मोदी सरकार ने लोकसभा में 71 पुराने कानूनों को रद्द करने वाला बिल पास कराया। विपक्ष का आरोप है कि पुराने के साथ-साथ हाल के नए कानून भी निरस्त किए जा रहे हैं। तो सरकार ऐसा क्यों कर रही है?
क्या मोदी सरकार पुराने क़ानून और औपनिवेशिक प्रभाव वाले क़ानून बताकर हाल के क़ानूनों को भी रद्द कर रही है? कम से कम विपक्ष ने तो मंगववार को यही दावा किया है कि हाल के क़ानूनों को भी निरस्त किया जा रहा है। विपक्ष ने यह आरोप तब लगाया जब लोकसभा ने मंगलवार को 'द रिपीलिंग एंड अमेंडिंग बिल, 2025' पारित कर दिया। इस बिल के ज़रिए 71 पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करने का प्रावधान है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल पेश करते हुए कहा कि ये कानून अब अप्रचलित हो चुके हैं और इनका निरस्त करना उपनिवेशवाद के प्रभाव को उलटने की दिशा में कदम है।
बहरहाल, बिल को पेश करते हुए मेघवाल ने बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक 1562 ऐसे कानून निरस्त किए जा चुके हैं और 15 में संशोधन किया गया है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा, 'एक कानून था कि अगर कोलकाता, मद्रास और मुंबई में हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन या पारसी की वसीयत होती थी तो उसे कोर्ट से प्रोबेट कराना पड़ता था, जबकि अन्य समुदायों को इससे छूट थी।' मंत्री ने जोर देकर कहा कि ऐसे भेदभावपूर्ण और पुराने कानूनों को हटाना जरूरी है।
निरस्त किए जा रहे प्रमुख कानूनों के अलावा बिल में चार कानूनों में संशोधन भी प्रस्तावित है-
- जनरल क्लॉजेस एक्ट, 1897 और कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर, 1908 में रजिस्टर्ड पोस्ट संबंधी शब्दावली अपडेट की जाएगी।
- इंडियन सक्सेशन एक्ट, 1925 में कुछ मामलों में वसीयत को कोर्ट से वैलिडेशन कराने की अनिवार्यता हटाई जाएगी।
- डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 में ड्राफ्टिंग में ग़लती को सुधारने के लिए संशोधन।
विपक्ष: हाल के कानून भी निरस्त, क्या नाटक है यह?
भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करना चाहिए, ताकि कानूनी व्यवस्था सरल और आधुनिक बने। लेकिन विपक्षी दलों ने बिल पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें कुछ हाल में पारित कानूनों को भी निरस्त किया जा रहा है, जो संदेहास्पद है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस सांसद डीन कुरियाकोस ने पूछा, '24 महीने पहले पारित कानून भी निरस्त किए जा रहे हैं। यह कैसा नाटक है?' उन्होंने डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट में 'प्रिवेंशन' (रोकथाम) शब्द को 'प्रिपरेशन' (तैयारी) से बदलने पर आपत्ति जताई। कुरियाकोस ने कहा, 'इसका क्या मतलब है? क्या सरकार रोकथाम छोड़ रही है? यह रोकथाम को कमजोर करने वाला कदम है।'
समाजवादी पार्टी के लालजी वर्मा ने भी हमला बोला। उन्होंने कहा, 'यह सरकार बुलेट ट्रेन की तरह जल्दबाजी में बिल पास करती है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) का नाम तक बदल दिया। इनमें से कई कानून 2016 से 2023 के बीच लाए गए थे। मंत्री जी बताएं कि आज ये अप्रचलित कैसे हो गए?'
विपक्ष का आरोप है कि सरकार पुराने कानूनों के नाम पर चुनिंदा तरीके से कार्रवाई कर रही है और कुछ संशोधनों से अहम प्रावधानों को कमजोर किया जा रहा है। हालाँकि, सदन में बहुमत के आधार पर बिल पारित हो गया।
यह बिल अब राज्यसभा में जाएगा। सरकार का मानना है कि अप्रचलित कानूनों को हटाना कानूनी व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने की दिशा में सकारात्मक कदम है, लेकिन विपक्ष की आपत्तियां सरकार की मंशा पर सवाल उठाती हैं।
परमाणु ऊर्जा को निजी क्षेत्र के लिए खोलने की तैयारी
मोदी सरकार ने सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (शांति) बिल को सदन के पटल पर रखा है। इस पर बुधवार को चर्चा हो सकती है। इस बिल का उद्देश्य नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलना और व्यवस्था में सुधार करना है।
राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा पेश किया गया शांति बिल, परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक देयता अधिनियम, 2010 को रद्द करने का प्रयास करता है।कांग्रेस ने लोकसभा में 3 दिनों के लिए व्हिप जारी किया
कांग्रेस ने मंगलवार को लोकसभा में व्हिप जारी किया, जिसमें अपने सांसदों को अगले तीन दिनों तक निचले सदन में मौजूद रहने का निर्देश दिया गया है, क्योंकि VB-G RAM G जैसे अहम बिल और भारत के नागरिक परमाणु क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कानूनों में सुधार के लिए एक नया बिल पारित होने के लिए आ सकता है।
VB-G RAM G बिल मनरेगा को ख़त्म करने और इससे महात्मा गांधी के नाम को हटाने का प्रस्ताव करता है। यह हर साल 125 दिनों के लिए ग्रामीण रोजगार देने और 20 साल पुराने मनरेगा की जगह लेने का प्रयास करता है। इसे मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया, जिसमें विपक्ष ने महात्मा गांधी का नाम हटाने पर कड़ा विरोध जताया है।