मनरेगा को ख़त्म कर नए क़ानून लाने की मोदी सरकार की तैयारी को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि योजना से ‘गांधी’ नाम हटाया जाएगा और ‘RAM’ के नाम पर गरीबों को दंडित किया जाएगा।
मोदी सरकार को मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम से क्या दिक्कत है? यदि दिक्कत नहीं है तो फिर इसको निरस्त कर नया रोजगार विधेयक पेश करने की तैयारी क्यों है? रिपोर्ट है कि केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में एक अहम विधेयक पेश करने की तैयारी कर रही है। इस नए विधेयक का नाम विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) बिल, 2025 है। यानी नये विधेयक में महात्मा गांधी का नाम गायब है। गांधी जी का नाम हटाए जाने पर विवाद बढ़ेगा, क्योंकि हाल में जब नाम बदले जाने के कयास लगाए गए तभी कांग्रेस ने इस पर आपत्ति की थी। इधर, सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा है कि RAM के नाम पर राज्यों और गरीबों को सज़ा दी जा रही है, उनके साथ धोखा किया जा रहा है'
यह विधेयक ग्रामीण परिवारों को अकुशल मैनुअल कार्य के लिए प्रति वर्ष 100 दिनों की बजाय 125 दिन रोजगार देगा। लेकिन इसमें फंडिंग का बोझ राज्यों पर बढ़ जाएगा। सरकार ने सोमवार को लोकसभा सदस्यों के बीच इस विधेयक की प्रति दी है। विधेयक का उद्देश्य 'विकसित भारत 2047' की राष्ट्रीय दृष्टि के अनुरूप ग्रामीण विकास ढांचा स्थापित करना बताया गया है।
नए विधेयक में खास क्या?
- हर ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों का वैतनिक रोजगार मिलेगा। यह मौजूदा मनरेगा के 100 दिनों से ज्यादा है।
- सार्वजनिक कार्यों पर जोर है। मुख्य थीम है- जल सुरक्षा, कोर ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, आजीविका संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर और चरम मौसम घटनाओं से निपटने के विशेष कार्य।
- मनरेगा में मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र वहन करता था, लेकिन नए कानून में केंद्र और राज्य 60:40 अनुपात में खर्च साझा करेंगे। इससे राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
- पीक एग्रीकल्चरल सीजन (बुवाई और कटाई) में कुल 60 दिनों तक योजना के तहत कार्य रोके जा सकते हैं, ताकि मजदूर निजी खेतों में उपलब्ध रहें।
- बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन, जियो-टैगिंग, साप्ताहिक मजदूरी भुगतान और शिकायत निवारण तंत्र अनिवार्य।
- केंद्र द्वारा सेंट्रल ग्रामीण रोजगार गारंटी काउंसिल और राज्यों द्वारा स्टेट काउंसिल का प्रावधान।
- मांग-आधारित की बजाय केंद्र द्वारा निर्धारित आवंटन, जो बजट की भविष्यवाणी आसान बनाएगा लेकिन विपक्ष इसे अधिकार का कमजोर होना बता रहा है।
गांधी जी का नाम हटाने पर सवाल
नए विधेयक में मनरेगा से 'महात्मा गांधी' का नाम पूरी तरह हटाया जा रहा है, जिस पर विपक्ष ने कड़ा विरोध जताया है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, 'वे महात्मा गांधी का नाम क्यों हटा रहे हैं? महात्मा गांधी इस देश के, दुनिया के और इतिहास के सबसे महान नेताओं में से एक हैं। मुझे समझ नहीं आता कि यह क्यों किया जा रहा है।' उन्होंने आगे कहा कि योजना का नाम बदलने से कार्यालयों, स्टेशनरी आदि में बदलाव के लिए सरकारी खर्च बढ़ेगा और यह अनावश्यक है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'यह केवल महात्मा गाँधी नरेगा के नाम बदलने की बात नहीं है। यह BJP-RSS की MGNREGA को ख़त्म करनी साज़िश है। संघ के सौ साल पर गाँधी का नाम मिटाना ये दिखाता है कि जो मोदी जी विदेशी धरती पर बापू को फूल चढ़ाते हैं, वो कितने खोखले और दिखावटी हैं।'
मनरेगा को ख़त्म किया जा रहा है: जॉन ब्रिटास
अन्य विपक्षी नेताओं ने इसे 'रोजगार के अधिकार का अंत' बताया। सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा कि यह मनरेगा की मूल संरचना को तोड़ रहा है, केंद्र की भूमिका बढ़ा रहा है और राज्यों पर अव्यावहारिक बोझ डाल रहा है। उन्होंने कहा, 'G RAM G का मतलब है केंद्रीय नियंत्रण, राज्य का फंड और सशर्त अधिकार। वही मज़दूर। कम अधिकार। ज़्यादा बोझ। यह बिल MGNREGA में सुधार नहीं करता - यह इसे वित्तीय, संस्थागत और नैतिक रूप से खत्म कर देता है। कुल मिलाकर: RAM के नाम पर राज्यों और गरीबों को सज़ा दी जा रही है, उनके साथ धोखा किया जा रहा है और आर्थिक रूप से उनका बलिदान दिया जा रहा है।'केंद्र की योजना को जॉन ब्रिटास की नज़र से समझें
जॉन ब्रिटास ने कहा है कि VB–G RAM G बिल MGNREGA को खत्म कर रहा है, महात्मा गांधी का नाम हटाना तो सिर्फ़ ट्रेलर था, असली नुकसान कहीं ज़्यादा गहरा है। उन्होंने कहा, 'सरकार ने अधिकार-आधारित गारंटी कानून की आत्मा को खत्म कर दिया और उसकी जगह एक शर्तिया, केंद्र द्वारा नियंत्रित योजना ले आई, जो राज्यों और मज़दूरों के खिलाफ है। '125 दिन' तो हेडलाइन है। 60:40 असली बात है- MGNREGA अकुशल मज़दूरी के लिए पूरी तरह से केंद्र द्वारा फंडेड था; G RAM G इसे डाउनग्रेड करता है, जिसमें राज्यों को 40% खर्च उठाना होगा। राज्यों को अब लगभग 50,000+ करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। अकेले केरल को 2,000–2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा। यह चुपके से लागत को शिफ्ट करना है, सुधार नहीं। यह नया संघवाद है: राज्य ज़्यादा भुगतान करते हैं, केंद्र बच निकलता है, फिर भी क्रेडिट लेता है।'
केंद्र तय करेगा आवंटन
उन्होंने आगे कहा, 'MGNREGA मांग-आधारित था: अगर कोई मज़दूर काम मांगता था, तो केंद्र को भुगतान करना पड़ता था - G RAM G इसे केंद्र के पहले से तय नॉर्मेटिव आवंटन और सीमाओं से बदल देता है। जब फंड खत्म हो जाते हैं तो अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। एक कानूनी रोज़गार गारंटी राज्यों के खर्च पर एक केंद्र द्वारा प्रबंधित प्रचार योजना बनकर रह जाती है।'पंचायत दरकिनार!
ब्रिटास ने कहा, 'पंचायतों को किनारे कर दिया गया, डैशबोर्ड को सशक्त बनाया गया - MGNREGA स्थानीय ज़रूरतों के आधार पर काम की योजना बनाने के लिए ग्राम सभाओं और पंचायतों पर भरोसा करता था - G RAM G GIS टूल, PM गति शक्ति लेयर्स और केंद्रीय डिजिटल स्टैक को अनिवार्य करता है। स्थानीय प्राथमिकताओं को एक विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक के माध्यम से फिल्टर किया जाता है। यह बायोमेट्रिक्स, जियो-टैगिंग, डैशबोर्ड और AI ऑडिट को कानूनी बनाता है। लाखों ग्रामीण मज़दूरों के लिए, तकनीकी विफलता का मतलब होगा कि बिना अपील वे बाहर हो जाएँगे।
उन्होंने कहा कि विकेंद्रीकरण की जगह केंद्रीकृत टेम्पलेट्स है। उन्होंने कहा, "इससे भी बुरा, G RAM G कृषि मौसमों के नाम पर हर साल 60 दिनों तक काम को निलंबित करने का आदेश देता है। रोज़गार गारंटी या श्रम नियंत्रण? योजना के मज़दूरों को कानूनी तौर पर कहा जाता है: काम मत करो। कमाओ मत। इंतज़ार करो। मज़दूरों को निजी खेतों में धकेलने के लिए सार्वजनिक कार्यों को रोकना कल्याण नहीं है - यह राज्य द्वारा प्रबंधित श्रम आपूर्ति है, जो मज़दूरों से मज़दूरी, पसंद और गरिमा छीन लेती है।"यूपीए सरकार ने 2005 में लागू किया था मनरेगा
मनरेगा को यूपीए सरकार ने 2005 में लागू किया था और 2009 में इसके नाम में महात्मा गांधी जोड़ा गया। यह दुनिया की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है, जो ग्रामीण गरीबी कम करने, स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने और महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण रही है। हालांकि, सरकार का तर्क है कि ग्रामीण भारत बदल गया है, गरीबी घटी है, डिजिटल पहुंच बढ़ी है, इसलिए नई, आधुनिक योजना की जरूरत है।
बहरहाल, मोदी सरकार द्वारा यह विधेयक संसद में पेश किए जाने पर जोरदार बहस का विषय बनेगा। विपक्ष इसे मनरेगा को ख़त्म करना बता रहा है, जबकि सरकार इसे आधुनिक, इंफ्रास्ट्रक्चर-केंद्रित और डिजिटल रूप में सुधार बता रही है। शीतकालीन सत्र 19 दिसंबर को समाप्त होगा, इसलिए विधेयक पर चर्चा और मतदान जल्द हो सकता है। ग्रामीण भारत की लाखों परिवारों की आजीविका से जुड़ा यह बदलाव राजनीतिक रूप से संवेदनशील साबित हो सकता है।