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बिहार चुनाव : नीतीश कुमार का प्लान 'बी' और बाकी पिक्चर

जदयू के लिए स्पष्ट संकेत माना जा रहा है कि वह नीतीश कुमार को अब मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहता। लेकिन क्या नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं देखने की यह इच्छा लोजपा की है या इसमें बीजेपी भी शाामिल है, क्योंकि लोजपा हमेशा बीजेपी से अपने अच्छे रिश्ते का हवाला देती है, सवाल यह है।
समी अहमद

प़त्रकारिता से राजनीति में आये जदयू के एक युवा नेता ने रविवार की देर रात अपने फ़ेसबुक पर एक वाक्य का संदेश दिया है- 'पिक्चर अभी बाकी है।'

यह संदेश बिहार विधानसभा चुनाव लोक जनशक्ति पार्टी के नीतीश कुमार के नेतृत्व में नहीं लड़ने और इस बहाने एनडीए से बाहर होने के फ़ैसले पर आया है।

मतदान के अंतिम दिन यानी 7 नवंबर तक जनता दल यूनाइटे़ड के नेता इस 'पिक्चर' के बारे में आधिकारिक रूप से शायद ही कुछ बोलें, लेकिन समझने वाले समझ रहे कि यह नीतीश कुमार के प्लान 'बी' की ओर इशारा है। तब यह सवाल भी पैदा होगा कि क्या नीतीश कुमार इस हद तक जा सकते हैं कि वे सातवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने का लोभ संवरण कर जाएं?
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क्या है प्लान 'बी'?

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को कहा कि कुछ भी हो सकता है। कुछ भी का मतलब कुछ भी। 

नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के 'चाणक्य' कहे जाते हैं, लेकिन कई बार उन्हें चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु वाली स्थिति का सामना करना पड़ा है। 2015 में लालू प्रसाद के आरजेडी के साथ विधानसभा चुनाव लड़कर उन्होंने अपने उसी प्लान के बारे में परिचय दिया था। जदयू के कार्यकर्ता कहते हैं कि नीतीश जब तक चुप रहें तो समझिए कि वे प्लान 'बी' पर काम कर रहे हैं। 

फ़िलहाल उनके प्रवक्ता और अन्य पार्टी नेता माहौल तैयार करेंगे।

जदयू के प्रवक्ता एनडीए से लोजपा के निकलने और बीजेपी के ख़िलाफ़ उम्मीदवार नहीं खड़ा करने के उसके फ़ैसले पर अभी बहुत ही सधे हुए बयान दे रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार पर लोजपा के हमले का वे तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे रहे हैं।

वैचारिक मतभेद?

लोजपा ने बीजेपी के ख़िलाफ़ प्रत्याशी नहीं देने और जदयू का मुक़ाबला करने की नीति पर बहुत ही दिलचस्प बयान दिया है। उसका कहना है कि वह ऐसा जदयू से वैचारिक मतभेद के कारण कर रही है। इसके जवाब में जदयू के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी पूछते हैं कि लोजपा के ऐसे क्या वैचारिक मतभेद हैं और वे लोकसभा चुनाव के दौरान क्यों नहीं थे, जब उनकी पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन में नीतीश कुमार ने चुनावी भाषण दिये थे। उनका कहना है कि लोजपा अपने वैचारिक मतभेद बताए।
लोजपा के बयान और बीजेपी की उस पर चुप्पी नीतीश कुमार और जदयू के लिए कई स्पष्ट संकेत हैं। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने नीतीश कुमार सरकार पर खुलकर हमले किये हैं।

निशाने पर नीतीश?

उन्होंने नीतीश कुमार की सात निश्चय योजना को जदयू की योजना बताकर न्यूनतम साझा कार्यक्रम की मांग की। लोजपा की ओर से सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये। इन सबका मुक़ाबला करने के लिए बीजेपी ने जदयू को अकेले रख छोड़ा है।
चिराग पासवान ने एक बार यह भी पूछा था कि जब सरकार में उनकी बात अभी नहीं सुनी जा रही तो एनडीए की अगली सरकार में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने पर कैसे सुनी जाएगी। यह जदयू के लिए स्पष्ट संकेत माना जा रहा कि वह नीतीश कुमार को अब मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहती। 
क्या नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं देखने की यह इच्छा लोजपा की है या इसमें बीजेपी भी शाामिल है, सवाल यह है। लोजपा हमेशा बीजेपी से अपने अच्छे रिश्ते का हवाला देती है।

बीजेपी की शह?

जदूय के नेता अंदरूनी तौर पर मानते हैं कि इस खेल में बीजेपी शामिल है, लेकिन वह सामने नहीं आना चाहती। रविवार को नीतीश कुमार का नेतृत्व अस्वीकार करने और जदयू के ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा पर भी बीजेपी के नेता कुछ नहीं बोल रहे। जदयू ने हमेशा यह कोशिश है कि बीजेपी का नेतृत्व बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा माने। इसके जवाब में अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा तक बिहार के दौरे में यह घोषणा करते रहे हैं कि बिहार में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा।

लोजपा के महासचिव अब्दुल खलिक का कहना है कि बिहार में लोजपा और बीजेपी की सरकार बनेगी। इस बाबत पूछे जाने पर बीजेपी के एक पदाधिकारी ने सिर्फ इतना कहा कि बीजेपी-जदयू मजबूती से चुनाव लड़ेंगे।

मोदी के हाथ मजबूत करेंगे चिराग

चिराग पासवान और लोजपा के दूसरे नेता बीजेपी से अपने संबंधों को मजबूत बताते हुए कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री मोदी के हाथों को मजबूत करेंगे। बीजेपी के साथ और जदयू के विरोध की इस नीति के बारे में जदयू के नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहे। उनका एक नीति वाक्य रहता है कि बीजेपी और जदयू बड़े दल हैं और दोनों मजबूती से चुनाव लड़ेंगे। 

अलबत्ता जदयू के नेताओं का कहना है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व लोजपा के इस जदयू विरोध नीति का मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने उठाएंगे।

इस दाँवपेच में जदयू अपने विकल्पों पर माथापच्ची करने को मजबूर हो गया है। पार्टी नेताओं का मानना है कि अब बीजेपी और एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान करना मुमकिन नहीं रह गया है। उनके पास पहला विकल्प यह है कि अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश दें कि उन्हें बीजेपी के उम्मीदवारों को किस हद तक सहयोग करना है। दूसरा विकल्प चुनाव परिणाम के बाद का है। 
अब सवाल यह है कि क्या जदयू 2015 के चुनाव पूर्व वाली सोच के साथ अपना प्लान 'बी' बना रहा है? क्या नीतीश कुमार बीजेपी-लोजपा की किसी चाल से बचने के लिए जदयू को हर स्थिति के लिए तैयार कर सकते हैं? क्या तेजस्वी यादव इस प्लान बी का हिस्सा बनने को तैयार होंगे?
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