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‘आप’-कांग्रेस गठबंधन करते तो हो जाता बीजेपी का सफ़ाया! 

दिल्ली में नामाँकन का समय ख़त्म हो चुका है लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक अख़बार को दिए गए इंटरव्यू में कहा है कि वह आम आदमी पार्टी (आप) से 4+3 के फ़ॉर्मूले के साथ गठबंधन के लिए आख़िरी सेकेंड तक तैयार रहेंगे।  लेकिन शर्त यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हरियाणा में तालमेल की शर्त छोड़नी होगी। मतलब यह कि कांग्रेस शर्त के साथ ही सही, गठबंधन चाहती थी। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बहुत कोशिश करते रहे लेकिन आख़िरकार गठबंधन नहीं हो सका। 

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लेकिन आँकड़ों से यह समझा जा सकता है कि अगर दोनों दलों का गठबंधन होता तो बीजेपी के लिए ख़ासी मुश्किल पैदा हो जाती या यूँ कहें कि सातों सीटों पर उसका सफ़ाया हो सकता था। सबसे पहले इस गठबंधन की गुत्थी को समझने की कोशिश करते हैं। 

दिल्ली में 'आप' और कांग्रेस के वोट प्रतिशत पर नज़र डालें तो यह साफ़ हो जाएगा कि ये दोनों साथ मिलकर ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने में सक्षम हैं, अकेले दम पर नहीं।
पिछले लोकसभा चुनावों में दिल्ली में 7 में से 6 सीटों पर कांग्रेस और ‘आप’ के वोट मिलाकर बीजेपी को मिले वोटों से ज़्यादा थे। सिर्फ़ पश्चिमी दिल्ली सीट ही इसमें अपवाद थी। इसी आधार पर केजरीवाल कहते रहे कि हम मिलकर बीजेपी को हरा सकते हैं। मगर, इसके लिए उनकी शर्त कांग्रेस को स्वीकार नहीं थी।
गठबंधन की बातचीत के दौरान लोगों ने केजरीवाल का ख़ूब मजाक भी उड़ाया था कि कांग्रेस को भ्रष्ट और 70 साल से देश और दिल्ली की जनता के साथ धोखा करने वाला बताने पर भी वह उससे समझौता करने की जिद आख़िर क्यों कर रहे हैं।

इसके पीछे वजह यह थी कि दिल्ली में ‘आप’ का वोट प्रतिशत लगातार कम हो रहा है। इसे आँकड़ों से समझते हैं। साल 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 32 फ़ीसदी कांग्रेस को 9 फ़ीसदी और ‘आप’ को 54 फ़ीसदी वोट मिले थे। लेकिन 2017 में हुए नगर निगम चुनावों में ‘आप’ वोट प्रतिशत 26 फ़ीसदी पर आ गया। यानी नगर निगम चुनाव में ‘आप’ का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले 28 प्रतिशत कम हुआ। दूसरी तरफ़ निगम चुनाव में कांग्रेस 9 फ़ीसदी से उठकर 21 फ़ीसदी पर आ गई। तब बीजेपी को लगभग 35 फ़ीसदी वोट मिले थे।

नगर निगम चुनाव में कांग्रेस और आप का वोट मिलाएँ तो यह होता है 47 फ़ीसदी, जो बीजेपी को मिले वोटों से ज़्यादा है। इससे तीन बातें साफ़ हुईं। पहला यह कि कांग्रेस का वोट बैंक वापस उसकी तरफ़ जा रहा है, दूसरा यह कि ‘आप’ और कांग्रेस मिलकर लड़े तो बीजेपी को हराया जा सकता है और तीसरा यह कि ‘आप’ का वोट फ़ीसद लगातार गिर रहा है। 

aap congress alliance in delhi bjp - Satya Hindi

एक आँकड़ा और देखें। पिछले लोकसभा चुनावों में दिल्ली में बीजेपी को 46 फ़ीसदी, ‘आप’ को 33 फ़ीसदी और कांग्रेस को 15 फ़ीसदी वोट मिले थे। इस बार भी ‘आप’ और कांग्रेस का वोट मिला लिया जाए तो यह होता है 48 फ़ीसदी, जो एक बार फिर बीजेपी को मिले वोटों से ज़्यादा है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर ‘आप’ और कांग्रेस मिलकर लड़े होते तो मोदी लहर में भी बीजेपी को हराया जा सकता था। 

aap congress alliance in delhi bjp - Satya Hindi

सर्वे से आया गठबंधन का आइडिया 

‘आप’ द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक़, बीजेपी को इस बार के चुनाव में 10 फ़ीसदी वोटों का नुक़सान हो सकता है। ‘आप’ का मानना था कि अगर यह 10 फ़ीसदी वोट कांग्रेस को जाता है तो कांग्रेस पिछली बार के 15 से 25 फ़ीसदी और बीजेपी घटकर 36 फ़ीसदी पर आ जाएगी। अगर यह 10 फ़ीसदी वोट ‘आप’ को मिलता है तो उसका वोट 43 फ़ीसदी हो जाएगा और वह दिल्ली की सातों सीट जीत जाएगी। इस सर्वे का मतलब यह था कि अगर ‘आप’ और कांग्रेस अलग-अलग लड़े तो एक बार फिर से बीजेपी जीत जाएगी लेकिन साथ लड़े तो बीजेपी हार जाएगी। इसी सर्वे को आधार बनाकर बीजेपी को हराने के लिए लोकसभा चुनाव 2019 के लिए ‘आप’-कांग्रेस में गठबंधन होने की बात सुर्खियों में आई थी। 

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इसके बाद शुरू हुई कांग्रेस के अदंर लड़ाई। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ‘आप’ के साथ गठबंधन की पुरजोर मुख़ालफ़त करते रहे। लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसके बाद यह माना गया कि अब ‘आप’ और कांग्रेस में अब गठबंधन होना तय है। लेकिन कहानी बिगड़ गई और माकन की जगह दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं शीला दीक्षित ने भी पुरजोर ढंग से गठबंधन का विरोध किया। लेकिन अब माकन गठबंधन के समर्थन में आ गए। 

अब जब दिल्ली में नामाँकन ख़त्म हो चुके हैं तो गठबंधन होने की संभावना पूरी तरह ख़त्म हो ही गई है। लेकिन सोशल मीडिया पर यह चर्चा चल रही है कि अभी भी दोनों दल अपने कुछ प्रत्याशियों का नाम वापस करा सकते हैं। 24 अप्रैल को नामाँकन पत्रों की स्क्रूटनी होगी और 26 अप्रैल तक प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकते हैं। लेकिन इतना तय है कि अलग-अलग लड़ने पर आप और कांग्रेस को सियासी नुक़सान और बीजेपी को फ़ायदा होने की उम्मीद है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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