बिहार चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पहले अकेले लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन दो दिन बाद ही यू-टर्न लेते हुए चुनाव से दूर रहने की घोषणा कर दी है। तो आरजेडी और कांग्रेस पर साज़िश के आरोप क्यों लगाए? क्या महागठबंधन में फिर से दरार गहराने लगी है?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच एक चौंकाने वाला राजनीतिक मोड़ आ गया है। झारखंड की सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी जेएमएम ने सोमवार को घोषणा की कि वह पड़ोसी राज्य बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में हिस्सा नहीं लेगी। यह फ़ैसला पार्टी ने महागठबंधन के सहयोगी दलों राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी और कांग्रेस पर 'राजनीतिक साजिश' का आरोप लगाते हुए लिया है। जेएमएम का दावा है कि इन दलों ने जानबूझकर पार्टी को सीटें आवंटित नहीं कीं, जिससे उसे चुनाव लड़ने से वंचित होना पड़ा।
यह घोषणा महज दो दिन पहले की गई उस घोषणा के ठीक बाद आई है, जिसमें हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले जेएमएम ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। शनिवार को पार्टी ने चकाई, धमदाहा, कटारिया, मणिहारी, जमुई और पीरपैंती की छह विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की बात कही थी। ये सभी सीटें दूसरे चरण में 11 नवंबर को मतदान के लिए निर्धारित हैं, जहां नामांकन पत्र जमा करने की अंतिम तिथि सोमवार ही थी। लेकिन अब जेएमएम ने नामांकन न करने का फैसला कर लिया।
जेएमएम क्या चाहता था?
बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान 6 नवंबर और दूसरे चरण का 11 नवंबर को होगा, जबकि नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर शुरू से ही खींचतान चल रही थी। जेएमएम ने 11 अक्टूबर को इंडिया ब्लॉक को अल्टीमेटम दिया था कि 14 अक्टूबर तक सम्मानजनक संख्या में सीटें आवंटित की जाएं, वरना पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। जब ऐसा नहीं हुआ तो 18 अक्टूबर को जेएमएम ने सोलो लड़ाई का ऐलान कर दिया था।
पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने शनिवार को कहा था, 'हमारे कार्यकर्ताओं ने बिहार में पिछले 10 वर्षों से संघर्ष किया है। संगठन के दबाव और सहयोगियों की उदासीनता के कारण हम इन छह सीटों पर अकेले लड़ेंगे।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि झारखंड चुनावों में जेएमएम ने आरजेडी और कांग्रेस को कई सीटें दी थीं, लेकिन अब बदला लेने का समय आ गया है। पार्टी ने बिहार के लिए 20 स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी की थी।
लेकिन सोमवार को सब कुछ बदल गया। राज्य के पर्यटन मंत्री और वरिष्ठ जेएमएम नेता सुदीव्या कुमार ने संवाददाताओं से कहा, 'आरजेडी और कांग्रेस ने जेएमएम को चुनाव लड़ने से वंचित करने के लिए राजनीतिक साजिश रची। यह महागठबंधन का हिस्सा बनने के बावजूद हमें धोखा देना है। हम इस अपमान का करारा जवाब देंगे और झारखंड में कांग्रेस-आरजेडी के साथ गठबंधन की समीक्षा करेंगे।' कुमार ने साफ शब्दों में कहा कि नामांकन की अंतिम तिथि होने के कारण पार्टी अब इन सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी।
क्या है असल वजह?
जेएमएम के आरोपों का केंद्र बिंदु महागठबंधन में सीट बंटवारे की असफलता है। कांग्रेस ने गुरुवार को अपनी पहली सूची जारी की थी, जिसमें 48 उम्मीदवारों के नाम थे। इसमें कुटुंबा से राज्य इकाई प्रमुख राजेश राम और कडवा से विधानसभा दल नेता शकील अहमद खान जैसे प्रमुख चेहरे शामिल थे।
सीटों को लेकर कांग्रेस का आरजेडी के साथ टकराव बढ़ गया, क्योंकि कई सीटों पर दोनों दल उम्मीदवार उतार रहे थे। जेएमएम का कहना है कि इस अराजकता में उसकी मांगें दब गईं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह साजिश से ज़्यादा रणनीतिक चूक है। एक ओर जहां आरजेडी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने पर अड़ा हुआ है, वहीं कांग्रेस असमंजस में है। सीपीआई जैसे छोटे सहयोगी भी कुछ सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतार रहे हैं, जिससे गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं। जेएमएम की मांग 12 सीटों की थी, लेकिन उसे महज 4-6 सीटें मिलने की संभावना थी, जो पार्टी को स्वीकार्य नहीं थी।
झारखंड में गठबंधन पर संकट के बादल!
जेएमएम का सबसे बड़ा एलान झारखंड में गठबंधन की समीक्षा का है। कुमार ने कहा, 'ऐसा गठबंधन जो अपने सहयोगियों का ध्यान न रख सके, वह राज्य का कैसे ध्यान रखेगा?' झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन सत्ता में है, और आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यह दरार गठबंधन के लिए खतरे की घंटी है। पार्टी ने संकेत दिया है कि बिहार चुनाव के बाद झारखंड में भी 'करारा जवाब' दिया जाएगा, जिसका मतलब सीट बंटवारे में कटौती या यहां तक कि गठबंधन तोड़ना हो सकता है।
विपक्ष कमजोर, एनडीए को फायदा?
यह घटनाक्रम बिहार चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है। जेएमएम के बाहर होने से महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित हो सकता है, खासकर उन छह सीटों पर जहां पार्टी के कार्यकर्ता सक्रिय थे। इनमें कटारिया और मणिहारी जैसी अनुसूचित जनजाति सीटें शामिल हैं, जहां जेएमएम का पारंपरिक वोट बैंक है। एनडीए को इससे फायदा हो सकता है, क्योंकि विपक्ष की एकजुटता टूट रही है।
जेएमएम के इस यू-टर्न से सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह रणनीतिक पीछे हटना है या गठबंधन बचाने की कोशिश? राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन सरकार पर दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि केंद्र में बीजेपी की मज़बूत पकड़ के बीच राज्य स्तर पर गठबंधन की मज़बूती ज़रूरी है। फ़िलहाल, जेएमएम ने साफ़ किया है कि बिहार में अब कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा, और पार्टी अपनी ऊर्जा झारखंड चुनावों पर केंद्रित करेगी।
यह घटना इंडिया ब्लॉक की आंतरिक कलह को उजागर करती है, जहां सीट बंटवारा और नेतृत्व का मुद्दा लगातार तनाव का कारण बन रहा है।