के बावजूद हालत में सुधार नहीं हुआ। एक दशक पहले चीन की राजधानी बीज़िंग का भी यही हाल था, लेकिन आज वहाँ स्थिति पूरी तरह क़ाबू में है। आख़िर भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता? और अगर नहीं कर सकता या कर पा रहा है तो फिर विश्वगुरु या दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दम भरने का क्या मतलब?

संसद में बीते दिनों वंदे मातरम पर बहस हुई तो कुछ सांसदों ने याद दिलाया कि राष्ट्रगीत में 'सुजलाम, सुफलाम् और मलयजशीतलाम’ कहा गया है लेकिन न दिल्ली का पानी साफ़ है, न यहाँ की हवा ही साँस लेने लायक़ है। यह कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं, दिल्ली की हवा के ज़हरीले होने का बयान था और इसे कोई झुठला नहीं सका।

दिसंबर में एक्यूआई 300-500 के बीच

दिसंबर में दिल्ली का AQI आमतौर पर 300-500 के बीच रहा जो गंभीर श्रेणी है। नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, गुरुग्राम यानी पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भीषण वायु प्रदूषण की चपेट में है। दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है जहाँ हवा में PM2.5 का स्तर WHO की सीमा से 20-30 गुना ज्यादा है।

PM2.5 का मतलब पार्टिकुलेट मैटर 2.5 है। पार्टिकुलेट मैटर हवा में मौजूद बहुत छोटे ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण हैं। इनमें इनकार्बनिक आयन्स, आर्गेनिक कार्बन से लेकर मेटल और मिनिरल डस्ट तक मिली होती हैं। हवा में मौजूद इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। ये इतने बारीक होते हैं कि नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते – एक मानव बाल की मोटाई से करीब 30 गुना पतले!

ये कण खतरनाक इसलिए हैं क्योंकि ये सांस के जरिए फेफड़ों में गहराई तक पहुंच जाते हैं और खून में घुल सकते हैं। इससे अस्थमा, हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारियां और यहां तक कि कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है कि PM2.5 का स्तर पचास से कम हो।

एक्यूआई को समझें

अब सवाल है कि एक्यूआई क्या है। एक्यूआई (AQI - Air Quality Index) यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक। यह एक नंबर है जो बताता है कि हवा कितनी साफ या प्रदूषित है। यह मुख्य रूप से PM2.5, PM10 जैसी श्रेणियों में मापा जाता है। ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों को मापकर AQI कैलकुलेट किया जाता है।

वैश्विक स्तर पर ज्यादातर देश US EPA का AQI स्केल इस्तेमाल करते हैं, जो 0 से 500 तक होता है। US EPA का पूरा नाम United States Environmental Protection Agency है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है, जिसकी स्थापना 2 दिसंबर 1970 को तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन द्वारा की गई थी। भारत में भी यही स्केल है। वैश्विक पैमाने पर AQI को 6 कैटेगरी में बांटा जाता है, हर एक का अपना रंग कोड होता है:

एक्यूआई का मानक

यानी दिल्ली आपातकालीन स्थिति में है। इसके बढ़ने का एक कारण तो नेताओं की ‘समझदारी’ भी है। बीते दिनों दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कहती पायी गयीं कि यह एक टेम्प्रेचर है या फिर दीवाली पर जमकर पटाखे चलाने को हिंदुत्व की विजय की तरह पेश किया गया। इसका असर तो दिल्ली पर होना ही था। बहरहाल, कुछ स्थायी कारण भी हैं जो दिल्ली की हवा ख़राब करते हैं-
  • पराली जलाना: पंजाब, हरियाणा और यूपी में किसान फसल अवशेष जलाते हैं। सर्दियों में हवा ठंडी और स्थिर होने से धुआं दिल्ली तक पहुंच जाता है। CPCB के अनुसार, ये 30-40% तक योगदान देता है।
  • वाहनों का धुआं: सड़क परिवहन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या 1.5 करोड़ से ज़्यादा है। यह संख्या मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के कुल वाहनों के बराबर है। पुरानी गाड़ियां, डीजल व्हीकल और ट्रैफिक जाम से NOx और PM2.5 बढ़ता है। ये 20-30% प्रदूषण का कारण है।
  • कंस्ट्रक्शन और रोड डस्ट: लगातार निर्माण कार्य से धूल उड़ती है, जो 30-40% PM का स्रोत है।
  • उद्योग और कोयला: आसपास के इंडस्ट्रियल एरिया और कोल बेस्ड पावर प्लांट से प्रदूषण।
  • सर्दियों का मौसम: ठंड में हवा नीचे रहती है, प्रदूषक फंस जाते हैं – इसे इनवर्शन कहते हैं।
ये सब मिलकर स्मॉग बनाते हैं, जो आंखों में जलन, खांसी और सांस की बीमारियां पैदा करता है।

विदेशी डिप्लोमैट्स की प्रतिक्रिया

ज़ाहिर है कि दिल्ली की हवा यहाँ रहने वालों की ज़िंदगी पर भारी पड़ रही है। दुनिया भर में बीते कुछ सालों से इसे लेकर काफी चर्चा हो रही है। भारत में रह रहे विदेशी राजनयिक खासतौर पर परेशान हैं। डिप्लोमैट्स कहते हैं कि सर्दियों में दिल्ली की हवा से सांस लेना मुश्किल है– आंखें जलती हैं, सिर दर्द होता है। नवंबर 2017 में कोस्टा रिका की राजदूत मैरिएला क्रूज़ अल्वारेज़ (Mariela Cruz Alvarez) ने दिल्ली के गंभीर प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी बीमारी (upper respiratory infection) हो जाने पर अस्थायी रूप से दिल्ली छोड़कर बेंगलुरु शिफ्ट कर लिया था। उन्होंने अपनी ब्लॉग पोस्ट में लिखा था कि दिल्ली की हवा "unbreathable" है और वे "Indian bronchitis" से पीड़ित हो गईं।

देशों ने एडवायजरी तक जारी कर दी

हाल ही में सिंगापुर हाई कमीशन ने एडवायजरी जारी करके अपने नागरिकों को कहा कि घर में रहें, मास्क पहनें, बच्चे और बुजुर्ग बाहर न निकलें। फ्लाइट्स भी प्रभावित हैं। UK और कनाडा ने भी ट्रैवल एडवायजरी में दिल्ली की हवा को हेल्थ रिस्क बताया।

लेकिन एक और टिप्पणी आयी है जिसमें यूँ तो सहानुभूति के स्वर हैं, लेकिन वह कई लोगों को चिढ़ाने वाली भी लग सकती है। दिल्ली में चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने X पर पोस्ट किया है। उन्होंने बीजिंग की कहानी की याद दिलाते हुए बताया है कि कैसे चीन ने राजधानी बीजिंग को प्रदूषण मुक्त बनाया है।

चीन प्रदूषण से कैसे निपटा?

यू जिंग ने दिल्ली और बीजिंग का हाल बताता एक्यूआई मैप पोस्ट किया। इसमें बीजिंग में एक्यूआई 67 और दिल्ली का 447 था। वाक़ई यह चीन की बड़ी सफलता है। 10-15 साल पहले बीजिंग की हालत दिल्ली से भी बदतर थी। 2010-2013 में बीजिंग को 'स्मॉग कैपिटल' कहा जाता था। AQI 500-1000 तक पहुंच जाता था। लेकिन चीन ने 'वार ऑन पॉल्यूशन' पॉलिसी घोषित की और कमाल कर दिखाया।

चीन ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए ये कदम उठाये-
  • कोल बर्निंग बंद की, कोल प्लांट्स बंद या गैस पर शिफ्ट।
  • 3000 से ज्यादा हैवी इंडस्ट्रीज बंद या शिफ्ट कीं।
  • व्हीकल्स पर सख्त नियम: पुरानी गाड़ियां फेज आउट, लाइसेंस प्लेट लॉटरी से नई गाड़ियां कंट्रोल, ऑड-ईवन, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा।
  • पब्लिक ट्रांसपोर्ट – मेट्रो और बसें बढ़ाईं।
  • रीजनल कोऑर्डिनेशन: आसपास के प्रांतों के साथ मिलकर काम।
2013 से 2025 तक बीजिंग में PM2.5, 60-70% कम हुआ। अब बीजिंग का AQI ज्यादातर 50-100 के बीच रहता है। UN रिपोर्ट्स में इस सफलता को मिसाल माना गया है।

चीनी मॉडल अपनाएँ या नहीं?

चीनी प्रवक्ता की ये पोस्ट वायरल है लेकिन राय विभाजित है। कुछ लोगों का कहना है कि चीनी मॉडल को अपनाना चाहिए, वहीं कुछ लोग चीन की इस उपलब्धि को भी षड्यंत्रों से जोड़ रहे हैं। खैर, सोशल मीडिया पर गंभीर चर्चा की क्या उम्मीद…लेकिन इतना तो तय है कि अगर ठान लिया जाये तो यह काम गैरमुमकिन नहीं है। जो बीजिंग में हो सका, वह दिल्ली में भी हो सकता है। पर पहले इसे मुद्दा तो माना जाये। 2014 के पहले जो मीडिया इस मुद्दे पर जमकर सरकार को खरी खोटी सुनाता था, अब वह किसी शर्मीले बच्चे की तरह कभी-कभी खाँस भर देता है और सर्दियों के कुछ महीनों को छोड़ दिया जाये तो इस पर आम जनता भी चिंता नहीं जताती। बल्कि सर्दियाँ शुरू होने के पहले दीवाली पर जमकर पटाखे चलाने को हिंदू धर्म की विजय के रूप में बताया गया।

पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था लेकिन इस बार दीवाली के ऐन पहले ग्रीन पटाखों के नाम पर सीमित छूट दी गयी तो जनता ने इसे असीमित बना दिया। जमकर पटाखे चले और उसके बाद खाँसी का जो दौर चला है, वह अब तक नहीं थमा। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ने कहा है कि प्रदूषण से निजात पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।

दिल्ली में डाक्टर बच्चों और बुज़ुर्गों को लेकर ख़ासतौर पर चिंतित हैं। उनका कहना है कि साँस की दिक़्क़त हो तो दिल्ली छोड़ देना ही ठीक होगा, यानी कोई इलाज कारगर नहीं है। कोई नहीं जानता कि दिल्ली की बर्बादी की ये कहानी कब और कैसे बदलेगी। हालात को सुधारने के लिए ज़रूरी है कि पहले स्वीकार किया जाये कि हालात ख़राब हैं। लेकिन जिन्हें लगता है कि भारत विश्वगुरु बन गया है वह विष फैलने की बात मान भी कैसे सकते हैं। यह झूठा आत्मविश्वास ही सबसे बड़ी समस्या है।