दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामले में मंगलवार को जब देवांगना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को जमानत दी तो सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस को जमकर फटकार लगाई। एक तरह से कहा जाना चाहिए कि अदालत ने पुलिस की चार्जशीट को सिरे से खारिज कर दिया।
‘असहमति की आवाज़ और आतंकी कृत्य के बीच फर्क धुंधला होना लोकतंत्र के लिए दुखद’
- देश
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- 16 Jun, 2021
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामले में मंगलवार को जब देवांगना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को जमानत दी तो सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस को जमकर फटकार लगाई।

इन तीनों के ख़िलाफ़ पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों को लेकर यूएपीए क़ानून के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था। देवांगना और नताशा पिंजड़ा तोड़ आंदोलन की कार्यकर्ता हैं जबकि आसिफ़ जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के छात्र हैं।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस एजे भामभानी की बेंच ने इन्हें जमानत देते वक़्त कहा, “ऐसा लगता है कि सरकार के मन में असहमति की आवाज़ को दबाने की चिंता है। संविधान की ओर से दिए गए विरोध के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का अंतर हल्का या धुंधला हो गया है। अगर इस तरह की मानसिकता बढ़ती है तो यह लोकतंत्र के लिए दुखद दिन होगा।”