शिवसेना यूबीटी का मुखपत्र सामना ने सवाल उठाया कि जब आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही है तो प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर भव्य उत्सव मनाना कितना उचित है। जानें पूरी रिपोर्ट।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन के अवसर पर देशभर में भव्य समारोहों का आयोजन हो रहा है, लेकिन शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र 'सामना' ने इस उत्सव पर कटाक्ष किया है और केंद्र सरकार की 11 वर्षों की नीतियों पर हमला बोला है। 'सामना' के संपादकीय में गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर करते हुए कहा गया है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन पर निर्भर रहना देश के लिए शर्मिंदगी का विषय है। विपक्ष ने तो पीएम मोदी का जन्मदिन 'बेरोजगारी दिवस' के रूप में मनाने की बात कही है।
'सामना' के संपादकीय में कहा गया है कि जब देश की आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही है, तब जन्मदिन का उत्सव मनाना क्या उचित है? संपादकीय में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर व्यंग्य करते हुए कहा गया है कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में 80 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा प्रदान किए जा रहे 10 किलो अनाज से ही इनका चूल्हा जल रहा है। 'सामना' ने इसे 'देश की प्रगति का प्रमाण' बताते हुए तंज कसा कि यह गर्व का विषय नहीं, बल्कि चिंता का विषय है। इसने लिखा, 'भारत जैसे विशाल देश के लिए यह स्थिति शर्मनाक है। सरकार की नीतियां अमीरों को और अमीर बना रही हैं, जबकि आम आदमी भुखमरी की कगार पर है।'
बेरोजगारी का संकट
बेरोजगारी को लेकर 'सामना' ने पीएम मोदी के 2014 के चुनावी वादे का ज़िक्र किया, जिसमें हर साल 2 करोड़ नौकरियाँ देने का आश्वासन दिया गया था। संपादकीय में दावा किया गया है कि 11 वर्षों में केंद्र सरकार ने महज 10 लाख नौकरियाँ ही प्रदान की हैं, जबकि करोड़ों युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। संपादकीय में लिखा गया, "जय शाह को क्रिकेट के कारोबार की कमान सौंप दी गई, जिससे उन्हें 'काम' मिल गया, लेकिन देश के करोड़ों युवाओं को अभी भी रोजगार नहीं मिला।" विपक्षी दलों ने इस संदर्भ में पीएम का जन्मदिन 'बेरोजगारी दिवस' के रूप में मनाने की मांग की है, जो युवाओं की निराशा को दिखाता है।
अडानी पर तीखा हमला
'सामना' ने एक बार फिर उद्योगपति गौतम अडानी पर निशाना साधा, जिन्हें पीएम मोदी का 'मित्र' बताया गया। इसने आरोप लगाया कि अडानी को जमीन पर उंगली रखते ही मुफ्त में जमीन, हवाई अड्डे, सरकारी कंपनियां और भूमि सौंप दी गई। संपादकीय में कहा गया है कि "मुंबई जैसे शहर भी अडानी के हवाले हो गए हैं"। यह आरोप शिवसेना यूबीटी की लंबे समय से चली आ रही आलोचना का हिस्सा है, जिसमें केंद्र सरकार पर कॉरपोरेट्स के प्रति पक्षपात का इल्जाम लगाया जाता रहा है।
संपादकीय ने सवाल उठाया है कि जब आम नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ नहीं मिल रही हैं, तब अडानी जैसे उद्योगपतियों को क्यों फायदा पहुँचाया जा रहा है?
बीजेपी का 'सेवा पखवाड़ा'
बीजेपी ने पीएम मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में 15 सितंबर से 1 अक्टूबर तक 'सेवा पखवाड़ा' अभियान शुरू किया है, जिसमें स्वच्छता, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवा पर जोर दिया जा रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सहित कई बीजेपी नेताओं ने इसमें भाग लिया। हालाँकि, 'सामना' ने इसे 'दिखावा' क़रार देते हुए कहा कि असली सेवा तो गरीबी और बेरोजगारी मिटाने से होगी।
संपादकीय में कहा गया है, 'खेल करवाने का महापराक्रम अब प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है। मोदी साढ़े तीन साल बाद मणिपुर गए थे, लेकिन उनके निकलते ही मणिपुर फिर भड़क उठा। इसका मतलब है कि मोदी की कोई सुन नहीं रहा। पिछले 11 वर्षों से प्रधानमंत्री और उनके लोगों ने केंद्रीय जांच एजेंसियों से आतंकित करके जो चाहा वो किया है। एक लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री के रूप में मोदी का प्रदर्शन तानाशाही को लजाने वाला है। देश ने उन्हें मौक़ा दिया। उनके पास इतिहास बनाने का मौक़ा था।'
'मोदी की कहानी झूठी निकली...'
इसमें आगे कहा गया है, "मोदी द्वारा गुजरात के प्लेटफॉर्म पर चाय बेचने की कहानी झूठी निकली। मोदी द्वारा बचपन में मगरमच्छ से कुश्ती लड़ने की कहानी झूठी निकली। मोदी ने खुद को ‘अवतारी पुरुष’ घोषित किया, लेकिन वह भी झूठ निकला, क्योंकि यह अवतारी पुरुष विपक्ष की आलोचना के बाद सार्वजनिक सभाओं में रोने लगता है। मोदी पाकिस्तान को तोड़कर अखंड भारत बनानेवाले थे। वह झूठ निकला। मोदी देश को पहले से अधिक सुजलाम, सुफलाम और समृद्ध बनानेवाले थे। इनमें से कुछ भी नहीं हुआ।"
सामना ने 75 साल की उम्र में रिटायरमेंट वाले विवाद पर भी लिखा है, "मोदी ने यह शगूफा छोड़ा कि ‘राजनेताओं को 75 साल के बाद सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए’ और तदनुसार, आडवाणी सहित कई लोगों को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया। आज व खुद 75 वर्ष के हो गए हैं, लेकिन वे स्वयं कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी हमारे व्यक्तिगत शत्रु नहीं हैं, लेकिन वे शिवसेना, यानी छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र के शत्रु हैं। उन्होंने हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख की शिवसेना को एक द्वेष के चलते तोड़ दिया। महाराष्ट्र इसे याद रखेगा।'
संपादकीय में लिखा गया है, 'नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए, हम उन्हें आत्ममुग्धता त्यागकर आत्मचिंतन करने का सुझाव दे रहे हैं। उनके पास इतिहास रचने का अवसर था, लेकिन सारा कालखंड पाखंडपूर्ण राजनीति में बरबाद कर श्रीमान मोदी ने एक महान अवसर गवां दिया है!'
शिवसेना यूबीटी की रणनीति
शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में यह संपादकीय महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले विपक्षी एकता को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यह आलोचना बीजेपी की 'विकसित भारत' की छवि को चुनौती देगी।
यह संपादकीय राजनीतिक बहस को और गर्माने वाला है, जहाँ एक ओर उत्सव का माहौल है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर सवाल उठ रहे हैं।