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तीन तलाक़ पर मोदी सरकार के रवैये से मुसलिम समाज में बेचैनी

एक अमरीकी दार्शनिक ने कहा है कि अगर आप कोई काम ठीक उसी तरह करते हैं जैसे कि आपसे पहले लोगों ने किया है तो यक़ीन जानिए आपको उसके नतीजे ठीक वैसे ही मिलेंगे जैसे आप से पहले लोगों को मिले हैं। यह बात तीन तलाक़ विधेयक को लेकर बिल्कुल सही बैठती है। प्रचंड बहुमत पाकर देश में दोबारा बनी मोदी सरकार इस विधेयक को ठीक उसी तरह पास कराना चाहती है जैसे कि उसने अपने पहले कार्यकाल में पास कराने की कोशिश की थी। तब सरकार ने यह विधेयक लोकसभा में तो पास करा दिया था लेकिन कई बार कोशिश करने के बावजूद राज्यसभा में वह इसे पास नहीं करा पाई थी।
मोदी सरकार ने इस विधेयक को प्राथमिकता सूची में रखा है और वह इसे इसी सत्र में पास कराने की कोशिश कर रही है। लेकिन न सरकार का रवैया बदला है और ना ही विपक्ष का। लिहाजा, यह तय है कि पिछली बार इस विधेयक का जो हश्र हुआ था वही इस बार भी होगा।
जैसा कि नियम है कि लोकसभा भंग होते ही लोकसभा में पास हुए वे सभी विधेयक निरस्त हो जाते हैं जो राज्यसभा में पास नहीं हो पाते हैं और नई लोकसभा में उन विधेयकों को दोबारा से पेश करना पड़ता है। पिछली लोकसभा में तीन तलाक़ विधेयक पास हो चुका था लेकिन राज्यसभा में यह पास नहीं हो पाया था। लिहाज़ा, मोदी सरकार को अध्यादेश के रूप में इसे लागू करना पड़ा था। पिछली लोकसभा भंग होते ही यह विधेयक निरस्त हो गया है। लिहाज़ा सरकार को इस विधेयक को लोकसभा में भी नए सिरे से पास कराना होगा।
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एक बार फिर सरकार बनने पर मोदी मंत्रिमंडल ने तीन तलाक़ विधेयक को संशोधित रूप में मंजूरी देकर संसद में पास कराने का मन बना लिया है। वहीं, कांग्रेस ने इसके विरोध का ऐलान कर दिया है। सरकार के लिए परेशानी की बात यह है कि एनडीए में शिवसेना के बाद बीजेपी की सबसे बड़ी सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी इस विधेयक का विरोध करने का फ़ैसला किया है। जेडीयू ने पहले भी इसका विरोध किया था। 
जेडीयू के विरोध के बावजूद मोदी सरकार लोकसभा में इस विधेयक को पास करा सकती है। क्योंकि लोकसभा में उसके पास प्रचंड बहुमत है। लेकिन राज्यसभा में इस विधेयक का लटकना तय माना जा रहा है।
मोदी सरकार के इस विधेयक को पास कराने का ऐलान करने के साथ ही कांग्रेस ने अपने एतराज़ खुलकर सामने रखे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने कांग्रेस की तरफ से कहा है कि पार्टी ने सरकार के साथ इस मुद्दे पर चिंता जाहिर की है। सरकार ने कुछ बिंदुओं पर सहमति जताई है और कुछ बिंदुओं पर अभी बातचीत चल रही है। कांग्रेस कह रही है कि सरकार कुछ बिंदुओं पर ग़ैर ज़रूरी तौर पर अपनी ज़िद पर अड़ी हुई है। सिंघवी के मुताबिक़, कांग्रेस का स्पष्ट मानना है कि किसी भी समुदाय पर सरकार अपनी मनमर्जी से कोई क़ानून नहीं थोप सकती। कांग्रेस ने साफ़ कर दिया है कि अगर सरकार इस विधेयक में तलाक़ देने वाले पति को 3 साल की सजा देने वाला प्रावधान नहीं हटाती है तो वह इसे पास नहीं होने देगी। लगभग यही बात जेडीयू ने भी कही है।
जेडीयू का साफ़ कहना है कि देश की क़रीब 15% आबादी वाले एक धार्मिक समुदाय पर ज़बरदस्ती कोई क़ानून थोपना मुनासिब नहीं है। यह धार्मिक मामला है। इसमें कोई भी सुधार धार्मिक समुदाय के अंदर से ही किया जाना चाहिए।
मुसलिम समाज में मोदी सरकार के तीन तलाक़ विधेयक को लेकर ज़िद्दी रवैये से हैरानी है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एनडीए की पहली ही बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलिम समुदाय का भरोसा जीतने की ज़रूरत पर जोर दिया था। हालाँकि सरकार की तरफ़ से इसके लिए कुछ प्रयास भी किए गए। अगले 5 साल में 5 करोड़ मुसलिम छात्रों को छात्रवृत्ति देने के ऐलान के साथ ही मदरसों का आधुनिकीकरण करने का भी एजेंडा सरकार ने सामने रखा है। लेकिन तीन तलाक़ विधेयक पर सरकार के ज़िद्दी रवैये से मुसलिम समाज में बेचैनी है। मुसलिम समाज इसे अपने अंदरूनी मामलों में सरकार की बेजा दखलअंदाजी मानता है।
मुसलिम समाज में एक साथ तीन तलाक़ का विरोध कर रहे तमाम संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे एक साथ तीन तलाक़ के तो ख़िलाफ़ हैं लेकिन ऐसे किसी क़ानून के पक्ष में नहीं हैं, जिसमें तलाक़ देने वाले को तीन साल के लिए जेल भेजने का प्रावधान हो।

सरकार की नीयत पर सवाल

एक साथ तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाली महिला संगठनों की भी इस मुद्दे पर यही राय है। लेकिन इसके बावजूद सरकार विधेयक को मौजूदा स्वरूप में ही संसद में पास कराने पर अड़ी है। इसे लेकर सरकार की नीयत पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं। ये सवाल तब और भी गंभीर हो जाते हैं जब सरकार देश के मुसलिम समुदाय का भरोसा जीतने की कोशिश करने की बात कह रही हो।
यहाँ ग़ौरतलब है कि जिन मुसलिम देशों ने एक साथ तीन तलाक़ पर पाबंदी लगाई हुई है, वहाँ भी तलाक़ देने वाले शौहर को जेल भेजने का प्रावधान नहीं है। दूसरी बात, देश में मुसलिम समुदाय के अलावा बाक़ी समुदायों में भी तलाक़ का प्रावधान तो है लेकिन किसी भी समुदाय में तलाक़ देने वाले व्यक्ति को जेल भेजने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार आख़िर मुसलिम समाज में ही तलाक़ देने वाले को जेल भेजने का प्रावधान क्यों करना चाहती है? 
एक तरफ तो देश के क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद बार-बार यह कहते हैं कि सरकार तीन तलाक़ का मुद्दा लैंगिक समानता के आधार पर हल करना चाहती है और दूसरी तरफ़ तलाक़ देने वाले को तीन साल की सज़ा देने वाले प्रावधान पर अड़े हुए हैं। कुछ मुसलिम संगठनों का यह भी कहना है कि अगर तलाक़ को अपराध ही बनाना है तो सभी समुदायों पर यह प्रावधान समान रूप से लागू किया जाए तभी लैंगिक समानता का सिद्धांत लागू होगा।
बता दें कि अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक़ को अमान्य क़रार दिया था और सरकार से इस पर कोई रोल बनाने को कहा था। सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा में तीन तलाक़ विधेयक पास कराया था लेकिन राज्यसभा में कई बार कोशिशों के बावजूद वह इसे पास नहीं करा पाई। 
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ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड शुरू से ही इस विधेयक के ख़िलाफ़ रहा है। उसने सरकार पर दबाव बनाने के लिए देशभर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन भी किए हैं। लाखों मुसलिम महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर इस विधेयक के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। लेकिन सरकार अपने रवैये से टस से मस नहीं हुई है। अभी भी सरकार अपने रुख़ पर क़ायम है कि एक साथ तीन तलाक़ देने वाले शौहर को 3 साल की जेल के साथ आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाए। 
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के झंडे के नीचे कई और मुसलिम संगठन भी नए सिरे से इस विधेयक का विरोध करने के लिए तैयार हैं।
ग़ौरतलब है कि सरकार ने तीन तलाक़ विधेयक पर आम सहमति बनाने की कोई कोशिश नहीं की। न तो कभी सरकार की तरफ़ से इस मुद्दे पर कोई सर्वदलीय बैठक बुलाई गई और ना ही मुसलिम संगठनों से कोई बात की गई। इसलिए सरकार के रवैये से लगता है कि वह ज़बरदस्ती मुसलिम समुदाय पर यह फ़ॉर्म थोपना चाहती है।

सरकार की कोशिशों से यह संदेश जाता है कि सरकार इस क़ानून के सहारे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की तरफ़ बढ़ रही है। जैसा कि बीजेपी और संघ परिवार पहले से कहते आ रहे हैं कि केंद्र और राज्यों में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद वे इस मुद्दे पर आगे बढ़ेंगे। एक तरफ़ तो सरकार मुसलिम समुदाय का भरोसा जीतने की बात कर रही है और दूसरी तरफ़ एक साथ तीन तलाक़ जैसे मुद्दे पर सख़्त क़ानून बनाकर मुसलिम समुदाय को नाराज़ कर रही है। इससे तो यह लगता है कि भरोसा जीतने वाली बात महज़ एक शगूफ़ा है।

दरअसल, यह माना जा रहा है कि इस क़ानून के बहाने मोदी सरकार अपने कट्टर समर्थकों को संदेश देना चाहती है कि वह मुसलिम समुदाय के साथ सख़्ती से पेश आ रही है। इससे बीजेपी का कट्टर समर्थक वर्ग खुश होता है और उसे अपने साथ बाँधे रखना बीजेपी की पहली प्राथमिकता होती है। लेकिन मोदी सरकार का यह रवैया मुसलमानों का भरोसा जीतने में उसकी मदद तो नहीं करेगा बल्कि मुसलमानों के साथ उसकी खाई को और चौड़ा करेगा। और अंत में एक बार फिर यह कहना होगा कि जिस तरह एनडीए के अंदर से ही इस विधेयक का विरोध हो रहा है उससे यह भी लगता है कि सरकार के लिए इसे राज्यसभा में पास कराना उसी तरह टेढ़ी खीर साबित होगा जैसा उसके पहले कार्यकाल में हुआ था।
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यूसुफ़ अंसारी
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