बात शुरू करते हैं 2013 के विधानसभा चुनाव परिणाम से। दिसंबर 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में 'आप' को 28, कांग्रेस को 8 और बीजेपी को 32 सीटें मिली थीं। किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने से कांग्रेस और 'आप' ने मिलकर सरकार चलाई थी। लेकिन यह सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकी और 49 दिन में गिर गई। उसके बाद तो मानो कांग्रेस और 'आप' एक-दूसरे के जानी दुश्मन हो गए।
माकन के भी बदले सुर
जो माकन कुछ महीने पहले तक 'आप' के साथ गठबंधन के घनघोर विरोधी थे वह भी अब गठबंधन के समर्थन में आ गए। माकन या कांग्रेस के स्टैंड को देखकर यही कहा जा सकता है कि आख़िर इतना कंफ़्यूजन क्यों है भाई?
2017 के नगर निगम चुनाव आए, केजरीवाल बुरी तरह हारे लेकिन कांग्रेस की स्थिति 2015 के मुक़ाबले कुछ सुधर गई। 2019 का चुनाव आते-आते यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि क्या बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस और 'आप' साथ आएँगे।
हाल ही के महीनों में केजरीवाल कई बार कह चुके हैं कि वह कांग्रेस को गठबंधन के लिए कई बार समझा चुके हैं लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। केजरीवाल कह चुके हैं कि दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए गठबंधन होना ज़रूरी है। यहाँ तक कि केजरीवाल दिल्ली नहीं तो हरियाणा में ही सही, कांग्रेस के साथ गठबंधन की खुलेआम इच्छा जता चुके हैं।
आँकड़े भी गठबंधन के पक्ष में
पवार के घर हुई थी मुलाक़ात
प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अजय माकन खुलकर 'आप' के साथ गठबंधन को नक़ारते रहे और जब उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दिया तो इस बात की संभावना प्रबल हो गई कि अब दिल्ली में दोनों दलों में गठबंधन हो सकता है। माकन के बाद प्रदेश अध्यक्ष बनीं शीला दीक्षित ने भी कहा कि वह 'आप' के साथ गठबंधन नहीं चाहती हैं।
दबाव बनाने की रणनीति फ़ेल
हाल ही में 'आप' ने दिल्ली की छह सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। माना जा रहा था कि केजरीवाल ने कांग्रेस पर दबाव डालने के लिए ऐसा किया था। लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने गठबंधन पर चर्चा करने के लिए दिल्ली के नेताओं की जो बैठक बुलाई थी उसमें 'आप' के साथ न जाने का फ़ैसला किया गया था। मतलब कांग्रेस तय नहीं कर पा रही थी कि किया क्या जाए।
लेकिन कुछ ही दिन पहले यह ख़बर आई कि दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पीसी चाको इस मसले पर एक रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज भेजकर बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं की राय लेंगे। रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज भेजकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से पूछा गया कि दिल्ली में 'आप' के साथ गठबंधन होना चाहिए या नहीं।
बुधवार शाम से गुरुवार शाम तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भेजे गए इन मैसेज सर्वे की रिपोर्ट आ गई है और इसे राहुल गाँधी को भेज दिया गया है। बताया जाता है कि राहुल दो से तीन दिन में इस पर फ़ैसला ले सकते हैं।
रिकॉर्डेड ऑडियो मैसेज की बात सामने आने पर शीला दीक्षित ने साफ़ कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है और राहुल गाँधी फ़ैसला कर चुके हैं कि दिल्ली में ‘आप’ के साथ गठबंधन नहीं होगा। यानी कि कांग्रेस फिर कंफ़्यूज हो गई कि वह गठबंधन के साथ जाए या नहीं।
ऐसे में जब 'आप' की ओर से खुला ऑफ़र है कि दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा में भी दोनों दलों का गठबंधन हो तो कांग्रेस क्यों कंफ़्यूज है। या तो कांग्रेस, 'आप' को हाँ कह दे या साफ़ तौर पर मना कर दे। बहरहाल, पीसी चाको, अजय माकन के रुख के बाद यह सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि कांग्रेस गठबंधन के मसले पर तय नहीं कर पा रही है कि उसे आख़िर करना क्या चाहिए?