जून 2025 में ईरान और इसराइल के बीच हुए युद्ध ने वैश्विक सुरक्षा को हिलाकर रख दिया। इसराइल ने ईरान के नतांज़, फोर्डो, और इस्फहान परमाणु केंद्रों पर बिना उकसावे के हमले किए, जिसमें अमेरिका ने भी GBU-57 बंकर-बस्टर बमों का इस्तेमाल किया। जवाबी कार्रवाई में ईरान ने इसराइल के तेल अवीव, हाइफा और कतर में अमेरिकी सैन्य अड्डों पर मिसाइलें दागीं। इस युद्ध में सैकड़ों लोग मारे गए, और ईरान की परमाणु सुविधाओं को भारी नुकसान पहुंचा।
हमले का बहाना IAEA की 12 जून 2025 की रिपोर्ट थी, जिसमें दावा किया गया कि ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का उल्लंघन किया और उसके पास 60% तक संवर्धित यूरेनियम है, जो 6-9 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त है। लेकिन क्या यह रिपोर्ट युद्ध का कारण थी, या महज एक बहाना?
IAEA क्या है?
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की स्थापना 29 जुलाई 1957 को हुई थी। इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है, और वर्तमान में इसके महानिदेशक राफेल ग्रॉसी हैं। 178 सदस्य देशों वाली यह संयुक्त राष्ट्र की स्वायत्त संस्था परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए काम करती है। इसके तीन मुख्य कार्य हैं:
निरीक्षण (Safeguards): परमाणु सुविधाओं की निगरानी ताकि कोई देश परमाणु हथियार न बनाए। 2025 में IAEA ने 181 देशों में 2,114 निरीक्षण किए।
सुरक्षा मानक (Safety Standards): परमाणु संयंत्रों और रेडियोधर्मी सामग्री की सुरक्षा के लिए मानक बनाना।
तकनीकी सहयोग (Technical Cooperation): स्वास्थ्य, कृषि, और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग में सहायता, जैसे कैंसर उपचार के लिए LINAC मशीनें।
IAEA का संगठनात्मक ढांचा तीन मुख्य निकायों पर आधारित है: बोर्ड ऑफ गवर्नर्स, जनरल कॉन्फ्रेंस, और सचिवालय, जिसमें 2,560 कर्मचारी छह विभागों में काम करते हैं। इसका मुख्यालय वियना में है, साथ ही टोरंटो, टोक्यो, न्यूयॉर्क, जेनेवा और अन्य स्थानों पर कार्यालय और अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं।
हिरोशिमा का सबक़ और IAEA
1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा (6 अगस्त) और नागासाकी (9 अगस्त) पर परमाणु बम गिराए। हिरोशिमा पर गिराये गये "लिटिल बॉय" और नागासाकी पर "फैट मैन" ने लाखों लोगों की जान ले ली। तापमान 6,000 डिग्री तक पहुंचा, शहर आग के गोले में तब्दील हो गए। कुल तीन लाख लोगों की जान गयी जिनमें एक लाख तुरंत मरे और दो लाख बाद में रेडियेशन से कैंसर से। यह वह भयावहता थी जिसने परमाणु हथियारों के खतरे को दुनिया के सामने ला दिया। विश्वयुद्ध समाप्त होने पर शीतयुद्ध का दौर शुरू हुआ और 1949 में सोवियत संघ ने कजाकिस्तान के सेमिपालाटिंस्क में अपना पहला परमाणु बम "फर्स्ट लाइटनिंग" (RDS-1) का परीक्षण किया, जिसने अमेरिका के परमाणु एकाधिकार को तोड़ा। इसके बाद 1953 में सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का भी परीक्षण किया।
1953 में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर ने "Atoms for Peace" भाषण में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की वकालत की। इसी विचार से IAEA का गठन हुआ। यह एजेंसी परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी।
ईरान और IAEA
ईरान 1970 में NPT का सदस्य बना, और तब से IAEA उसकी परमाणु गतिविधियों की निगरानी करती रही। 2015 के JCPOA समझौते के तहत ईरान ने अपनी यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों को सीमित किया था, जिसकी निगरानी IAEA ने की। लेकिन 2018 में अमेरिका के इस समझौते से हटने के बाद ईरान ने संवर्धन बढ़ाया, जिससे तनाव बढ़ा।
जून 2025 के युद्ध में ईरान के परमाणु केंद्रों को भारी नुकसान हुआ। IAEA के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने कहा कि युद्ध के कारण निरीक्षण रुक गया, जिससे स्थिति का आकलन मुश्किल हो गया। इसके जवाब में ईरानी संसद ने 22 जून 2025 को IAEA के साथ सहयोग निलंबित करने का विधेयक पारित किया। ईरान का तर्क है कि NPT का सदस्य होने के बावजूद उस पर हमला हुआ, जबकि उसका कोई परमाणु हथियार कार्यक्रम नहीं है।
इसराइल पर चुप्पी
ईरान के उलट, इसराइल ने NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए और अपनी डिमोना परमाणु सुविधा को IAEA के निरीक्षण के लिए नहीं खोला। माना जाता है कि इसराइल के पास 90 से 200 परमाणु हथियार हैं, लेकिन उसने इसकी कभी पुष्टि या खंडन नहीं किया। 1960 के दशक में फ्रांस की मदद से डिमोना में रिएक्टर बनाया गया, और 1969 में अमेरिका के साथ गुप्त समझौते के तहत इसराइल के परमाणु कार्यक्रम को नजरअंदाज किया गया।
IAEA ने 2009 में इसराइल से अपनी सुविधाएं निरीक्षण के लिए खोलने की मांग की, लेकिन यह गैर-बाध्यकारी था, और इसराइल ने इसे खारिज कर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दोहरा मापदंड है—ईरान जैसे NPT सदस्यों पर कड़ी निगरानी होती है, जबकि इसराइल जैसे गैर-सदस्यों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
IAEA की सीमाएँ
IAEA स्वयं कोई सजा नहीं दे सकती। अगर कोई देश इसका पालन नहीं करता, तो यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को रिपोर्ट भेजती है, जो प्रतिबंध या सैन्य कार्रवाई जैसे कदम उठा सकती है। ईरान पर पहले भी कई बार आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन इसराइल जैसे देशों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह IAEA की सीमाओं को उजागर करता है।
संकट में पृथ्वी?
विश्व में लगभग 12,500 परमाणु हथियार हैं, जिनमें रूस (5,800), अमेरिका (5,200), और चीन (500) के पास सबसे ज्यादा हैं। हिरोशिमा और नागासाकी के बम 15-20 किलोटन के थे, जबकि आज के बम 100 किलोटन से 1 मेगाटन तक की ताकत रखते हैं—50-100 गुना ज्यादा विनाशकारी।
ईरान के पास अभी परमाणु हथियार नहीं हैं, लेकिन उसके पास 400 किलोग्राम 60% संवर्धित यूरेनियम होने की बात कही जाती है, जिसे युद्ध से पहले सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। यह संकेत देता है कि ईरान अपनी परमाणु क्षमता को पुनर्जनन की कोशिश कर सकता है, जिससे परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ेगा।
ईरान-इसराइल युद्ध ने IAEA की सीमाओं को उजागर किया है। इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं, और इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने की ज़रूरत है। अगर परमाणु हथियारों की होड़ को नहीं रोका गया, तो पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।