समझौता धमाका मामले में स्वामी असीमानन्द को 'क्लीट चिट' मिल गई है। सरकार अदालत के फ़ैसले को चुनौती नहीं देगी। ऐसा क्यों है कि मोदी सरकार आने के बाद से आतंकवाद से जुड़े कुछ ख़ास मामलों में, जिनमें आरएसएस से जुड़े लोगों के नाम हैं, प्रमुख अभियुक्त बरी हो रहे हैं। 'सत्य हिन्दी' ने इस मामले की गहरी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की है। इसकी पहली किस्त प्रकाशित की जा चुकी है और अब पेश है दूसरी किस्त।
क्या असीमानंद का क़बूलनामा पुलिस की यातना के कारण था जैसा कि बाद में उन्होंने और उनके वकीलों ने दावा किया? यदि हाँ तो असीमानंद गिरफ़्तारी के लंबे समय बाद तक भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वकीलों की सेवाएँ लेने में क्यों कतरा रहे थे?
असीमानंद : सीबीआई के राजा बालाजी मुझे हरिद्वार से दिल्ली और फिर दिल्ली से हैदराबाद लेकर गए। उन्होंने मुझे बताया कि बीजेपी के प्रदेश मंत्री रामचंद्र जी जो (हैदराबाद) हाई कोर्ट में वकील हैं, मुझसे मिलने आएँगे। लेकिन मुझे ज़मानत के लिए अर्ज़ी नहीं देनी चाहिए।
असीमानंद : मैं उनकी कस्टडी में जो था। ज़मानत बिल्कुल मत लेना, सीबीआई ने मुझे धमकाया और मजबूर किया कि मैं किसी भी तरह की क़ानूनी सहायता लेने से इनकार कर दूँ। मुझे उनकी बात माननी पड़ी। मैं हमेशा जंगलों में रहा और पुलिस को इतनी नज़दीक से कभी नहीं देखा था। उन्होंने धमकी दी कि वे मेरी माँ को पकड़कर ले आएँगे। ग़लत-ग़लत बात करने लगा। उसके बाद मैंने सोचा कि जिसने भी यह (बम कांड) किया, सही किया। मेरे मन में भी आया, चलो ठीक है। हिंदू के लिए तो अच्छा हुआ। लोगों में हिंदुत्व के ऊपर भाव आ जाए। मेरे साथ चाहे जो भी हो लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी लेने में ग़लत क्या है! मेरा जो होगा, सो होगा। फाँसी भी हो जाए तो देखा जाएगा।लेकिन मैंने किसी का नाम नहीं लिया। लोकेश उस मीटिंग में था इसलिए उसका नाम मुँह से निकल गया। सीबीआई चाहती थी कि मैं यह मान लूँ कि मैंने ही समझौता एक्सप्रेस धमाकों की योजना बनाई थी। (मैं बोलूँ कि) मैं कहीं नहीं गया, मैंने कुछ नहीं किया, बस योजना बनाई।
असीमानंद : उन्होंने मुझे 20 दिनों तक रखा और उसके बाद जेल में डाल दिया। (मैंने कहा) कैसे हुआ, मैं नहीं जानता। मेरी मुलाक़ात सुनील से हुई, सुनील ने ही सब किया, लेकिन कैसे किया, मुझे नहीं मालूम। सुनील का मर्डर हो चुका है। लेकिन योजना सारी मेरी बनाई हुई थी। फिर एनआईए मुझे जेल से ले गई। वे चाहते थे कि मैं फिर से अपना अपराध स्वीकार करूँ। यही बात फिर से कहूँ।
असीमानंद : हाँ, मुझे डर था लेकिन मैंने सोचा कि यह हिंदुओं के लिए अच्छा होगा। मैंने सोचा, हिंदुत्व के काम के लिए मेरा फाँसी भी हो जाए तो ठीक है। मैंने नहीं किया। पर हिंदू के लोगों में तो विचार आएगा कि करना चाहिए।
असीमानंद : हाँ, यह सच है कि उसमें मेरा नाम नहीं है। आपको मालूम है न कि मालेगाँव में क्या हुआ? मैं चार्जशीट में कहीं नहीं हूँ। वे जानते थे कि सुनील जोशी मेरे आश्रम में आया करता था। वह मध्य प्रदेश में हुए एक मर्डर मामले में फ़रार था। सो मैंने कहा कि मेरे आश्रम में आ जाओ और आराम से रहो। उस समय प्रज्ञा भी आश्रम के कामों से जुड़ी हुई थी और वह भी आती रहती थी। सुनील जोशी ने सारी प्लानिंग की, मेन वही है। उसके बाद तो उसकी हत्या ही हो गई।
असीमानंद : बीच के दो दिन जेल में गया, बाक़ी के टाइम सीबीआई वालों के साथ ही था - बीस-पचीस दिन।
असीमानंद : गुजरात में मैं हिंदुत्व के काम के लिए गया। और आपको क्या मैं बताऊँ, 2002 में जो गोधरा आया, गुजरात के उस आदिवासी एरिया में जो मुसलमानों का सफ़ाया किया, उसमें भी मैं बहुत ऐक्टिव रहा। पर उसमें मैं सामने नहीं आया था, इसीलिए मैं छूट गया। आदिवासी एरिया में जो काम किया है, वो डायरेक्ट आदिवासी ने ही किया। हम सामने नहीं आए। अभी तक वहाँ कोई वापस नहीं आया। बाक़ी सब जगह जो गए, वह वापस आए। यहाँ पर आ ही नहीं सकते। डांग में वह नहीं था, लेकिन पंचमहाल से उत्तर तक।
असीमानंद : सुनील जोशी और मैं बहुत क़रीब थे।
असीमानंद : उसकी लंबी दाढ़ी थी। अच्छा आदमी था वह। भजन-पूजा बहुत किया करता था। सुबह से शाम तक शबरी मंदिर में ही बैठा रहता था जबकि मैं जंगलों में घूमता रहता था। हम मीडिया के मार्फ़त बताना चाहते थे कि संकटमोचन मंदिर और दूसरे मंदिरों में जो हुआ है, हमने उसका बदला ले लिया है।हम इसपर विचार-विमर्श करते रहते थे। क्या नाम रखें (संगठन का)। मुसलमानों को भी लगे कि हम हिंदू लोग कर रहे हैं। इसका बदला तो लेना चाहिए और बताना चाहिए कि हम हिंदू लोगों ने किया है और इसीलिए संगठन का कुछ नाम लेकर हिंदू के साथ जुड़ा हुआ। और मीडिया को बताएँ कि हम हिंदू लोगों ने बदला लिया। बाक़ी जगह में जो हुआ उसके बारे में हम नहीं सोच रहे हैं। मंदिर में लगाया तो बदला लिया है और आगे भी लेंगे। नाम कोई नहीं रख पाए। और मीडिया को भी नहीं बता पाए। और बीच में सुनील गुज़र भी गया। इसलिए कभी मीडिया को बता नहीं पाए।इसलिए जब सीबीआई ने मुझे गिरफ़्तार किया तो मैंने सोचा कि यह सही समय है सबकुछ बताने का। मुझे पता था कि इसके लिए मुझे फाँसी भी हो सकती है। पर मेरी उम्र भी हो गयी।हिंदू की तरफ़ से भी कोई बताए, मैंने किया। मैंने और सुनील ने मिलकर किया। तो मैंने ख़ुद बताया, क्या पूछना है?वे पूछते रहे। यानी हैदराबाद धमाकों में भी आपका हाथ था? मैंने कहा, हाँ, सुनील और मैंने किया। लेकिन मुझे नहीं पता था कि कौन गया और सुनील की तरफ से किसने किया। सुनील तो गुज़र गया। मैंने संदीप (डांगे) का नाम बताया जिसको वे अभी तक नहीं पकड़ पाए हैं। मैं संदीप से ज़्यादा मिला नहीं था। सुनील मेरे साथ रहता था। मैंने सुनील से कहा कि हमको हैदराबाद और दूसरी जगहों पर बम लगाना है। सही भी हुआ है कि (उन्होंने) मंदिर में लगाया है तो हमने मसजिद में लगाया है।एक पुलिसवाला जो यह सब लिख रहा था - उसकी और मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी - बोला, ‘स्वामीजी, आप इतना सब मत लिखवाओ। मर जाएँगे। फाँसी मिलेगी।’ मैंने पूछा, ‘क्या तक़लीफ़ है?’तब एएसपी बालाजी जिसने मुझे गिरफ़्तार किया था और मेरे साथ एक ही कमरे में रहा था, बोला, ‘स्वामीजी, आप ऐसा बोलेंगे तो इतिहास बन जाएगा। (लेकिन) बात बस हमारे सामने नहीं बोलना, कोर्ट में जाकर बोल पाएँगे?’ मेरे पास कोई वकील नहीं था जो मुझे बोलता कि ऐसा मत करो। और मेरे मन में भी तब जोश था। उस समय मेरे पास कोई वकील नहीं थे और सीबीआई के अधिकारी भी चालाक थे। सो मैंने कहा, ‘हाँ।’वे मुझे दिल्ली लेकर आए। तब जज ने मुझसे पूछा, ‘क्या बता रहे हैं आप? यह सब सही है क्या? मैं लिखकर रख रहा हूँ यहाँ - कि आपको फाँसी हो सकती है, यह आपको पता है? यह मैं आपसे पूछ रहा हूँ, आप क्या जवाब देंगे?’ तो मैंने कहा, ‘हाँ, मैं (परिणामों के लिए) तैयार हूँ।’ संघ के वकीलों ने मुझे कहा, ‘आपको हम अब बचा नहीं पाएँगे।’ फिर उन्होंने कहा कि मैं एक बयान दूँ कि मुझे टॉर्चर किया गया। मैंने कहा, आपको जो लिखना है, लिख दो और मैंने साइन कर दूँगा। लेकिन सही में टॉर्चर नहीं हुआ है।
असीमानंद : संघ ने उस वक़्त जो तय किया, वो। अब वकील मेरे कन्फ़ेशन स्टेटमेंट को लेकर बहुत परेशान हैं। लेकिन मैंने किसी का नाम नहीं बताया। जिनका भी नाम बताया है, उनको वे गिरफ़्तार नहीं कर पाए। जिन दो लोगों का नाम बताया, वे दोनों फ़रार हैं। मैंने केवल सुनील जोशी का नाम लिया और चूँकि प्रज्ञा भी उस समय तक अरेस्ट हो गई थी, तो उसका नाम लिया और भरतभाई का।
असीमानंद : हाँ, उसने ऐसा कहा था। लेकिन मेरे पास पुलिस को बताने के लिए बचा ही क्या था? भरतभाई उसको हमारे बारे में सबकुछ पहले ही बता चुके हैं। उनको (संघ के वकीलों को) भी नहीं पता था कि भरतभाई सबकुछ बता चुके हैं। मेरा नाम ही सब जगह आ रहा था कि स्वामीजी ने यह बताया या स्वामीजी ने वह बताया। लेकिन वह सही नहीं था। भरतभाई ने हम लोगों के बारे में सबकुछ पहले ही बता दिया था। मेरे सामने बचने का कोई रास्ता ही नहीं था। सीबीआई के लोग जो कुछ भी कह रहे थे, उस सबका उनके पास सबूत था।
असीमानंद : उस समय? मैंने आपको पहले भी बताया है ना? मैंने सोचा, मैं प्रायश्चित्त करूँगा और जो भी सज़ा मिलेगी, वह स्वीकार कर लूँगा। सो वकील का क्या करना?
असीमानंद : सोचा कि वो सब जानते ही हैं। मैं भी सब जानता हूँ। बात तो सही है। जो होता है, सो ले (भुगत) लेंगे। इसमें क्या है? फिर वकील लेकर (कोर्ट) पहुँचने की ज़रूरत क्या है।