मोकामा विधानसभा सीट से नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार और मर्डर व दूसरे गंभीर आरोपों के अभियुक्त अनंत सिंह को शनिवार की रात दुलारचंद यादव की हत्या के नामज़द अभियुक्त के तौर पर गिरफ्तार तो कर लिया गया लेकिन इससे यह बहस फिर ताजा हो गई है कि नीतीश कुमार कैसे उन बाहुबलियों पर मेहरबान रहे हैं जो ‘सरकारी’ हैं या बन जाते हैं। 

नीतीश कुमार जुबानी तौर पर यह दावा करते हैं कि वह ना तो किसी को बचाते हैं और ना किसी को फँसाते हैं लेकिन हकीकत यह है कि जो बाहुबली ‘सरकारी’ होते हैं या जिन्हें ‘सरकारी’ बनाने की गुंजाइश होती है उन्हें उनकी सरकार कानूनी लड़ाई को कमजोर कर साफ बचा ले जाती है। अगर जनता दल यूनाइटेड यह कहे कि ऐसा जानबूझकर नहीं किया जाता तो कम से कम यह बात तो साबित होती है कि इस मामले में नीतीश कुमार की सरकार अक्षम साबित हुई है।

नीतीश कुमार की बाहुबलियों से दोस्ती 2005 से नहीं, बल्कि उससे पहले 2000 से शुरू होती है जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे और उस समय के सबसे कुख्यात बाहुबलियों का समर्थन लिया था। उस समय रामविलास पासवान भी बाहुबलियों को अपनी पार्टी में काफी तवज्जो देते थे। कहा जाता है कि दिवंगत भाजपा नेता कैलाशपति मिश्र ने जेल जाकर उनका समर्थन लिया था और तब नीतीश कुमार से मुलाकात की तस्वीर भी काफी चर्चित रही थी।
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अनंत सिंह

अगर अनंत सिंह का मामला देखा जाए तो यह बात ध्यान देने की है कि इससे पहले जब वह राजद के साथ थे और उनकी पत्नी भी राजद के टिकट पर विधायक बन गई थीं तो नीतीश कुमार की सरकार ने उन्हें तरह-तरह के मामलों में जेल में डाला था। फिर सबने देखा कि अनंत सिंह की पत्नी ने नीतीश कुमार के खिलाफ आए विश्वास मत के दौरान राजद से बगावत कर एनडीए का साथ दिया। वैसे तो अनंत सिंह इस बात का दम भरते हैं कि वह जेल से नहीं डरते लेकिन जिन मामलों में नीतीश कुमार की सरकार ने अनंत सिंह पर मुकदमा कर उन्हें जेल में डाला था जब उनकी सुनवाई अदालत में हुई तो वहां कानूनी पक्ष कमजोर कर दिया गया, कमजोर माना गया और इस तरह अनंत सिंह को रिहाई मिल गई।

वैसे, बहुत से लोगों का मानना यह है कि अनंत सिंह अगर यह दम भरते हैं कि जेल जाने से उन्हें डर नहीं लगता तो इसकी वजह यह है कि वहां भी उनकी ऐसी सेटिंग रहती है कि उन्हें कोई परेशानी ना हो। और इस समय जब नीतीश कुमार की सरकार है तब उन्हें परेशान होने की शायद कम जरूरत पड़े।

अनंत सिंह गिरफ्तार

अनंत सिंह से दोस्ती का यह पहला मामला नहीं है बल्कि इससे पहले भी नीतीश कुमार उनके गांव जाकर उनसे मिलते रहे हैं और उनसे समर्थन लेते रहे हैं। अलबत्ता यह बात सही है कि जब अनंत सिंह ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ा तो सरकार को कानून की याद आई और उन पर कार्रवाई की गई। इस साल अगस्त में जब अनंत सिंह ने नीतीश कुमार से मुलाकात की थी तभी यह तय हो गया था कि उन्हें जदयू का टिकट मिलना पक्का है और बाद में उन्हें नीतीश ने मोकामा से उम्मीदवार भी बनाया।

राजबल्लभ यादव

बाहुबलियों को सरकारी बनाने और सरकारी बाहुबलियों पर नीतीश कुमार की मेहरबानी का एक उदाहरण नवादा से राजद के पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव भी हैं जिन्हें 9 साल तक नाबालिग से रेप के मामले में जेल में रहना पड़ा था। यह महज इत्तेफाक की बात नहीं हो सकती कि जब राजबल्लभ यादव के परिवार और उनकी पत्नी ने, जो राजद की विधायक थीं, एनडीए का साथ देना शुरू किया तो राजबल्लभ यादव को इतने संगीन मामले में हाईकोर्ट ने इस वजह से बरी कर दिया क्योंकि सरकारी वकील पर्याप्त सबूत नहीं दे पाए। 

इस बात पर बहस होती है कि क्यों सरकार का समर्थन करने वाले बाहुबलियों के मामले में सरकारी वकील की दलील कमजोर पड़ जाती है। राजबल्लभ यादव की जेल से रिहाई के बाद उनकी पत्नी विभा देवी अब नवादा से नीतीश कुमार की पार्टी की उम्मीदवार हैं।

आनंद मोहन

बाहुबली आनंद मोहन के मामले में तो नीतीश सरकार ने जेल का कानून ही बदल दिया और अपने पक्ष में लाने के बाद गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्णैया के हत्याकांड में दोषी करार दिए जाने के बाद सुनाए गए आजीवन कारावास को खत्म करते हुए उन्हें बाहर निकाल दिया गया। इस मामले में भी यह बात याद रखने की है कि राजद के टिकट पर विधायक बने आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद ने पार्टी लाइन से बगावत करते हुए नीतीश कुमार को विश्वास मत के दौरान समर्थन दे दिया था।

राजद के एक और विधायक प्रह्लाद यादव का मामला भी दिलचस्प है जिन्होंने पार्टी से बगावत कर विश्वास मत के दौरान नीतीश कुमार का समर्थन किया लेकिन बाद में उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने प्रह्लाद यादव को लखीसराय का आतंक बताया। सवाल यह है कि ‘लखीसराय के आतंक’ से नीतीश कुमार ने अपनी सरकार बचाने के लिए समर्थन क्यों लिया? कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने प्रह्लाद यादव से उनके मामले में नरमी बरतने का वादा किया है।
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शाह ने नीतीश की जगह सम्राट चौधरी का नाम क्यों लिया?

अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद यह बात भी ध्यान देने की है कि एक दिन पहले अमित शाह ने जब दुलारचंद हत्याकांड की निंदा की तो उन्होंने सम्राट चौधरी का नाम लेते हुए यह भी कहा कि डिप्टी सीएम ने इस मामले में कार्रवाई का निर्देश दिया है। आधिकारिक रूप से वैसे तो यह कार्रवाई चुनाव आयोग के निर्देश पर हुई है लेकिन जिस तरह अमित शाह ने नीतीश कुमार का नाम हटाकर सम्राट चौधरी का नाम लिया है उससे यह संदेश भी जा सकता है कि भाजपा यह जताना चाहती है कि नीतीश कुमार अनंत सिंह पर नर्म थे लेकिन भाजपा ने कार्रवाई करके दिखा दिया।

दिलचस्प बात यह है कि जब नीतीश कुमार ने राजद के साथ सरकार बनाई थी तब भारतीय जनता पार्टी ने उन पर बाहुबलियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया था।

वैसे, भारतीय जनता पार्टी ने भी बाहुबली अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को लगातार टिकट दिया है। अखिलेश सिंह पर नवादा में जातीय नरसंहार करने का आरोप है। इसके अलावा बाहुबली सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत को भी भारतीय जनता पार्टी ने टिकट दिया है। खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर हत्या में शामिल होने और फर्जी तरीके से नाबालिग होने का प्रमाण पत्र देखकर बरी होने का आरोप प्रशांत किशोर लगा चुके हैं।