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वैज्ञानिकों की सहमति के बिना खुराक के अंतराल को बढ़ाया सरकार ने?

कोविशील्ड वैक्सीन की खुराकों के बीच के अंतराल बढ़ाने पर फिर विवाद हो गया है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि बिना उनकी सहमति के ही सरकार ने कोविशील्ड की खुराकों के अंतराल को दोगुना कर दिया था। वैक्सीन पर सुझाव देने वाले वैज्ञानिकों के समूह में से तीन वैज्ञानिकों ने जब न्यूज़ एजेंसी रायर्टस के सामने यह दावा किया तो विवाद हो गया। अब इसके विरोध में स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन यानी एनटीएजीआई के प्रमुख डॉ. एन के अरोड़ा सफ़ाई में दावे कर रहे हैं। इनका दावा है कि खुराक के अंतराल को बढ़ाने का फ़ैसला पारदर्शी तरीक़े से और वैज्ञानिक आधार पर लिए गए हैं। तो सवाल है कि कौन सच बोल रहा है और वैज्ञानिक आँकड़े क्या समर्थन करते हैं?

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इन सवालों के जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि आख़िर विवाद की वजह क्या है। कोविशील्ड वैक्सीन की जो खुराकें शुरुआत में 4 हफ़्ते के अंतराल में लगाई जा रही थीं उसको मई के मध्य में बढ़ाकर 12-16 हफ़्ते कर दिया गया। क़रीब दो महीने में यह दूसरी बार था जब कोविशील्ड की खुराक के अंतराल को बढ़ाने की सिफ़ारिश की गई। शुरुआत में यह अंतराल 4-6 हफ़्ते का था। मार्च के दूसरे पखवाड़े में अंतराल को बढ़ाकर 6-8 सप्ताह किया गया था। और फिर उसे बढ़ाकर 12-16 हफ़्ते कर दिया गया। 

इस बढ़ोतरी के बाद सवाल उठा था कि वैक्सीन की खुराक के अंतराल में बार-बार बदलाव क्यों किया जा रहा है? तब यह भी सवाल उठाया गया था कि अंतराल को कहीं इसलिए तो नहीं बढ़ाया गया है क्योंकि वैक्सीन की ज़बर्दस्त कमी है। लेकिन तब सरकार ने यह कहा था कि इसे पूरी तरह वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर बढ़ाया गया है। और फिर यह मामला शांत हो गया था।

लेकिन अब इस पर विवाद तब हो गया जब सरकारी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एपिडेमियोलॉजी के पूर्व निदेशक एमडी गुप्ते ने कहा कि एनटीएजीआई ने खुराक के अंतराल को 8-12 सप्ताह तक बढ़ाने का समर्थन किया था, इसी अंतराल का सुझाव विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी दिया गया था।

लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा कि समूह के पास 12 सप्ताह से अधिक के अंतराल पर टीके लगाने के प्रभावों के संबंध में कोई आँकड़ा ही नहीं था। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'आठ से 12 सप्ताह कुछ ऐसा है जिसे हम सभी ने स्वीकार किया, 12 से 16 सप्ताह कुछ ऐसा है जिसे सरकार लेकर आई।' उन्होंने कहा कि 'यह ठीक हो सकता है, नहीं भी हो सकता है। हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं।'

रिपोर्ट के अनुसार, एनटीएजीआई के एक और वैज्ञानिक मैथ्यू वर्गीज ने भी कुछ ऐसी ही बात कही थी। उन्होंने कहा कि ग्रुप ने अंतराल को बढ़ाकर 8-12 हफ़्ते करने की अनुशंसा की थी। उसी समूह के एक और सदस्य जेपी मुलियाल ने कहा कि एनटीएजीआई के भीतर टीके की खुराक के अंतराल को बढ़ाने पर चर्चा हुई थी, लेकिन समूह ने 12-16 सप्ताह की सिफारिश नहीं की थी।

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नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन यानी एनटीएजीआई से जुड़े रहे इन लोगों के बयान आने के बाद अब स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की सफ़ाई आई है। उन्होंने ट्वीट कर दावा किया है कि वैक्सीन की खुराक का अंतराल बढ़ाने का फ़ैसला वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर लिया गया था। उन्होंने इस मुद्दे पर राजनीति किए जाने का आरोप लगाया। 

स्वास्थ्य मंत्री ने इस ट्वीट के साथ एनटीएजीआई के प्रमुख डॉ. एन के अरोड़ा के बयान भी साझा किया है। डॉ. अरोड़ा ने उस बयान में ब्रिटेन के स्वास्थ्य नियामक पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के एक अध्ययन का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि 'टीके की प्रभावकारिता 65-88 प्रतिशत के बीच होती है जब अंतराल 12 सप्ताह होता है।'

उन्होंने यह भी कहा, 'यही वह आधार था जिस पर उन्होंने अल्फा वैरिएंट के प्रकोप पर काबू पाया... क्योंकि उन्होंने जो अंतराल रखा था वह 12 सप्ताह का था। हमने भी सोचा कि यह एक अच्छा विचार है...।' उस बयान में डॉ. अरोड़ा के हवाले से कहा गया है, 'कोविड वर्किंग ग्रुप ने बिना किसी असहमति के उस निर्णय को लिया... इस मुद्दे पर एनटीएजीआई की बैठक में फिर से बिना किसी असहमति के नोट के साथ चर्चा की गई। सिफारिश यह थी कि टीके का अंतराल 12-16 सप्ताह होना चाहिए।'

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डॉ. अरोड़ा के बयान में साफ़ तौर पर कहा गया है कि इंग्लैंड में 12 हफ़्ते के अंतराल के आधार पर निर्णय लिया गया। तो सवाल है कि भारत में 12-16 हफ़्ते क्यों किया गया? अब रायटर्स को दिए इंटरव्यू में भी वैज्ञानिकों ने यही बात कही है कि उन्होंने 8-12 हफ़्ते का अंतराल करने की सलाह दी थी। 

बता दें कि विज्ञान की पत्रिका लांसेट में 19 फ़रवरी को प्रकाशित रिपोर्ट में पाया गया कि 6 हफ़्ते के अंतराल से पहले कोविशील्ड की दो खुराक लगाने से वह वैक्सीन 55.1 फ़ीसदी ही प्रभावी थी जबकि उन खुराकों के बीच 12 हफ्तों का अंतराल था तो 81.3 फ़ीसदी प्रभावी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी 12 हफ़्ते तक बढ़ाने को सही ठहराया था। 

लेकिन सवाल है कि सरकार किस आधार पर इस अंतराल को बढ़कार 12-16 हफ़्ते करने की बात कह रही है, यह साफ़-साफ़ पता नहीं चल रहा है।

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