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सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे: चुनाव आयोग में कम हुआ वोटरों का विश्वास

सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव पूर्व आए सर्वेक्षण में कहा गया है कि चुनाव आयोग में पहले की अपेक्षा मतदाताओं का भरोसा कम हुआ है। सर्वेक्षण में तुलना पाँच साल पहले से की गई है।

2019 में सीएसडीएस-लोकनीति द्वारा किए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में आधे से अधिक मतदाताओं यानी 51 फ़ीसदी ने कहा था कि उन्हें चुनाव आयोग पर बहुत भरोसा है। इस बार यह घटकर एक-चौथाई से कुछ अधिक यानी 28 फ़ीसदी रह गया है। 2019 में 27 फ़ीसदी ने कहा था कि कुछ हद तक भरोसा है, जबकि इस बार यह थोड़ा सा बढ़कर 30 फीसदी हो गया है। हालाँकि उन लोगों में मामूली वृद्धि हुई है जिनका चुनाव आयोग पर कुछ भरोसा है, लेकिन जिन लोगों का ज्यादा भरोसा नहीं है या बिल्कुल भी भरोसा नहीं है उनका प्रतिशत पांच साल पहले की तुलना में दोगुना हो गया है।

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2019 में 7 फ़ीसदी लोगों ने कहा था कि चुनाव आयोग पर ज़्यादा भरोसा नहीं है, वहीं 2024 में 14 फीसदी लोगों ने कहा कि उनको ज़्यादा भरोसा नहीं है। द हिंदू के साथ किए गए सीएसडीएस-लोकनीति के इस सर्वेक्षण के अनुसार पाँच साल पहले जहाँ 5 फ़ीसदी लोगों ने कहा था कि उन्हें ईसी पर बिल्कुल ही भरोसा नहीं है, वहीं अब 9 फीसदी लोगों ने कहा है कि उनको बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। चुनाव आयोग के कामकाज के तरीक़े के बारे में लोगों की धारणा में साफ़ तौर पर गिरावट देखी गई है। 

इसी से जुड़ा हुआ मामला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों यानी ईवीएम के संबंध में है। ईवीएम में हेरफेर की गुंजाइश से जनता का विश्वास डिगा है। सर्वे किए गए लोगों में से छठे हिस्से का मानना है कि सत्तारूढ़ दल द्वारा ईवीएम में हेरफेर की बहुत गुंजाइश है। 10 में से करीब तीन का मानना है कि हेरफेर की कुछ गुंजाइश है। इनको जोड़ दिया जाए तो ऐसे लोगों की संख्या क़रीब आधी हो जाती है। एक-चौथाई से कुछ अधिक लोगों का साफ़ तौर पर विश्वास था कि ईवीएम में गंभीर हेरफेर नहीं किया जा सकता है। 

सीएसडीएस-लोकनीति का यह सर्वे तब आया है जब विपक्षी दल हाल के दिनों में चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं। चाहे वह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया का मामला हो या फिर पीएम मोदी सहित कई बीजेपी नेताओं के भाषण के ख़िलाफ़ शिकायत का मामला। हाल ही एक मामला 'शक्ति' शब्द के इस्तेमाल को लेकर आया था।
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनकी 'शक्ति' टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया था। लेकिन भाजपा ने उल्टा राहुल के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत कर दी। हालांकि पीएम मोदी के खिलाफ भी शिकायतें आयोग में पहुंचीं लेकिन उनका संज्ञान तक नहीं लिया गया।

विपक्षी इंडिया गठबंधन की ओर से भी कई दलों के नेता ईवीएम पर संदेह जताते रहे हैं। कुछ तो इसके ख़िलाफ़ खुलकर बोलते रहे हैं। पिछले महीने ही ईवीएम को लेकर राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर बड़ा हमला किया है। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ईवीएम के बिना नहीं जीत सकते हैं। उन्होंने कहा कि 'राजा की आत्मा ईवीएम, ईडी, सीबीआई, सभी संस्थाओं में है'। उन्होंने कहा, 'मैं आपको बता रहा हूँ, ईवीएम के बिना नरेंद्र मोदी चुनाव नहीं जीत सकता है। इलेक्शन कमीशन से हमने कहा कि एक काम कीजिए- विपक्ष की पार्टी को ये मशीनें दिखा दीजिए, खोलकर हमें दिखा दीजिए। ये मशीनें कैसे चलती हैं, हमारे एक्सपर्ट को दिखा दीजिए लेकिन नहीं दिखाया। फिर हमने कहा कि इसमें से कागज निकलता है, वोट मशीन में नहीं है, वोट कागज में है। ठीक है, मशीन चलाइए, कागज की गिनती कर दीजिए। इलेक्शन कमीशन कहता है कि गिनती नहीं होगी। क्यों नहीं होगी? कैसे नहीं होगी? सिस्टम नहीं चाहता है कि ईवीएम की गिनती हो जाए।'

कुछ एक्टिविस्ट भी ईवीएम को लेकर आशंका जताते रहे हैं और उनमें से कुछ तो सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गए हैं। हालाँकि चुनाव आयोग इन शंकाओं को खारिज करता रहा है और दावा करता रहा है कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित हैं और इसके साथ छेड़छाड़ संभव नहीं है।

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वकील महमूद प्राचा ने देश में सभी चुनाव ईवीएम के बजाय मतपत्रों से कराने का निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। उत्तर प्रदेश के रामपुर निर्वाचन क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में आगामी लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्राचा ने तर्क दिया है कि 1951 के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और 1961 के चुनाव संचालन नियमों के तहत सिर्फ मतपत्र का इस्तेमाल करके चुनाव कराने का कानून है।

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित एक मामले में अंतरिम आवेदन के रूप में दायर की गई है। उस मामले में, शीर्ष अदालत ने चुनावों में वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर भारत चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। 

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क़मर वहीद नक़वी
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