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हंगर इंडेक्स: सच क्या- तरक्की के दावे या 'बीमार' भारत का भविष्य?

तरक्की के कितने ही बड़े से बड़े दावे किए जा रहे हों, लेकिन एक सच यह भी है कि कुपोषण के मामले में भारत में हालत ख़राब है। कुपोषण का साफ़ अर्थ यह है कि शरीर की ज़रूरतों के हिसाब से भोजन नहीं मिलना। यानी इसका एक मतलब यह भी हुआ कि भूखे रहने की स्थिति है। इसीलिए कुपोषण की स्थिति को बताने के लिए जो रिपोर्ट जारी की जाती है उसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी वैश्विक भूख सूचकांक नाम दिया गया है। 

हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 117 देशों में 102 पायदान पर रहा। भारत उन 45 देशों में शामिल है जिनमें भूख का स्तर बेहद गंभीर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत में 6 से 23 महीने की उम्र के सभी बच्चों में से सिर्फ़ 9.6 प्रतिशत को ही ज़रूरी भोजन मिल पाता है।

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पोषण पर व्यापक राष्ट्रीय सर्वे बताता है कि भारत में बच्चों की सेहत ख़राब है। इस महीने की शुरुआत में व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (सीएनएनएस) ने 30 राज्यों में 0 से 19 वर्ष की आयु के 1.12 लाख से अधिक बच्चों पर सर्वेक्षण किया जिसमें चिकित्सा स्वास्थ्य और उससे संबंधित प्राथमिक जानकारी जुटाई गई। सर्वेक्षण एक बेहद भयावह स्थिति की तरफ़ इशारा करता है। सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत के सबसे स्वस्थ बच्चे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों और केरल में रहते हैं लेकिन इन्हीं राज्यों के बच्चे ‘जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों’ का सामना कर रहे हैं। सर्वेक्षण में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आयी है कि देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से कुछ जैसे; गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा में बच्चों की सेहत ख़राब है। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य गुजरात बच्चों के लिए देश का सबसे अस्वस्थ राज्य है।

सर्वेक्षण ने व्यापक स्वास्थ्य संकेतकों को ध्यान में रखते हुए 50 से ज़्यादा संकेतकों को समेट कर आहार, कुपोषण, आयरन की कमी, माइक्रो न्यूट्रिएंट यानी सूक्ष्म पोषण की कमी, असंक्रामक रोग और मोटापा के 6 उप-संकेतकों के आधार पर अंतिम सूची बनाई।

राज्य, जहाँ के बच्चे  जूझ रहे हैं ख़राब सेहत से 

सर्वेक्षण में पाया गया गया कि देश के धनी राज्यों जिसमें दक्षिण और उत्तर-पूर्व के बच्चे शामिल हैं, में भारत के सबसे सेहतमंद बच्चे रहते हैं जबकि गंगा नदी से जुड़े राज्यों में भारत के सबसे बीमार बच्चे रहते हैं। हालाँकि कुछ महत्वपूर्ण अपवाद भी हैं जैसे पश्चिम बंगाल और ओडिशा अपने बच्चों को अपनी आय के हिसाब से विभिन्न प्रकार के आहार सुनिश्चित कर रहे हैं। सर्वेक्षण में बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता में राजस्थान अपने क़रीबी राज्य गुजरात को कड़ी टक्कर दे रहा है। बच्चों के आहार की रैंकिंग में राजस्थान सबसे निचले 30वें पायदान पर है। कुपोषण में 24वें स्थान पर राजस्थान गुजरात से बस एक पायदान ऊपर है। ओवरऑल रैंकिंग में 18वें पायदान पर काबिज उत्तर प्रदेश बाल कुपोषण में 29वें स्थान पर है।

उत्तर के निर्धन राज्यों से इतर कुछ धनी राज्य- जैसे; महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश बच्चों की सेहत के प्रति उदासीन हैं। इन राज्यों का प्रदर्शन बच्चों को आयरन युक्त भोजन (प्राकृतिक, घर में बने या सुरक्षित) मुहैया करने में बेहद ख़राब है। इन सबके अलावा केवल तीन ऐसे राज्य हैं जो 6 से 23 माह के पाँच में से 1 बच्चे को न्यूनतम ज़रूरी आहार सुनिश्चित कर पाते हैं।

भारत में बच्चों में ख़ून की कमी के मामले लगातार तेज़ी से बढ़ रहे हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि धनी राज्यों- जैसे; पंजाब, हरियाणा और गुजरात में भारी संख्या में बच्चे ख़ून की कमी और आयरन की कमी के शिकार हैं।

सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के शरीर में अहम माइक्रो न्यूट्रिएंट का अध्ययन करते हुए पाया गया कि शरीर में आयरन की अधिकता उनके स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘माइक्रो न्यूट्रिएंट की कमी व अधिकता का बच्चों और किशोरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।’

गुजरात बनाम पश्चिम बंगाल

गुजरात में सभी बच्चों की एक चौथाई से अधिक संख्या विटामिन डी की कमी के शिकार हैं और 10-19 वर्ष की आयु के 50 प्रतिशत किशोरों में ज़िंक की कमी है। अपेक्षाकृत कम समृद्ध होने के बावजूद, पश्चिम बंगाल इन उप संकेतकों में बढ़िया प्रदर्शन कर रहे राज्यों में से एक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वीकृत व्यक्ति की सामान्य ऊँचाई के मानक के स्तर पर भारत के उत्तरी राज्य और गुजरात बेहद ख़राब स्थिति से गुज़र रहे हैं। ये परिणाम इस अध्ययन पर भी ज़ोर देते हैं कि भारत में ऊँचाई विशुद्ध रूप से आनुवंशिक रूप से निर्धारित नहीं है। उत्तर-पूर्वी राज्यों के बच्चों में उत्तरी राज्यों की तुलना में उनकी उम्र हिसाब से सामान्य रूप से कम ऊँचाई होती है।

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चुनौतियाँ

बच्चों को बेहतर पोषण देने वाले राज्यों में मोटापा और असंक्रामक रोग व जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का ख़तरा भी है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में 10% से अधिक किशोरों को उच्च रक्तचाप और सिक्किम और पश्चिम बंगाल में लगभग 5-9 साल के बच्चों को उच्च कोलेस्ट्रॉल का शिकार पाया गया है।

इन ख़तरों से निपटना उन राज्यों के लिए बड़ी चुनौती है जो पहले से निर्धनता से जूझ रहे हैं लेकिन अपनी ग़रीब जनता की देखभाल बेहतर ढंग से करना है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि वर्ष 2030 तक सतत विकास का लक्ष्य लेकर चल रहा भारत क्या अपने भविष्य के स्वास्थ्य के प्रति उदासीन है? आख़िर क्या वजह है कि राष्ट्रीय पोषण योजना जैसी बड़ी योजना अपने उद्देश्य में नाकाम हो रही है? यह बात भी ग़ौरतलब है कि हर साल सितम्बर माह को 'राष्ट्रीय पोषण माह' के रूप में मनाया जाता है जो कि बस अभी पिछले माह ही गुज़रा है और इस वर्ष की थीम 'पूरक आहार' थी।

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बीना पाण्डेय
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