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बिना डर और शांति से जीवन जीने का मेरा हक वापस दें: बिलकीस

2002 के गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुईं बिलकीस बानो ने कहा है कि उन्हें बिना किसी डर और शांति से जीवन जीने का उनका अधिकार वापस दिया जाए। बिलकीस बानो ने यह प्रतिक्रिया गुजरात सरकार के द्वारा उनके साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को रिहा किए जाने पर दी है। बिलकीस ने एक बयान जारी कर कहा है कि न्याय से उनका भरोसा हिल गया है।

जिन 11 लोगों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किया गया है उनके नाम- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना हैं। 

बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी। 
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बिलकीस बानो ने एक बयान में कहा है कि ऐसे हालात में किसी महिला को कैसे इंसाफ मिलेगा। मैंने सबसे बड़ी अदालत पर भरोसा किया। मैंने व्यवस्था पर भरोसा किया और मैं अपने साथ हुए हादसे के बाद धीरे-धीरे जीना सीख रही थी। उन्होंने कहा है कि उनका दुख और उनका डगमगाता हुआ भरोसे का मामला सिर्फ उनके लिए नहीं है बल्कि हर उस महिला के लिए है जो अदालतों में न्याय के लिए संघर्ष कर रही है। 

बिलकीस बानो ने कहा है कि किसी ने भी उनसे उनकी सुरक्षा और वह किस हाल में हैं, इस बारे में नहीं पूछा और इतना बड़ा फैसला ले लिया गया। बानो ने गुजरात सरकार से अनुरोध किया है कि उन्हें बिना डर के और शांति से जीवन जीने का अधिकार वापस दिया जाए और उनके परिवार और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाए। 

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बता दें कि गोधरा कांड के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी और हजारों मुसलिम परिवार सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपना घर छोड़कर जा रहे थे। इसमें से ही एक बानो का परिवार भी था। लेकिन तभी उन्मादी भीड़ ने तलवारों, लाठी-डंडों से बानो के परिवार पर हमला बोल दिया था जिसमें उनके परिवार के 8 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 6 लोगों का कुछ पता नहीं चला था। इस हमले में बिलकीस बानो किसी तरह बच गई थीं। हमले में बानो की 3 साल की बेटी सालेहा की भी मौत हो गई थी। 

बिलकीस बानो को एक आदिवासी महिला ने अपने कपड़े दिए थे और इसके बाद एक होमगार्ड की मदद से वह लिमखेड़ा पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराने पहुंच सकी थीं।

2019 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से 50 लाख रुपये मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास मुहैया कराने के निर्देश के बाद बिलकीस बानो ने कहा था कि वह यह पूरी रक़म अपने लिए नहीं रखेंगी और मुआवज़े का एक हिस्सा यौन हिंसा की शिकार महिलाओं और उनके बच्चों के लिए दान करना चाहती हैं।

पति का मिला साथ 

पुलिस से लेकर अदालतों तक लड़ी गई इस लड़ाई में बिलकीस बानो को शौहर याक़ूब पटेल का भी पूरा साथ मिला। याक़ूब पटेल ने कहा था, “मैं चाहता हूं कि भारत के सभी पति मेरे जैसे हों जो समाज के दबाव के आगे न झुकें। बल्कि अपनी पत्नियों के साथ खड़े हों, जो गैंगरेप जैसे क्रूर अपराध की शिकार हुई हैं।” 

फैसले पर सवाल

बिलकीस बानो को लेकर गुजरात सरकार के फैसले पर सोशल मीडिया में भी काफी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने गुजरात सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। सोशल मीडिया पर सवाल उठाया गया है कि सामूहिक बलात्कार में दोषी करार दिए गए मुजरिमों को आखिर क्यों और किस आधार पर छोड़ दिया गया। 

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क़मर वहीद नक़वी
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