बिहार की सियासत में हलचल है! असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर महागठबंधन में शामिल होने की गुहार लगाई है, लेकिन आरजेडी के मनोज झा ने तीखा जवाब देकर दरवाजा लगभग बंद कर दिया। कांग्रेस के तारिक अनवर ने भी सतर्क रुख़ अपनाया है। सवाल उठ रहा है कि क्या एआईएमआईएण का साथ लेना बीजेपी को 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का हथियार दे देगा? आखिर ओवैसी का यह दांव बिहार के सियासी समीकरण को कैसे बदल सकता है?

इस राजनीतिक हलचल की शुरुआत तब हुई जब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई। एआईएमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने इस पत्र में कहा है कि उनकी पार्टी महागठबंधन में शामिल होकर 'सेकुलर वोटों' को बँटने से रोकना चाहती है। पत्र में यह भी जोड़ा गया कि वोटों का बँटवारा सांप्रदायिक ताक़तों, खासकर बीजेपी, को फायदा पहुँचा सकता है। इसने पहले भी 2020 और 2024 में महागठबंधन के साथ गठजोड़ की कोशिश की थी, लेकिन तब बात नहीं बनी थी।
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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज की 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटें जीतीं। हालाँकि, बाद में चार विधायकों ने आरजेडी में शामिल होने का फ़ैसला किया, जिससे एआईएमआईएम की स्थिति कमजोर हुई। इस बार, ओवैसी की पार्टी साफ़ तौर पर गठबंधन के ज़रिए अपनी स्थिति मज़बूत करना चाहती है। 

आरजेडी ने इनकार कर दिया!

आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने एआईएमआईएम की पेशकश पर कड़ा रुख अपनाया। एएनआई से उन्होंने कहा, 'असदुद्दीन ओवैसी का जनाधार हैदराबाद में है। बिहार में उनके चुनाव लड़ने से क्या होता है, यह ओवैसी और उनके सलाहकार अच्छी तरह जानते हैं। अगर उनकी मंशा बीजेपी की नफ़रत वाली राजनीति को हराने की है, तो कई बार न लड़ने का फ़ैसला भी उतना ही ज़रूरी होता है।'

मनोज झा का बयान एआईएमआईएम को महागठबंधन में शामिल करने के प्रति आरजेडी की अनिच्छा को दिखाता है। तो क्या आरजेडी इसके शामिल करने के नुक़सान को लेकर आशंकित है?

आरजेडी के एक अन्य प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने एआईएमआईएम को बीजेपी की B-टीम करार देते हुए कहा कि बिहार की जनता तेजस्वी यादव की सरकार बनाने को तैयार है और सेकुलर वोटों में कोई बिखराव नहीं होगा। तो क्या आरजेडी को डर है कि एआईएमआईएम का गठबंधन में शामिल होना उनके पारंपरिक मुस्लिम-यादव समीकरण को कमजोर कर सकता है।

आरजेडी की रणनीति साफ़ है कि वह अपने मुस्लिम-यादव वोट बैंक को मजबूत रखना चाहता है। माना जा रहा है कि तेजस्वी यादव सीमांचल को अपने राजनीतिक संदेश का केंद्र मानते हैं और एआईएमआईएम को गठबंधन में शामिल करने से इस क्षेत्र में आरजेडी की सीटें कम हो सकती हैं। आरजेडी को यह भी डर है कि एआईएमआईएम का साथ लेने से बीजेपी को धार्मिक ध्रुवीकरण का मौका मिल सकता है।
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कांग्रेस का सतर्क रुख

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कटिहार से सांसद तारिक अनवर ने एआईएमआईएम की पेशकश पर सतर्क प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, 'महागठबंधन का फ़ैसला सामूहिक रूप से लिया जाएगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सेकुलर वोटों का बंटवारा न हो, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि गठबंधन में शामिल होने वाली पार्टी की मंशा और प्रभाव क्या होगा।' 

बीजेपी को हमले का मौका मिलेगा?

एआईएमआईएम का महागठबंधन में शामिल होना बीजेपी के लिए एक बड़ा राजनीतिक अवसर हो सकता है। बीजेपी पहले ही एआईएमआईएम को वोट कटवा और आरजेडी की B-टीम बताकर प्रचार कर रही है। अगर एआईएमआईएम महागठबंधन का हिस्सा बनती है, तो बीजेपी इसे 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का मुद्दा बनाकर हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश कर सकती है। बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 52% वोट मिले थे, जबकि महागठबंधन को 42%। 

बीजेपी को यह भी उम्मीद है कि यदि एआईएमआईएम को महागठबंधन में जगह नहीं मिली, तो ओवैसी इसका प्रचार करेंगे कि आरजेडी और कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को ठुकराया, जिससे मुस्लिम वोट बंट सकते हैं।

सियासी समीकरण क्या है

बिहार में एआईएमआईएम का प्रभाव मुख्य रूप से सीमांचल क्षेत्र तक सीमित है, जहां मुस्लिम आबादी 30-40% है। 2020 में एआईएमआईएम की जीत ने दिखाया कि वह इस क्षेत्र में आरजेडी के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। लेकिन आरजेडी के लिए मुस्लिम-यादव समीकरण उसकी सत्ता की कुंजी है, और वह इसे किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं करना चाहता।
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एआईएमआईएम के लिए भी यह एक जोखिम भरा दांव है। अगर महागठबंधन उनकी पेशकश को ठुकराता है तो वे अकेले लड़ने की धमकी दे रहे हैं। लेकिन अकेले लड़ने से उनकी जीत की संभावना कम हो सकती है। इसके अलावा ओवैसी की छवि को लेकर बिहार में ध्रुवीकरण की आशंका है, जो एनडीए को फायदा पहुंचा सकती है। एक तथ्य यह भी है कि अगर आरजेडी एआईएमआईएम को शामिल करता है तो सीट बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि एआईएमआईएम सीमांचल की 10-15 सीटों पर दावा कर सकती है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख नजदीक आने के साथ ही यह देखना दिलचस्प होगा कि लालू प्रसाद यादव इस पेशकश पर क्या फ़ैसला लेते हैं। क्या वे एआईएमआईएम को गठबंधन में शामिल करेंगे, या तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी अपने पारंपरिक वोट बैंक के दम पर अकेले मैदान में उतरेगा?