क्या भारत ऐसे हालातों में रूस और चीन के साथ त्रिकोणीय गठबंधन में आ सकता है जिसमें भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान को चीन खुलकर मदद कर रहा है और कुछ दिन पहले ही रूस ने भी पाकिस्तान के साथ एक सौदा किया है? फिर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने रूस-भारत-चीन के उस त्रिकोणीय फ़ॉर्मेट को फिर से शुरू करने की बात क्यों की है जो क़रीब पाँच साल पहले भारत-चीन के बीच विवाद बढ़ने के बाद ठंडे बस्ते में चला गया था? आख़िर, अब इस पर रूस अचानक से सक्रिय क्यों हो गया और यदि फिर से यह शुरू होता है तो इसका भारत को फ़ायदा होगा या नुक़सान?

इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर रूसी विदेश मंत्री ने कहा क्या है। सर्गेई लावरोव ने रूस-भारत-चीन यानी आरआईसी त्रिकोणीय फ़ॉर्मेट को फिर से शुरू करने में मॉस्को की गहरी रुचि को दोहराया है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब वैश्विक जियो-पॉलिटिक्स में बदलाव आ रहे हैं और पहलगाम आतंकी हमले व ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक तनाव से अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में नए समीकरण उभर रहे हैं।

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रूस-भारत-चीन यानी आरआईसी त्रिकोणीय फ़ॉर्मेट की शुरुआत 1990 के दशक के अंत में हुई थी। इसका मक़सद तीन प्रमुख एशियाई शक्तियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था। इसका लक्ष्य बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना, आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग और आर्थिक व कूटनीतिक साझेदारी को मज़बूत करना था। हालाँकि, जून 2020 में गलवान संघर्ष से भारत-चीन सीमा विवाद और कोविड-19 महामारी के कारण इसकी गतिविधियाँ ठप हो गई थीं। लावरोव ने इस बात पर जोर दिया कि आरआईसी की बैठकों में कमी के लिए रूस ज़िम्मेदार नहीं है, लेकिन अब समय आ गया है कि इस त्रिकोणीय फ़ॉर्मेट को फिर से शुरू किया जाए।

लावरोव का यह बयान भारत और चीन के बीच हाल ही में सीमा पर तनाव कम करने के लिए हुए समझौते के बाद आया है। अक्टूबर 2024 में रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक को एक सकारात्मक बदलाव के रूप में देखा गया। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने की ज़रूरत बताई। लावरोव ने भारत-चीन संबंध सुधार को इस त्रिकोणीय सहयोग को फिर से शुरू करने के लिए एक सकारात्मक संकेत बताया। 

लावरोव का यह बयान न केवल क्षेत्रीय शांति के लिए अहम है, बल्कि वैश्विक मंच पर पश्चिमी देशों और नाटो के प्रभाव को संतुलित करने की रूसी रणनीति को भी दिखाता है।

चीन के ख़िलाफ़ भारत को उकसा रहा है नाटो?

लावरोव ने नाटो पर भारत को चीन के ख़िलाफ़ उकसाने का आरोप लगाया। उनसे इस बयान से यह साफ़ होता है कि मॉस्को इस त्रिकोण को पश्चिमी प्रभाव के ख़िलाफ़ एक रणनीतिक गठजोड़ के रूप में देखता है।

भारत के नज़रिए से आरआईसी का फिर से शुरू किया जाना एक जटिल अवसर और चुनौती दोनों है। भारत ने हमेशा से बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन किया है और आरआईसी इस दिशा में एक अहम मंच हो सकता है। भारत ने हाल के वर्षों में भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया वाले क्वाड जैसे अन्य गठबंधनों के माध्यम से अपनी कूटनीतिक स्थिति को मज़बूत किया है। यह मुख्य रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने पर केंद्रित है। हालाँकि, आरआईसी में भागीदारी भारत को चीन के साथ सीधे संवाद का अवसर देती है, जो हाल के सीमा समझौतों के बाद और भी अहम हो गया है।

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दूसरी ओर, भारत के लिए यह सुनिश्चित करना अहम होगा कि आरआईसी में उसकी भागीदारी उसकी स्वतंत्र विदेश नीति को प्रभावित न करे। लावरोव का यह बयान कि नाटो भारत को चीन के ख़िलाफ़ उकसाने की कोशिश कर रहा है, भारत के लिए एक चेतावनी भी है कि वह पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखे। भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ अपने रक्षा और आर्थिक संबंधों को मज़बूत किया है और ऐसे में इसे यह सुनिश्चित करना होगा कि आरआईसी में उसकी भागीदारी इन संबंधों को कमजोर न करे।

चीन के लिए आरआईसी का फिर से शुरू किया जाना एक अवसर है कि वह भारत के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों को सुधार सके। हालाँकि, लावरोव ने यह भी ज़िक्र किया कि चीन पाकिस्तान को 81 प्रतिशत रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।

भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़ा रुख अपनाया है और इस संदर्भ में चीन की भूमिका को लेकर भारत का संशय स्वाभाविक है।

रूस के लिए आरआईसी का फिर से शुरू किया जाना उसकी वैश्विक स्थिति को मज़बूत करने का एक तरीक़ा है। यूक्रेन संकट के बाद से रूस पश्चिमी देशों के साथ तनाव का सामना कर रहा है और वह भारत और चीन जैसे देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करना चाहता है। रूस का यह क़दम उसकी उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह ग्लोबल साउथ के देशों के साथ गठजोड़ को मज़बूत करना चाहता है।

भारत में इस बयान ने राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में बहस को छेड़ दिया है। कुछ जानकारों का मानना है कि आरआईसी का फिर से शुरू किया जाना भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मज़बूत करने का अवसर देगा। हालांकि, अन्य लोग चेतावनी देते हैं कि भारत को इस मंच में भाग लेते समय सावधानी बरतनी होगी, ताकि वह चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित रख सके।

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वैश्विक स्तर पर इस बयान को पश्चिमी देशों और नाटो द्वारा सावधानी से देखा जा रहा है। लावरोव का नाटो पर भारत को चीन के खिलाफ उकसाने का आरोप न केवल रूस की पश्चिम विरोधी रणनीति को दिखाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि मॉस्को भारत को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहा है।

रूस-भारत-चीन त्रिकोणीय फ़ॉर्मेट का फिर से शुरू होना वैश्विक और क्षेत्रीय कूटनीति के लिए एक अहम क़दम हो सकता है। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को बनाए रखते हुए क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद के ख़िलाफ़ सहयोग को बढ़ावा दे। हालाँकि, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इस मंच में अपनी भागीदारी को अपनी व्यापक कूटनीतिक रणनीति के साथ संतुलित रखे। लावरोव का बयान इस बात का संकेत है कि वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आ रहा है और भारत को इस बदलते विश्व में अपनी स्थिति को सावधानीपूर्वक मज़बूत करना होगा।