लोकसभा में वंदे मातरम पर तीखी बहस के बीच कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने बीजेपी-आरएसएस पर तीखा हमला बोला और वंदे मातरम पर उसके इरादे पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के हर एक अधिवेशन में सामूहिक तौर पर वंदे मातरम गाया जाता है, लेकिन सवाल है: बीजेपी-आरएसएस के अधिवेशनों में वंदे मातरम गाया जाता है या नहीं?

प्रियंका ने कहा, "देश की आत्मा के इस महामंत्र को विवादित करके बीजेपी पाप कर रही है, लेकिन कांग्रेस पार्टी इस पाप में शामिल नहीं होगी। ये राष्ट्र गीत 'वंदे मातरम' हमेशा से हमें प्यारा है, हमेशा से हमारे लिए पवित्र रहा है और हमेशा हमारे लिए पवित्र रहेगा।" उन्होंने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया। प्रियंका ने कहा कि प्रधानमंत्री ने नेहरू-बोस पत्र के केवल चुनिंदा हिस्से का जिक्र किया, जबकि पत्र का पूरा संदर्भ कुछ और ही कहता है।
उन्होंने कहा, ' कांग्रेस- देश के लिए है और बीजेपी- चुनाव के लिए है। हम इस मिट्टी के लिए आपसे और आपकी विचारधारा से लड़ते रहेंगे। आप हमें रोक नहीं सकते।'

'पीएम कांग्रेस अधिवेशन बोलने से क्यों कतराए'

कांग्रेस सांसद ने कहा, "'वंदे मातरम' की सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भाषण दिया। मोदी जी ने अपने भाषण में कहा- 1896 में गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी ने पहली बार 'वंदे मातरम' गीत को 'एक अधिवेशन' में गाया। लेकिन प्रधानमंत्री जी ये नहीं बता पाए कि वो कांग्रेस का अधिवेशन था- आखिर नरेंद्र मोदी किस बात से कतरा रहे थे?

प्रियंका गांधी ने सदन में 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे गए पत्र की मूल प्रति का हवाला देते हुए कहा, "प्रधानमंत्री जी ने कहा कि नेहरू जी ने नेताजी को लिखा था कि वंदे मातरम के शेष छंद मुसलमानों को उकसा सकते हैं। यह आधा-अधूरा सच है। उसी पत्र में नेहरू जी स्पष्ट रूप से लिखते हैं –'वंदे मातरम के शेष छंदों के खिलाफ जो तथाकथित आपत्ति है, वह सांप्रदायिक ताकतों द्वारा गढ़ी गई है।’ यह हिस्सा प्रधानमंत्री जी ने पढ़ा ही नहीं।"
प्रियंका ने आगे कहा कि नेहरू जी ने पत्र में यह भी लिखा था कि कुछ लोगों की भावनाओं में वास्तव में थोड़ी सच्चाई हो सकती है, लेकिन उस आपत्ति को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर सांप्रदायिक रंग दिया गया था। उन्होंने पूछा, "जब नेहरू जी साफ़-साफ़ कह रहे हैं कि विरोध सांप्रदायिक ताकतों ने पैदा किया, तो इसे छिपाकर आधा सच क्यों बोला गया?"

कांग्रेस सांसद ने सदन में एक ख़त का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह पत्र 1937 का है, जब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने वंदे मातरम को पूर्ण रूप से राष्ट्र गीत बनाने का प्रस्ताव रखा था। जवाब में नेहरू जी ने सुझाव दिया था कि गीत के केवल पहले दो छंद ही अपनाए जाएं, क्योंकि शेष छंदों में कुछ पंक्तियाँ धार्मिक संवेदनशीलता को ठेस पहुँचा सकती हैं। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी साफ़ किया कि इस मुद्दे को सांप्रदायिक ताक़तें हवा दे रही हैं।

प्रियंका गांधी ने तंज कसते हुए कहा, "1937 में भी सांप्रदायिक ताक़तें वही थीं, जो आज भी हैं। नेहरू जी ने उन्हें पहचान लिया था, लेकिन आज उनके नाम लेकर वही काम किया जा रहा है।"

प्रियंका ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने सदन में नेहरू जी के पत्र को तोड़-मरोड़कर पेश किया ताकि कांग्रेस और नेहरू की छवि खराब की जा सके तथा वंदे मातरम जैसे पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक को राजनीतिक हथियार बनाया जा सके।

'वंदे मातरम पर सवाल उठाना सभी महापुरुषों का अपमान'

प्रियंका ने कहा, "'वंदे मातरम' के स्वरुप पर सवाल उठाना, जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया, उन महापुरुषों का अपमान है, जिन्होंने अपने महान विवेक से यह निर्णय लिया। यह एक संविधान विरोधी मंशा को भी उजागर करता है। क्या सत्ता पक्ष के साथी इतने अहंकारी हो गए हैं, जो खुद को- महात्मा गांधी जी, टैगोर जी, राजेंद्र प्रसाद जी, आंबेडकर जी, मौलाना आजाद जी, सरदार पटेल जी, सुभाषचंद्र बोस जी से बड़ा समझने लग गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह कहना कि राष्ट्रीय गीत को एक विभाजनकारी सोच द्वारा काटा गया, उन सभी महापुरुषों का अपमान है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश की आजादी की लड़ाई में झोंक दिया। 'वंदे मातरम' को विभाजित करने का आरोप लगाकर बीजेपी पूरी संविधान सभा पर आरोप लगा रही है, उसके हर एक नेता को दोषी ठहरा रही है। ये हमारी संविधान सभा और हमारे संविधान पर खुला वार है।"

पीएम पर तंज- मैं कोई कलाकार नहीं

प्रियंका ने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाषण तो अच्छा देते हैं, लेकिन तथ्यों के मामले में कमजोर पड़ जाते हैं। मोदी जी जिस तरह तथ्यों को जनता के सामने रखते हैं, ये उनकी कला है। लेकिन मैं तो जनता की प्रतिनिधी हूं- कोई कलाकार नहीं हूं।' उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी जी जितने साल से देश के प्रधानमंत्री हैं, जवाहरलाल नेहरू जी उतने साल देश के लिए जेल में रहे हैं।
प्रियंका ने कहा कि सरकार जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और दूसरों की गलतियों पर बहस खत्म करने के बाद, बेरोजगारी, बेटिंग ऐप्स और दूसरे ज्वलंत मुद्दों पर बहस करे। उन्होंने कहा, 'पीएमओ के अंदर बेटिंग ऐप पर क्या चल रहा है? एप्स्टीन फाइल्स में मंत्रियों के नाम कैसे आ रहे हैं? इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।' उन्होंने जवाहर लाल नेहरू की उपलब्धियाँ भी गिनाईं।
उन्होंने कहा, "आज सदन में 'वंदे मातरम' पर बहस की दो वजहें हैं। बंगाल में चुनाव आने वाला है। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री महोदय अपनी भूमिका बनाना चाहते हैं। जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, देश के लिए कुर्बानियां दीं, ये सरकार उन पर नए आरोप लादने का मौका चाहती है। ऐसा कर मोदी सरकार देश का ध्यान जनता के जरूरी मुद्दों से भटकाना चाहती है।"

डीएमके सांसद ए. राजा ने दिया नेहरू-बोस के पत्रों का हवाला

इससे पहले डीएमके सांसद ए. राजा ने पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा सुभाष चंद्र बोस को लिखे गए एक पत्र का हवाला देते हुए दावा किया कि इस राष्ट्रीय गीत को लेकर विरोध और विभाजन की जड़ें आजादी से बहुत पहले की हैं, न कि यह सिर्फ़ आज की राजनीति का मुद्दा है।
वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान राजा ने कहा कि नेहरू ने अपने पत्र में लिखा था कि इस गीत के खिलाफ जनाक्रोश सांप्रदायिक ताकतों द्वारा निर्मित था, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि कुछ समुदायों की शिकायतों में कुछ तथ्य हैं। राजा ने तर्क दिया कि धार्मिक संवेदनशीलता रखने वाले समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय की आपत्तियाँ ऐतिहासिक संदर्भ में थीं और इन्हें महज राष्ट्र-विरोधी कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि पर्याप्त ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि वंदे मातरम केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई लोगों को इसमें समावेश-विरोधी संदेश नज़र आते थे। यही कारण था कि आज़ादी से पहले भी इस गीत को लेकर असहजता थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय एकता और विभाजन संबंधी बयानों का जवाब देते हुए राजा ने बीजेपी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा, 'वंदे मातरम को लेकर जो विभाजन है, वह मुसलमानों ने नहीं, आपके पूर्वजों ने पैदा किया था।' इस टिप्पणी से सत्ता पक्ष के सदस्यों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई और सदन में हंगामा मच गया।
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राजा ने प्रधानमंत्री से सवाल किया कि क्या वंदे मातरम का देश के बँटवारे में कोई योगदान था? वंदे मातरम का मूल स्वप्न आखिर क्या था?डीएमके नेता ने यह भी कहा कि वंदे मातरम स्वतंत्रता आंदोलन से गहराई से जुड़ा है और इसे एकजुट करने वाली शक्ति के रूप में देखा जाता है, लेकिन ऐतिहासिक असहमतियों को नज़रअंदाज़ करना वर्तमान संवेदनशीलताओं का समाधान नहीं है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय प्रतीकों पर चर्चा राजनीतिक कथानकों के बजाय ऐतिहासिक तथ्यों पर होनी चाहिए। उनका इरादा स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर करना नहीं, बल्कि यह दिखाना था कि आज़ादी के आंदोलन के प्रमुख नेताओं के बीच भी इस गीत को लेकर अलग-अलग मत थे।