बिहार में SIR प्रक्रिया पर रिपोर्टिंग को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम पर FIR क्यों दर्ज की गई है? जानिए उन पर लगे आरोप, राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और मीडिया की स्वतंत्रता पर उठते सवाल।
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR की प्रक्रिया पर हालिया रिपोर्टिंग को लेकर बेगूसराय जिले में वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज की गई है। आख़िर उनके ख़िलाफ़ क्या आरोप लगाए गए हैं। क्या उनको जानबूझकर रिपोर्टिंग और सवाल पूछने के लिए निशाना बनाया जा रहा है?
बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR की प्रक्रिया चल रही है। इस प्रक्रिया का मक़सद मतदाता सूची को सही करना और एक नाम की दोहरी एंट्री, मृत व्यक्तियों के नाम, गैर-निवासियों या अवैध प्रवासियों के नाम हटाना है। हालांकि, इस प्रक्रिया पर विपक्षी दलों और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए हैं, इसे जल्दबाजी में लागू किया गया और भेदभावपूर्ण बताया है।
अपनी निष्पक्ष और बेबाक पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले अजीत अंजुम ने बेगूसराय के बलिया प्रखंड में SIR की प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं पर एक वीडियो रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस वीडियो में उन्होंने प्रक्रिया की खामियों और स्थानीय स्तर पर इसके कार्यान्वयन में पारदर्शिता की कमी को उजागर किया था। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया कुछ समुदायों को निशाना बना सकती है और इसमें दस्तावेजों की मांग को लेकर अस्पष्टता है।
उनके इस वीडियो के बाद बेगूसराय में उनके ख़िलाफ़ एक FIR दर्ज की गई। FIR में आरोप लगाया गया है कि उनके वीडियो ने सांप्रदायिक सद्भाव को नुक़सान पहुंचाने का प्रयास किया और सरकारी काम में बाधा डाली। यह FIR एक मुस्लिम बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ की शिकायत पर आधारित है, जिसे अंजुम ने अपने वीडियो में शामिल किया था। अंजुम का दावा है कि इस बीएलओ पर प्रशासन द्वारा दबाव डाला गया और उसे उनके ख़िलाफ़ मोहरा बनाया गया।
अजीत अंजुम की प्रतिक्रिया
अजीत अंजुम ने इस एफ़आईआर को पत्रकारिता पर हमला करार दिया है और इसे उनकी सच्चाई उजागर करने की कोशिशों को दबाने का प्रयास बताया है। उन्होंने सत्य हिंदी से कहा कि उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में फॉर्म भरने की प्रक्रिया की रिपोर्टिंग की। इसी क्रम में वह बेगूसराय के बलिया प्रखंड में वहाँ गये थे जहाँ बीएलओ एसआईआर फॉर्म अपलोड कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वह उस जगह पर पूछकर गए थे।
FIR: अजीत अंजुम ने कहा कि यह एफ़आईआर उनके SIR पर किए गए फैक्ट-चेक और खुलासों के कारण दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि मैं वही कर रहा हूं, जो एक पत्रकार को करना चाहिए।
बीएलओ को मोहरा बनाने का आरोप: अंजुम ने दावा किया कि बेगूसराय के एक मुस्लिम BLO पर प्रशासन ने दबाव डाला और उसे उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने अपने वीडियो का हवाला देते हुए कहा, 'इस वीडियो को देखिए और तय कीजिए कि मैंने उस मुस्लिम BLO से क्या ऐसी बात की है, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव खराब होता है।'
चुनाव आयोग पर सवाल: अंजुम ने अपने 40 मिनट के वीडियो में SIR की प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठाए थे, जिनका जवाब वे चाहते हैं कि चुनाव आयोग दे। उन्होंने कहा कि उनकी रिपोर्टिंग का मक़सद केवल प्रक्रिया की खामियों को उजागर करना था, न कि किसी समुदाय को निशाना बनाना।
FIR मेरे लिए सम्मान का सर्टिफिकेट: अंजुम ने इसे अपनी पत्रकारिता का सम्मान माना और कहा, "बेगूसराय में दर्ज ये FIR एक पत्रकार के तौर पर मेरे लिए सर्टिफिकेट की तरह है। चुनाव आयोग के 'SIR' पर खुलासे का ये अंजाम तो होना ही था।" अंजुम ने यह भी बताया कि उनकी रिपोर्टिंग को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन (SDM और BDO) ने उन पर दबाव बनाने की कोशिश की थी, लेकिन वे अपनी पत्रकारिता के सिद्धांतों पर अडिग रहे।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
इस मामले ने सोशल मीडिया पर पत्रकारिता जगत में हलचल मचा दी है। कई वरिष्ठ पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अजीत अंजुम के समर्थन में अपनी बात रखी, जबकि कुछ ने इस मामले पर तटस्थ रुख अपनाया।
समर्थन में आवाजें: कई पत्रकारों ने अजीत अंजुम के खिलाफ FIR को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया। एक पत्रकार ने एक्स पर लिखा, 'अजीत अंजुम ने SIR की प्रक्रिया की खामियों को उजागर किया, जो एक पत्रकार का कर्तव्य है। उनके खिलाफ FIR दर्ज करना सच्चाई को दबाने की कोशिश है।' एक अन्य यूजर ने कहा, "यह पत्रकारिता को चुप कराने का प्रयास है। अजीत अंजुम ने वही किया जो एक निष्पक्ष पत्रकार को करना चाहिए।"
चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल: कुछ पत्रकारों ने SIR की प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए और अंजुम की रिपोर्टिंग को साहसिक बताया। एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा, "SIR की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, और अजीत अंजुम ने इसे बेनकाब किया। इसके बजाय कि चुनाव आयोग उनके सवालों का जवाब दे, उन्होंने FIR का रास्ता चुना।"
तटस्थ और आलोचनात्मक रुख: कुछ पत्रकारों ने इस मामले पर तटस्थ रुख अपनाते हुए कहा कि दोनों पक्षों की बात सुनी जानी चाहिए। एक यूज़र ने लिखा, "FIR के पीछे के तथ्यों को देखे बिना कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी। अजीत अंजुम की रिपोर्टिंग को देखते हुए यह जरूरी है कि जांच निष्पक्ष हो।"
सांप्रदायिकता का आरोप: कुछ सोशल मीडिया यूज़रों ने FIR को जायज ठहराने की कोशिश की, लेकिन ऐसे कमेंट्स की संख्या कम रही। एक यूजर ने लिखा, "अगर अंजुम के वीडियो से सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा है, तो FIR उचित है।" हालांकि, इस तरह के दावों का अंजुम ने खंडन किया है।
SIR को लेकर विवाद क्या?
बिहार में SIR की प्रक्रिया को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है। राजद, कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इसे नागरिकता की जाँच जैसा बताकर इसका विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2025 को इस मामले में सुनवाई की और प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बताते हुए इसे जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर ID को पहचान के दस्तावेजों के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया।
विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से हटाने का प्रयास है। अजीत अंजुम की रिपोर्टिंग ने इन सवालों को और गहरा कर दिया, जिसके बाद प्रशासन ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की।