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महाराष्ट्र में क्यों तीनों सरकारी दलों की नींद उड़ी हुई है? 

कहते हैं तीन पहियों की गाड़ी चाहे वो ऑटो रिक्शा हो या सरकार उसका बैलेंस कभी भी बिगड़ सकता है। महाराष्ट्र में हर रोज यही हो रहा है। तीन दलों यानी बीजेपी, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट की मिलीजुली सरकार में एक साल हो गया है लेकिन अब तक पूरा मंत्रिमंडल ही नहीं बन पाया है और आगे बनने की कोई उम्मीद भी नहीं दिखती है। तीन दलों की ये सरकार लगातार अपने ही बोझ तले दबती जा रही है इसलिए हर रोज ख़बर उड़ती है कि ये सरकार कभी भी गिर सकती है।

2019 के चुनाव के बाद बीजेपी ने अचानक अजित पवार के साथ सुबह पांच बजे ही सरकार बना ली तो वो तीन दिन भी नहीं चल पायी। उसके बाद शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी की सरकार उद्धव ठाकरे की लीडरशिप में बनी। कुछ दिन बाद ही कोरोना शुरू हो गया तो किसी तरह सरकार 2022 तक खिंच गयी लेकिन जून 2022 में सरकार में कई मतभेद सामने आते गये और आख़िरकार बीजेपी ने शिवसेना को तोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बना ली। आठ महीने तो ये सरकार ठीक चली और जब ये लगने लगा कि सरकार कुछ स्थिर हो रही है तो बीजेपी ने अचानक अजित पवार को भी एनसीपी से तोड़कर सरकार में शामिल कर लिया। बस उसके बाद से सरकार में तीन तिगाड़ा और काम बिगाड़ा शुरू हो गया।

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पहले तो मंत्रिमंडल में किसको क्या मिले, इसको लेकर खींचतान चलती रही तो कई दिनों तक मंत्री बन ही नहीं पाये, बाद में जब विस्तार हुआ तो अब तक कुल 42 मंत्री पद में से केवल 28 ही भर पाये हैं बाक़ी अब भी कई महीनों से खाली है। पहले सत्ता का बँटवारा केवल बीजेपी और एकनाथ शिंदे के साथ आये क़रीब 45 विधायकों में होना था लेकिन अब अजित पवार भी सरकार में आ गये और उनका भी दावा है कि उनके पास भी इतने ही विधायक हैं सो खींचतान शुरू हो गयी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लगने लगा है कि अजित पवार को लाकर उनकी ताक़त कम की गयी है इसलिए पहले तो वो नाराज़ होकर तीन दिन अपने पैतृक गांव चले गये और आने के बाद वीडियो जारी कर कह दिया कि मुझे कोई हटा नहीं सकता। मैं ही अगला मुख्यमंत्री बनूंगा।

उधर बीजेपी की तरफ से कार्यकर्ता नाराज़ हैं कि उनको कुछ नहीं मिल रहा और बस वो मेहनत कर रहे हैं जबकि मलाई तो एकनाथ शिंदे और अजित पवार के मंत्री काट रहे हैं।  बीजेपी की तरफ़ से भी कहा जा रहा है कि जल्दी ही बीजेपी का सीएम बनेगा क्योंकि 103 विधायकों के साथ वो सबसे बड़ी पार्टी है। मुख्यमंत्री फिर से देवेन्द्र फडणवीस ही बनेंगे तो तीसरी तरफ़ अजित पवार कह रहे हैं कि सीएम तो वो भी बनना चाहते हैं और मौक़ा मिला तो पीछे नहीं हटेंगे यानी एक कुर्सी के तीन दावेदार हो गये हैं। इसका असर सरकार पर साफ़ दिखाई दे रहा है। सरकार में शामिल बीजेपी के अलावा दोनों दल एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के मंत्री कई ऐसे फ़ैसले ले रहे हैं और बयान दे रहे हैं कि उनका बचाव करना मुश्किल हो गया है।

पिछली सरकार में फ़ैसला हुआ था कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना यानी बीमा योजना का विस्तार किया जाये और यूनायटेड इंश्योरेंस के साथ ही काम किया जाये लेकिन नया मंत्री बनते ही शिंदे गुट के मंत्री ने कैबिनेट का फैसला ही पलट दिया और इंश्योरेंस को ख़त्म करके सीधे बेनिफिट वाले इंश्योरेंस को लागू करने को कह दिया। असल में इंश्योरेंस में भुगतान की जिम्मेदारी कंपनी की होती है और उसे कमीशन मिलता है लेकिन इंश्योरेंस में भुगतान सरकार सीधे करती है किसी भी इलाज का। अब निजी अस्पतालों को भरोसा नहीं कि सरकार पैसा देगी इसलिए वो मरीज ले ही नहीं रहे। सबको सरकारी अस्पताल जाने को कहा जा रहा है। जाहिर है कभी भी ये पूरा मामला भरभराकर गिर सकता है। 
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दूसरा उदाहरण प्याज की कीमतों का है। दो महीने से अंदेशा जताया जा रहा था और हर साल सितंबर अक्टूबर में प्याज के दाम बढ़ते हैं। जैसे ही किसानों को थोड़ा फायदा दिखने लगा तो टमाटर के 200 रुपये तक भाव से घबराई केंद्र सरकार ने प्याज पर चालीस प्रतिशत एक्सपोर्ट शुल्क बढ़ा दिया जिससे किसान भड़क गये। पूरे प्रदेश में आंदोलन होने लगा और सभी मंडी बंद हो गयीं। तब सरकार की नींद खुली और 2500 रुपये क्विंटल के भाव से प्याज खरीदने को कहा गया है। लेकिन किसान अब भी जमकर नाराज है। इस बीच तीनों दलों में श्रेय लेने की होड़ लग गयी। जापान के दौरे पर गये उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बयान दिया कि उन्होंने कई बार कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल से बात की और तब प्याज खरीदी का फैसला किया गया। तब तक यहाँ अजित पवार गुट के मंत्री धनंजय मुंडे दिल्ली पहुंच गये और कहा कि पीयूष गोयल से वो मिले इसलिए ये फैसला लिया गया। इन सबसे अलग सीएम यहां मुंबई में प्याज किसानों से मिले और कहा कि उन्होंने किसानों को मना लिया है। अब जनता किसकी बात पर विश्वास करे, समझ नहीं आ रहा है।

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एक और उदाहरण जब बीजेपी और शिवसेना शिंदे गुट की सरकार थी तो फैसला किया गया था कि कोऑपरेटिव सोसायटी में हर जगह सरकार का एक व्यक्ति हो ताकि नकेल कसी जा सके। ये एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं को कंट्रोल करने की कवायद थी लेकिन अजित पवार जैसे ही वित्त मंत्री बने उन्होंने कैबिनेट का ये फ़ैसला रद्द कर दिया और उल्टा बीजेपी नेताओं के शक्कर कारखानों को कह दिया कि कर्ज लेते समय वित्त मंत्रालय की मंजूरी ली जाये। अब इस पर तीनों दलों में घमासान हो गया है। कैबिनेट की बैठक में भी तीनों दल खुलकर लड़ रहे हैं। पिछली बैठक में अजित पवार ने तो सीधे सीएम शिंदे के इलाक़े में ही एक अस्पताल में दो दिन में 25 मौत का मामला उठा दिया तब सीएम कुछ जवाब नहीं दे पाये तो फिर उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने बात को टालने के लिए अगला विषय आगे कर दिया। अब अफसर परेशान हैं कि किसकी सुनें और किसकी नहीं। इस बीच एक सर्वे ने इन तीन दलों की नींद उड़ा दी है जिसमें कहा गया है कि लोकसभा चुनाव होने पर तीन दलों की महायुती यानी कांग्रेस, उद्धव शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को 48 में से 30 तक सीट मिल सकती है जबकि पिछली बार बीजेपी शिवसेना गठबंधन को 48 में से 42 सीट मिल गयी। इसका मतलब है कि बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है। जाहिर है इसने तीनों की नींद उड़ा दी है।
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संदीप सोनवलकर
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