संसदीय समिति ने बांग्लादेश को लेकर गंभीर चेतावनी दी है और इसे 1971 के बाद सबसे बड़ी चुनौती बताया है। सीमा सुरक्षा, राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय प्रभाव- पढ़िए रिपोर्ट के निष्कर्ष और भारत के लिए इसके मायने।
मुहम्मद यूनुस, नरेंद्र मोदी, शेख हसीना
संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति ने बांग्लादेश में चल रहे संकट को भारत के लिए 1971 की मुक्ति संग्राम के बाद सबसे बड़ा रणनीतिक चुनौती बताया है। समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद शशि थरूर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक बदलाव, नई पीढ़ी का भारत से दूर होना और चीन-पाकिस्तान का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए बड़ा ख़तरा बन रहा है।
समिति ने संसद में भारत-बांग्लादेश संबंधों पर अपनी रिपोर्ट पेश की। यह रिपोर्ट 26 जून को एक गैर-सरकारी गवाह की गवाही पर आधारित है। रिपोर्ट में कहा गया, '1971 की चुनौती अस्तित्व की थी- मानवीय संकट और एक नए देश के जन्म की थी। आज का ख़तरा ज़्यादा छिपा हुआ है और ज़्यादा गंभीर भी- नई पीढ़ी का भारत से अलगाव, राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव और भारत से दूर रणनीतिक दिशा बदलने का ख़तरा।'
इस्लामी ताक़तों की वापसी पर चिंता
समिति की रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के हटने और उनकी पार्टी अवामी लीग के कमजोर होने के बाद इस्लामी ताक़तों की वापसी पर चिंता जताई गई है। साथ ही चीन और पाकिस्तान का बढ़ता प्रभाव भी बड़ा मोड़ बताया गया है। गवाह ने समिति को कहा, 'अवामी लीग का प्रभाव ख़त्म होना, युवाओं के नेतृत्व में राष्ट्रवाद का उभार, इस्लामी ताक़तों की वापसी और चीन-पाकिस्तान का बढ़ता असर– ये सब मिलकर एक बड़े बदलाव के संकेत हैं।'
शेख हसीना के बारे में पूछे जाने पर विदेश सचिव ने कहा कि वह अपने निजी संचार उपकरणों से बयान दे रही हैं। सरकार ने साफ़ किया कि भारत की जमीन से हसीना या किसी अन्य बांग्लादेशी नेता की राजनीतिक गतिविधियों को मदद नहीं दी जाती। रिपोर्ट में कहा गया है,अगर भारत इस मौके पर अपनी नीति नहीं बदलेगा, तो वह ढाका में अपनी रणनीतिक जगह युद्ध से नहीं, बल्कि अप्रासंगिक होकर गँवा देगा। शशि थरूर के नेतृत्व वाली संसदीय समिति
अंतरिम सरकार से बातचीत जारी: MEA
बांग्लादेश में हाल के बदलावों पर भारत के रुख के बारे में विदेश मंत्रालय ने समिति को बताया कि दोनों देशों के रिश्तों को बांग्लादेश के अंदरूनी हालात से अलग रखने की हर कोशिश की जा रही है। मंत्रालय ने कहा कि भारत का बांग्लादेश के साथ सहयोग ऐसा है कि राजनीतिक बदलावों से प्रभावित न हो। भारत अंतरिम सरकार से बातचीत जारी रखे हुए है और बांग्लादेश के लोगों की आकांक्षाओं का समर्थन करता है।संकट का आकलन पहले क्यों नहीं हुआ?
समिति ने सरकार से यह भी पूछा कि संकट की पहले से भविष्यवाणी क्यों नहीं की गई। लिखित जवाब में मंत्रालय ने इतना ही कहा कि भारत सरकार बांग्लादेश के हालात पर लगातार और प्राथमिकता से नज़र रखती है।
यह रिपोर्ट बांग्लादेश में छात्र आंदोलन से शुरू हुए बदलावों के बाद आई है, जिससे शेख हसीना की सरकार गिर गई। हसीना सरकार के गिरने के बाद से ही चीन और पाकिस्तान बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं और यह भारत के लिए सुरक्षा और रणनीतिक चुनौती है। सरकार का कहना है कि वह पड़ोसी देश के साथ रिश्ते मजबूत रखने के लिए काम कर रही है, लेकिन समिति की चेतावनी से यह मुद्दा राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है।
भारत ने बांग्लादेश में दो वीजा केंद्र बंद किए
इधर, भारत ने बांग्लादेश के खुलना और राजशाही में अपने दो वीजा आवेदन केंद्र बंद कर दिए हैं। इसका कारण देश में चल रही सुरक्षा स्थिति और भारत विरोधी प्रदर्शन बताए जा रहे हैं। भारतीय वीजा आवेदन केंद्र यानी आईवीएसी की वेबसाइट पर यह कहा गया। इसमें कहा गया है, 'जिन आवेदकों की आज सबमिशन के लिए अपॉइंटमेंट बुक थी, उन्हें बाद की तारीख में नई अपॉइंटमेंट दी जाएगी।'
इससे पहले बुधवार को भारतीय हाई कमीशन के बाहर प्रदर्शनों की वजह से ढाका का वीजा केंद्र भी बंद कर दिया गया था। लेकिन इसे फिर से खोल दिया गया। एक अधिकारी ने कहा, 'हमने ढाका में वीजा आवेदन केंद्र फिर से शुरू कर दिया है।' बांग्लादेश में भारत के कुल पांच भारतीय वीजा आवेदन केंद्र हैं। ढाका के जमुना फ्यूचर पार्क वाला आईवीएसी राजधानी में सभी भारतीय वीजा सेवाओं का मुख्य केंद्र है।