ओडिशा सरकार ने पुरी जगन्नाथ मंदिर के अधिकारियों से पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के दीघा में 12वीं सदी के मंदिर की प्रतिकृति के हाल ही में हुए उद्घाटन से उपजे विवादों की जांच करने को कहा। यह पूरा विवाद क्या है, विस्तार से समझिएः

“जगन्नाथ धाम” नामकरण को लेकर विवाद

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दीघा में बने नए जगन्नाथ मंदिर को “जगन्नाथ धाम” के रूप में प्रचारित किया गया, जिससे ओडिशा के लोगों और पुरी के सेवकों में नाराज़गी फैल गई। पुरी भारत के चार धामों में से एक है और वहां का जगन्नाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। ऐसे में दीघा मंदिर को “धाम” कहने और यह प्रचार करने कि “अब पुरी जाने की जरूरत नहीं।” इस तरह की बातों को ओडिशा में धार्मिक और सांस्कृतिक अपमान के रूप में देखा जा रहा है।

यहां तक कि कुछ प्रचारों में यह दावा किया गया कि “भगवान जगन्नाथ पुरी छोड़कर दीघा चले आए”, जिसे ओडिशा में भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला बताया गया है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और धर्म की राजनीति का आरोप

विपक्षी पार्टियों, विशेषकर बीजेपी ने इस मंदिर के उद्घाटन को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार पर सार्वजनिक धन के दुरुपयोग और धर्म के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि यह धार्मिक स्थल नहीं बल्कि राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है, खासकर चुनावों के समय हिंदू वोटों को आकर्षित करने के लिए।

बीजेपी ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कभी "धर्मनिरपेक्षता" की बात करती हैं और कभी मंदिर बनवाती हैं। यह दोहरा रवैया है।

बंगाल सरकार ने इस परियोजना को धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के तौर पर बताया है।

ममता बनर्जी की भूमिका

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मंदिर परियोजना की शुरुआत से ही सक्रिय रही हैं।






ओडिशा सरकार की प्रतिक्रिया

ओडिशा सरकार ने विवाद को गंभीरता से लिया है। उसने ये कदम उठाए-




जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के पूर्व सदस्य और अंतरराष्ट्रीय रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने भी दीघा में नवनिर्मित मंदिर के लिए ‘जगन्नाथ धाम’ के उपयोग को लेकर समिति के अध्यक्ष गजपति महाराज दिव्यसिंह देब को पत्र लिखा है।

ओडिशा के उपमुख्यमंत्री पार्वती परिदा ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधते हुए कहा कि जो भी हिंदू संस्कृति और परंपराओं से छेड़छाड़ करेगा, उसे परिणाम भुगतने होंगे।