loader

एएसआई के पूर्व अफ़सर का दावा, बाबरी मसजिद से पहले वहाँ मंदिर था

क्या बाबरी मसजिद से पहले वहाँ मंदिर था? क्या मुगल शासक बाबर ने किसी मंदिर को ध्वस्त कर वहाँ बाबरी मसजिद बनवायी थी? हिंदू पक्ष किस आधार पर वहाँ मंंदिर होने का दावा करता है? क्या उसके पास इसके सबूत हैं। क्या मुसलिम पक्ष के पास बाबरी मसजिद के मालिकाना हक होने के सबूत हैं? ये सवाल इसलिए कि अयोध्या विवाद सदियों से है। इस विवाद के कारण कई बार साम्प्रदायिक तनाव फैल गया। इसको सुलझाने के लिए आपसी बातचीत का रास्ता तक नहीं बचा है। आख़िरी उम्मीद अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला किसके पक्ष में आएगा? इस सवाल का आधिकारिक रूप से जवाब भले ही सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ही मिले, लेकिन भारतीय पुरातत्व विभाग यानी एएसआई के एक पूर्व अधिकारी को इस सवाल के जवाब पर कोई संदेह नहीं है। वह दावा करते हैं कि एएसआई की रिपोर्ट से साफ़ है कि वहाँ पहले से मंदिर था और बाबरी मसजिद के खंभों में मंदिर के अवशेष हैं। कौन हैं यह पूर्व अधिकारी और किस आधार पर कर रहे हैं यह दावा?

यह पूर्व अधिकारी हैं एएसआई, उत्तर के क्षेत्रीय निदेशक रहे के.के. मुहम्मद। के.के. मुहम्मद उस टीम का हिस्सा थे जिसने पहली बार 1976-77 में उस विवादित जगह पर खुदाई की थी। उस दौरान अयोध्या विवाद इतना बड़ा मुद्दा नहीं था जितना 1990 के दशक के बाद हुआ है। पहली बार खुदाई वर्ष 1976-77 में प्रख्यात पुरातत्वविद् बी.बी. लाल के निर्देशन में की गई थी। लाल 1968 से 1972 तक एएसआई यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। के.के. मुहम्मद कहते हैं कि वह खुदाई करने वाली टीम के सदस्य थे और खुदाई में भाग लेने वाले एकमात्र मुसलिम थे। उन्होंने साफ़-साफ़ कहा है कि विवादास्पद बाबरी मसजिद के नीचे पहले मंदिर के होने के साक्ष्य हैं और ये साक्ष्य एएसआई की खुदाई में मिले हैं। मुहम्मद ने ये बातें 'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के साथ साक्षात्कार में कही हैं।

सम्बंधित ख़बरें

जब खुदाई हो रही थी तो विवादास्पद मसजिद पुलिस के पहरे में थी और किसी भी आम व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। हालाँकि एएसआई के लोगों को जाने की अनुमति थी। मुहम्मद कहते हैं कि पुरातत्व के नज़रिए से यह कहने के लिए इसके पर्याप्त सबूत हैं कि विवादास्पद बाबरी मसजिद के नीचे मंदिर के अवशेष थे। उन्होंने कहा कि जब अंदर गए तो मसजिद के 12 खंभे थे। ये सभी मंदिर के अवशेष से बने थे।

‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, एएसआई के पूर्व अधिकारी मुहम्मद कहते हैं, ‘12वीं और 13वीं शताब्दी के आसपास के सभी मंदिरों के आधार में 'पूर्ण कलश' मिलते हैं। यह एक 'घड़ा' की संरचना में है, जिसमें से पत्ते निकलते हैं। यह हिंदू धर्म में समृद्धि का प्रतीक है और 'अष्ट-मंगल चिन्ह' के रूप में जाना जाता है - आठ शुभ प्रतीकों में से एक है। कुतुब मीनार के पास कुव्वतुल इसलाम मसजिद को भी 27 मंदिरों के अवशेष से बनाया गया था। इसके लिए सबूत भी हैं। समकालीन इतिहासकार हसन निज़ामी द्वारा लिखित ताज-उल-मसिर नामक एक पुस्तक है और उसमें वह कहते हैं कि मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था और उससे एक मसजिद का निर्माण किया गया था। कुव्वतुल इसलाम मसजिद के सामने एक शिलालेख भी है जिससे साफ़ होता है कि यह 27 मंदिरों के अवशेष से बनाया गया था। अंदर कई 'पूर्ण कलश' और कई देवी-देवता के चित्र दिखते हैं।’

वह कहते हैं कि बाबरी मसजिद में भी ऐसी ही चीजें थीं। हालाँकि देवी-देवता तो नहीं थे लेकिन 'अष्ट-मंगल चिन्ह' थे। उनके अनुसार, इनके आधार पर कोई भी पुरातत्वविद् कहेगा कि ये मंदिर के अवशेष हैं।

वह कहते हैं कि खुदाई में कई टेराकोटा की मूर्तियाँ मिलीं। यदि यह एक मसजिद है तो आपको कभी भी मनुष्यों या जानवरों का चित्रण नहीं मिलेगा, क्योंकि यह इसलाम में 'हराम' है। इसका मतलब यह एक मंदिर था। मुहम्मद के अनुसार, खुदाई में मिले इन निष्कर्षों को बी.बी. लाल ने उजागर नहीं किया, क्योंकि हमारा उत्खनन का उद्देश्य यह सिद्ध करना नहीं था कि मंदिर था या नहीं। वह कहते हैं कि हम सिर्फ़ जगह के सांस्कृतिक क्रम को देखना चाहते थे।

मंदिरों वाले प्रतीक चिन्हों पर क्या कहा? 

एएसआई के पूर्व अधिकारी मुहम्मद कहते हैं कि खुदाई में कई और ऐसे प्रतीक मिले हैं। वह कहते हैं कि मंदिर के ऊपर 'कलश' के ठीक नीचे एक और वास्तुशिल्प है जिसे 'अमलका' के नाम से जाना जाता है और खुदाई में यही भी मिला था। उनके अनुसार इसके अलावा विभिन्न देवी-देवताओं, मानव आकृतियों और मादा आकृतियों के 263 टुकड़े पाए गए थे। मुहम्मद सवाल करते हैं कि अगर यह मसजिद होती तो विभिन्न जीवों की तसवीरें कैसे मिलतीं? इसलाम में किसी भी जीवित व्यक्ति का चित्रण मना है।

मुहम्मद के अनुसार, इन सभी चीजों के अलावा, एक 'विष्णु हरि शीला फलाक' शिलालेख भी साइट से दो टुकड़ों में मिला था। वह कहते हैं, ‘बेशक, वे खुदाई का हिस्सा नहीं थे, लेकिन मसजिद के विध्वंस के बाद पाए गए थे। लेकिन वे एक महत्वपूर्ण परिस्थितिजन्य साक्ष्य बनाते हैं जो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि मंदिर भगवान विष्णु के उस अवतार को समर्पित था जिन्होंने बाली और 10 सिर वाले व्यक्ति को मार दिया था। यह सब इस बात का प्रमाण है कि हमारे पास यह स्थापित करने के लिए कि पहले से मौजूद हिंदू मंदिर था और वह भी उस स्थान पर भगवान विष्णु को समर्पित था।’

ताज़ा ख़बरें

क्या मिला दूसरी खुदाई में?

दूसरी बार खुदाई 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के निर्देशानुसार किया गया था। उस समय तक मसजिद ढहा दी गई थी। के.के. मुहम्मद के अनुसार, खुदाई से पहले एक ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण किया गया था। वह कहते हैं, ‘इसमें पाया गया कि ज़मीन के नीचे कई संरचनाएँ थीं। कई विसंगतियों की सूचना मिली थी। विसंगतियों का अर्थ है कि बाबरी मसजिद के नीचे की कुछ दूसरी संरचनाएँ मिलेंगी। खुदाई पुरातत्वविद् हरि मांझी और बीआर मणि की देखरेख में की गई थी। चूँकि यह खुदाई अदालत के निर्देशानुसार की गई थी, इसलिए इसकी रिपोर्ट कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट की तरह है और यह पूरी तरह से प्रामाणिक है। यह एएसआई द्वारा तैयार एक निष्पक्ष और वैज्ञानिक रिपोर्ट है।’

वह कहते हैं कि पहली खुदाई के दौरान मंदिर के 12 स्तंभ मिले थे जिनका मसजिद में फिर से उपयोग किया गया था लेकिन दूसरी खुदाई में 17 पंक्तियों में 50 से अधिक स्तंभ मिले। उनके अनुसार, इसका मतलब है कि संरचना और बड़ी थी, खोजा गया ढाँचा बाबरी मसजिद के नीचे एक मंदिर था और यह 12वीं शताब्दी में था। 

देश से और ख़बरें

साहित्यिक साक्ष्य भी बताए

'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के साथ साक्षात्कार में एएसआई के पूर्व अधिकारी मुहम्मद कहते हैं कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त साहित्यिक साक्ष्य हैं कि हिंदू उस स्थान पर पूजा करते रहे। उनके अनुसार, आइन-ए-अकबरी खंड-3 में अबू फ़ज़ल कहते हैं कि अयोध्या में चैत्र के महीने में हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती थी। मुहम्मद ने कहा, ‘तब विलियम फिंच (1608-1611) के नाम से जाना जाने वाला एक यात्री जहाँगीर के समय में भारत आया था। अपने यात्रा वृतांत में वह कहते हैं कि अयोध्या में इस स्थान पर बहुत से लोग इकट्ठे हुए और पूजा की। 1631 में जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में एक डच भूगोलवेत्ता जॉन डेलेट ने भी हिंदुओं द्वारा उस जगह की पूजा करने की बात कही। थॉमस हर्बर्ट (1606-1682) ने इस जगह पर हिंदू पूजा स्थल होने का ज़िक्र किया है। जोसेफ़ तैसेन थेलर जिन्होंने 1766 में लिखा था कि इस स्थान पर एक पालने के निर्माण के बारे में भी कहा गया है। यह पहली बार था कि उन्होंने कहा कि मंदिर को या तो बाबर या औरंगज़ेब ने ध्वस्त कर दिया था।’

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें