Bihar Election 2025: उत्तर बिहार में क्या इस बार भी कांटे का मुकाबला होगा। पिछले आंकड़े तो यही बताते हैं। उत्तर बिहार में अगर एनडीए या महागठबंधन में जो भी बेहतर प्रदर्शन कर ले गया, वो सत्ता के करीब पहुंच सकता है।
बिहार चुनाव 2025 के लिए तारीखें और पूरा चुनाव कार्यक्रम घोषित हो चुका है। इसके बाद जो सवाल आमतौर पर होता है कि किस इलाके में कितनी सीटें और किस तरह के समीकरण उसे प्रभावित करेंगे। इन समीकरणों और उठापटक को समझना आसान नहीं है। आज हम उत्तर बिहार की बात करते हैं जहां विधानसभा की 58% सीटें हैं।
उत्तर बिहार में 140 सीटें हैं, जिनमें सारण (24), तिरहुत (49), दरभंगा (30), कोसी (13) और पूर्णिया (24) शामिल हैं। दक्षिण बिहार में 103 सीटें हैं, जिनमें भागलपुर (12), मुंगेर (22), मगध (26), पटना (21) और भोजपुर (22) शामिल हैं। उत्तर बिहार में कुल 58% सीटें हैं और राज्य की 70% से अधिक मुस्लिम आबादी यहीं निवास करती है। पूर्णिया में 46% आबादी मुस्लिम है, जबकि तिरहुत और दरभंगा में यह राज्य औसत (18%) के बराबर है। यही वजह है कि उत्तर बिहार में चुनाव ध्रुवीकरण से प्रभावित होता है। पिछले चुनाव में एनडीए ने जमकर ध्रुवीकरण यहां कराया था।
तिरहुत और दरभंगा में उच्च जाति हिंदुओं की आबादी 11% है, जबकि कोसी में यादव आबादी सबसे अधिक (22%) है। अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी उत्तर और दक्षिण बिहार में लगभग बराबर है, जिसमें मगध में सबसे अधिक 31% एससी आबादी है। पटना और भोजपुर में भी एससी आबादी 21-22% है। उत्तर बिहार में कोसी में सबसे अधिक दलित आबादी (21%) है।
दक्षिण बिहार के पटना, मगध और भोजपुर में यादव आबादी अधिक है, साथ ही उच्च जाति और कुर्मी-कोइरी आबादी भी यहाँ प्रमुख है। सारण, मुंगेर और दरभंगा में अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी सबसे अधिक है। आबादी की यही गतिशीलता सभी राजनीतिक दलों के टिकट वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
2020 के चुनाव नतीजों ने चौंकाया था
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 243 में से 125 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं। दोनों के बीच वोट का अंतर सिर्फ 12,000 था। एनडीए ने पांच क्षेत्रों में बढ़त बनाई, महागठबंधन ने तीन में, और दो क्षेत्रों में कांटे की टक्कर देखी गई। वोट शेयर के लिहाज से एनडीए की सबसे बड़ी बढ़त कोसी (+7%) में थी, जबकि महागठबंधन भोजपुर (+12%) में आगे रहा। यानी महागठबंधन भोजपुर में एनडीए के मुकाबले बहुत ज्यादा आगे रहा था। जबकि एनडीए कोसी में महागठबंधन के मुकाबले आगे ज़रूर रहा लेकिन भोजपुर के मुकाबले बड़ा गैप रहा।
सीमांचल में ओवैसी की वजह से एनडीए को बढ़त मिली थी
उत्तर बिहार में एनडीए ने 140 में से 86 सीटें जीतीं। पांच क्षेत्रों में से सारण को छोड़कर सभी में एनडीए आगे रहा, जिसमें मुस्लिम-बहुल पूर्णिया भी शामिल है। सीमांचल (पूर्णिया क्षेत्र) में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने विपक्षी वोटों को 11% हिस्सेदारी के साथ बांटा, जिससे एनडीए को बढ़त मिली। दक्षिण बिहार में महागठबंधन ने 103 में से 61 सीटें जीतीं। भोजपुर और मगध में महागठबंधन आगे रहा, भागलपुर में एनडीए ने बढ़त बनाई, जबकि पटना और मुंगेर में कड़ा मुकाबला देखा गया।
भारी मुस्लिम आबादी के बावजूद, उत्तर बिहार में ध्रुवीकरण के कारण महागठबंधन पिछड़ गया। विश्लेषकों का कहना है कि यह हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का नतीजा था। दक्षिण बिहार में कम मुस्लिम आबादी के कारण ध्रुवीकरण का प्रभाव कम रहा और जातिगत समीकरणों ने महागठबंधन को लाभ पहुंचाया।
2024 में एनडीए भारी पड़ा
2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने अपनी बढ़त को 125 सीटों में से 110 तक बढ़ा लिया। इस तरह लोकसभा चुनावों में एनडीए ने नौ में से सात क्षेत्रों में बढ़त बनाई, जबकि महागठबंधन केवल तीन में आगे रहा। उत्तर बिहार में एनडीए ने 140 में से 116 सीटों पर बढ़त बनाई, जो 2020 की तुलना में 30 अधिक थी। एनडीए ने सारण को महागठबंधन से छीन लिया, जबकि महागठबंधन ने पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पूर्णिया में बढ़त बनाई। दक्षिण बिहार में भी एनडीए 57 में से 46 पर आगे रहा।
2025 में महागठबंधन की रणनीति
उत्तर बिहार, खासकर तिरहुत और दरभंगा, जहां बिहार की एक-तिहाई सीटें हैं, में जीत के बिना महागठबंधन के लिए एनडीए को हराना मुश्किल होगा। तिरहुत पारंपरिक रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का गढ़ रहा है। बीजेपी के पास 69 मजबूत सीटें हैं, जिनमें से आधी तिरहुत और दरभंगा में हैं। जेडीयू की 73 मजबूत सीटों में से 55% उत्तर बिहार में हैं।
महागठबंधन को ध्रुवीकरण के बजाय बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। कम मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन इससे मुस्लिम समुदाय में पहले से मौजूद असंतोष बढ़ सकता है। AIMIM की सीमांचल में मौजूदगी महागठबंधन के लिए चुनौती है, क्योंकि यह ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है। दक्षिण बिहार में अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देना भी जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इससे वहां भी ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।
वोट चोरी अभियान का कितना असर
मुस्लिम और यादव मतदाताओं के लिए “वोट चोरी” सबसे बड़ा मुद्दा है, जिससे ये समुदाय महागठबंधन की ओर एकजुट हो रहे हैं, लेकिन इससे अन्य जातियों का एनडीए की ओर ध्रुवीकरण भी हो सकता है। गोपालगंज, किशनगंज और पूर्णिया में मतदाता सूची से सबसे अधिक नाम हटाए गए हैं।
पिछले दो महीनों में बिहार SIR को महागठबंधन ने मुद्दा बना दिया है। इसका सीधा संदेश मुस्लिम और यादव मतदाताओं पर पड़ेगा। लेकिन यह स्थिति महागठबंधन को भारी भी पड़ सकती है, क्योंकि सवर्ण जातियां जो इस एसआईआर से ज्यादा नहीं प्रभावित हुई हैं वे एनडीए के पक्ष में एकजुट हो सकती हैं। राजनीतिक दलों ने अभी तक सीट शेयरिंग पर तस्वीर साफ नहीं की है। सीट शेयरिंग और प्रत्याशियों की सूची आने के बाद उत्तर भारत में महामुकाबला और भी दिलचस्प होने की उम्मीद है।