loader
फाइल फोटो

पाँच साल क्यों लगे सीएए के नियम बनने में; क्या चुनाव है वजह?

लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के नियमों को अधिसूचित किये जाने की रिपोर्ट है। सीएए दिसंबर 2019 में अधिनियमित किया गया था और 10 जनवरी, 2020 को लागू हुआ, लेकिन सीएए नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है। इसी वजह से अभी तक इस क़ानून के तहत किसी को नागरिकता नहीं दी जा सकी है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इन देशों के हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय के उन लोगों को नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे।

तो सवाल है कि क़रीब पाँच साल में भी इसके नियमों को अधिसूचित क्यों नहीं किया जा सका? और संसद के नियम क्या कहते हैं? इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि सीएए लाने का मक़सद क्या है और इसको लेकर बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन क्यों हुए हैं। 

ताज़ा ख़बरें

सीएए 2019 के अंत में और 2020 की शुरुआत में देश में प्रमुख मुद्दा था। इसको लेकर देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। इस क़ानून को भेदभावपूर्ण क़रार दिया गया था और इसकी व्यापक रूप में आलोचना की गई थी। ऐसा इसलिए था कि यह धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करता है। आलोचकों का कहना है कि नियोजित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर या एनआरसी के साथ इस क़ानून से लाखों मुसलमान अपनी नागरिकता खो देंगे। हालांकि, केंद्र का कहना है कि कोई भी भारतीय अपनी नागरिकता नहीं खोएगा। जबकि पहले गृह मंत्री अमित शाह क़्रोनोलॉजी समझाते हुए कह चुके हैं कि सीएए के बाद एनआरसी और फिर एनपीआर आएगा। 

इसी आशंका को देखते हुए देश भर के अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। जामिया के शाहीन बाग में महिलाओं ने शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन किया था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भी बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था। यूपी में कई जगहों पर ऐसे ही प्रदर्शन किए गए थे। उत्तर पूर्वी राज्यों में भी तब बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। कई जगहों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने के आरोप में बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया था। कई जगहों पर लोगों के मारे जाने की ख़बर भी आई थी। 

शाहीन बाग का आंदोलन तीन महीने से ज़्यादा समय तक चला था। कंपकंपाती सर्द रात में भी महिलाएँ डटी रहीं। इस बीच उनको हटाने की लगातार कोशिशें हुईं। सुप्रीम कोर्ट तक में मामला गया। और आख़िरकार कोविड लॉकडाउन के दौरान उन्हें बड़ी मुश्किल से हटाया गया। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भी बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुआ था। तब पुलिस पर आरोप लगा था कि उसने जामिया के होस्टल में घुसकर छात्रों पर लाठी चार्ज किया था। हालाँकि पुलिस इन आरोपों को खारिज करती रही। 
caa rules to be notified before lok sabha election - Satya Hindi

शाहीन बाग़ जैसा विरोध प्रदर्शन होने पर मौजपुर जाफराबाद क्षेत्र में तब दंगा हो गया था जब उस प्रदर्शन के विरोध में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा की अगुवाई में सैकड़ों लोग मौजपुर इलाक़े में जमा हो गये थे और इसके बाद क़ानून के विरोध में और समर्थन में उतरे लोगों के बीच पत्थरबाज़ी हुई थी। इसके बाद दंगा हो गया था।

यूपी में सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के दौरान पथराव की घटनाएँ हुई थीं। आरोप लगाया गया था कि प्रदर्शन करने वालों ने सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया। तब बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया गया था। योगी सरकार की ओर से सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान की भरपाई को लेकर एक कानून बनाया गया था। इसके तहत बड़ी संख्या में लोगों को नोटिस जारी किए गए थे। इस कानून के मुताबिक़ किसी को अगर सरकारी या निजी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने का दोषी पाया जाता है तो उसे 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है या फिर जेल में जाना पड़ सकता है। जब यह मामला शीर्ष अदालत में पहुँचा था तो सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ सरकार से कहा था कि वह नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों से वसूल की गई रकम को उन्हें वापस लौटाए। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि उसने इस मामले में जारी किए गए वसूली के 274 नोटिसों को वापस ले लिया है।

तब नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर पूर्वोत्तर अशांत हो गया था। मेघालय में इस क़ानून को लेकर खासी स्टूडेंट्स यूनियन और ग़ैर आदिवासियों के बीच हुई झड़प में कई लोगों की मौत हो गयी थी। असम में भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन हुए थे।

जेएनयू के छात्र शरजील इमाम के ख़िलाफ़ नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के दौरान अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय और दिल्ली के जामिया इलाक़े में भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे थे। उनपर राजद्रोह का केस चला। 

देश से और ख़बरें

कोविड लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे विरोध प्रदर्शन बंद हो गए। इसके बाद भी सीएए के नियमों को अधिसूचित नहीं किया जा सका। हालाँकि, जब तक उठते सवालों पर गृहमंत्री अमित शाह कहते रहे कि कोरोना संक्रमण ख़त्म होने के बाद इसको लागू किया जाएगा। अगस्त 2022 में अमित शाह ने कहा था कि सीएए कोविड वैक्सीनेशन अभियान पूरा होने के बाद लागू करने की प्रक्रिया शुरू होगी।

इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुँच गया। कई लोगों ने सीएए को धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाला बताते हुए चुनौती दी। तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके ने 2022 में सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र दाखिल करके सीएए को देश की धर्मनिरपेक्षता के ताने-बाने के खिलाफ बताया। उसने कहा कि सीएए धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। यह तमिल लोगों के खिलाफ है। तमिलनाडु और डीएमके पहला ऐसा राज्य और पार्टी है जो सीएए के खिलाफ कोर्ट पहुंची। 

ख़ास ख़बरें

अब ख़बर आई है कि लोकसभा चुनाव से पहले इसको अधिसूचित किया जाएगा। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार एक अधिकारी ने कहा कि सीएए के तहत आवेदन, प्रसंस्करण और नागरिकता देने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा एक ऑनलाइन प्रणाली ढूंढी जा रही है।

पदाधिकारी ने कहा, 'नियम तैयार हैं और ऑनलाइन पोर्टल भी मौजूद है और पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। आवेदकों को उस वर्ष की घोषणा करनी होगी जब उन्होंने यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था। आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। जो लोग पहले ही नागरिकता के लिए आवेदन कर चुके हैं उन्हें नए सिरे से आवेदन करने की आवश्यकता नहीं होगी।'

तो सवाल है कि ऐन चुनाव से पहले ही सीएए के नियमों को अधिसूचित क्यों किया जा रहा है? संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के अनुसार, किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए या लोकसभा और राज्यसभा में अधीनस्थ कानून पर समितियों से विस्तार मांगा जाना चाहिए। सवाल है कि छह महीने के अंदर ही नियमों को अधिसूचित क्यों नहीं किया गया? क्या 2024 का इंतज़ार हो रहा था? चुनावों से पहले ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप झेलती रही बीजेपी क्या किसी चुनावी मक़सद से इसे अब अधिसूचित करने जा रही है?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें