जिस लोकपाल पर देश में भ्रष्टाचार मिटाने का जिम्मा है, उसको लग्ज़री कारें चाहिए। जो बीएमडब्ल्यू कारें लोगों का सपना होती हैं वो कारें लोकपाल के हर सदस्य को देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। एक कार क़रीब 70 लाख की आती है। लोकपाल को सात कारें चाहिए क्योंकि इसके चेयरपर्सन जस्टिस एएम खानविलकर और छह सदस्य हैं। जस्टिस खानविलकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रहे हैं।

इसके लिए लोकपाल ने सात लग्जरी बीएमडब्ल्यू 3 सीरीज 330 ली कारें खरीदने के लिए आधिकारिक टेंडर जारी भी कर दिया है। प्रत्येक कार की कीमत करीब 70 लाख रुपये है तो कुल लागत लगभग 5 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह खबर सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में तेजी से फैल गई है, जहां इसपर तंज कसा जा रहा है। कुछ इसे मोदी सरकार की 'निष्क्रिय' संस्था बनाने की साजिश बता रहे हैं, तो कुछ लोग जनता के टैक्सपेयर्स के पैसे के दुरुपयोग पर सवाल उठा रहे हैं।
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लोकपाल के टेंडर में क्या कहा गया?

16 अक्टूबर 2025 को जारी टेंडर नोटिस में साफ़ तौर पर कहा गया है, 'लोकपाल ऑफ इंडिया प्रतिष्ठित एजेंसियों से सात बीएमडब्ल्यू 3 सीरीज 330 ली कारें आपूर्ति के लिए खुले टेंडर आमंत्रित करता है।' ये कारें चेयरपर्सन जस्टिस अजय मणिकराव खानविलकर और छह अन्य सदस्यों के लिए होंगी। बीएमडब्ल्यू की वेबसाइट के अनुसार, प्रत्येक 330 ली मॉडल की एक्स-शोरूम कीमत 60.45 लाख रुपये है, जबकि ऑन-रोड प्राइस करीब 70 लाख तक पहुंच जाती है। कंपनी का दावा है कि यह सेगमेंट की सबसे लंबी, आरामदायक और तकनीकी रूप से उन्नत कार है, जिसमें 'अद्भुत आराम और लग्जरी' का वादा किया गया है।

टेंडर की शर्तें भी चौंकाने वालीं

टेंडर की खास शर्तें आश्चर्यजनक हैं। कारें सफेद रंग की होनी चाहिए और डिलीवरी आदेश जारी होने के 15 दिनों के भीतर होनी चाहिए। टेंडर जीतने वाले विक्रेता को सात दिनों की ट्रेनिंग देनी होगी, जिसमें प्रत्येक ड्राइवर को कार चलाने के लिए कम से कम 50 किलोमीटर और अधिकतम 100 किलोमीटर की सुपरवाइज्ड ड्राइविंग शामिल है। ट्रेनरों की फीस, यात्रा, आवास, फ्यूल जैसे ट्रेनिंग का पूरा खर्च विक्रेता को वहन करना होगा। लोकपाल पर 'कोई अतिरिक्त व्यय' नहीं होगा। बोली 7 नवंबर 2025 को शाम 4 बजे से खुलेगी और भाग लेने के लिए 10 लाख रुपये का ईएमडी जमा करना अनिवार्य है। कारें दिल्ली के वसंत कुंज स्थित लोकपाल कार्यालय में डिलीवर होंगी।
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'लोकपाल को धूल में मिला दिया'

यह टेंडर जारी होते ही सोशल मीडिया पर विवादास्पद हो गया। वकील-कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने एक्स पर पोस्ट किया, 'मोदी सरकार ने लोकपाल को खाली रखकर और चापलूस सदस्यों की नियुक्ति करके धूल में मिला दिया। वे भ्रष्टाचार से परेशान नहीं, अपनी लग्जरी से खुश हैं। अब वे खुद के लिए 70 लाख की बीएमडब्ल्यू कारें खरीद रहे हैं!' 
कांग्रेस नेता सामा राम मोहन रेड्डी ने लिखा, 'भ्रष्टाचार से लड़ने वाला लोकपाल अब 5 करोड़ की सात लग्जरी बीएमडब्ल्यू कारें खरीद रहा है। मोदी सरकार के 11 वर्षों में उन्होंने एक भी भ्रष्टाचार का मामला हल किया है?'

पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने इसे 'अजीब' और 'टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी' कहा। अन्य यूजरों ने सवाल उठाया कि भ्रष्टाचार निरोधक संस्था क्यों भारतीय कारों के बजाय विदेशी लग्जरी चुन रही है?

अन्ना आंदोलन से निकला ऐसा लोकपाल!

लोकपाल का गठन 2013 के लोकपाल एंड लोकायुक्ता एक्ट के तहत 2019 में हुआ, जो 2011 के अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन का परिणाम था। यह सात सदस्यीय संस्था प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करती है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि मोदी सरकार ने इसे कमजोर किया: नियुक्तियां देरी से हुईं, और 11 वर्षों में कोई बड़ा केस सुलझा नहीं। हाल ही में महुआ मोइत्रा मामले में सीबीआई छापे लोकपाल के निर्देश पर हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। 
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विपक्ष इसे 'डबल स्टैंडर्ड' बता रहा है- जब जनता महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है, तब भ्रष्टाचार विरोधी संस्था लग्जरी पर फिजूलखर्ची कर रही है। भाजपा ने अभी चुप्पी साध रखी है, लेकिन समर्थक इसे 'संस्थागत गरिमा' का हिस्सा बता रहे हैं। 

यह विवाद लोकपाल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है। अगर भ्रष्टाचार निरोधक खुद लग्जरी का प्रतीक बन जाए, तो जनता का भरोसा कैसे बचेगा? यह मामला सार्वजनिक खर्च की जवाबदेही पर बहस छेड़ सकता है। विपक्ष इसे संसद में उछाल सकता है, जबकि सरकार को बचाव करना पड़ेगा। यह घटना अन्ना आंदोलन की आदर्शों को याद दिलाती है- भ्रष्टाचार से लड़ने वाले खुद भ्रष्टाचार के प्रतीक न बनें। क्या लोकपाल इस आलोचना से सबक लेगा, या यह सिर्फ एक और विवाद साबित होगा?