नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस सांसद शशि थरूर
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोमवार को पार्टी के भीतर उनके और नेता विपक्ष राहुल गांधी के वैचारिक रुझानों की तुलना को X पर शेयर किया। थरूर ने सोशल मीडिया के उस विश्लेषण को “विचारशील” और “निष्पक्ष” बताया।
केरल के सांसद ने X यूजर @CivitasSameer की लंबी थ्रेड को शेयर किया है। लिखा, "समस्या उनके सह-अस्तित्व की नहीं है। समस्या कांग्रेस की या तो सामंजस्यपूर्ण ढंग से चुनने, एकीकृत करने या निष्पादित करने में असमर्थता है।” थरूर ने एक्स यूजर की इन लाइनों को रेखांकित किया है- समस्या उनके (राहुल-थरूर) सहअस्तित्व में नहीं है। समस्या कांग्रेस की है। यानी कांग्रेस दोनों में से किसी एक को चुन नहीं पा रही,उनके विचारों में तालमेल बिठाने या सुसंगत रूप से लागू करने में कांग्रेस असमर्थ है।
राहुल-थरूर के बीच तुलना करते हुए विश्लेषण में कहा गया है कि राहुल गांधी का ग्रामीण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना पार्टी के लिए एक “विनाशकारी बदलाव” है, जबकि थरूर के विचार अधिक “शहरी नज़रिए” वाले हैं। राहुल गांधी के ग्रामीण केंद्रित विचार विनाशकारी हैं।
थरूर ने अपने X हैंडल पर थ्रेड को साझा करते हुए लिखा, "इस विचारशील विश्लेषण के लिए धन्यवाद। पार्टी में हमेशा एक से अधिक रुझान रहे हैं; आपकी रूपरेखा निष्पक्ष है, और वर्तमान वास्तविकता की एक निश्चित धारणा को बताती है।"
थरूर को नरसिम्हा राव, मनमोहन की तरह' बताया गया
उस थ्रेड के मुताबिक “थरूर मोटे तौर पर 90 के दशक के कांग्रेस रुझान के साथ तालमेल बिठाते हैं जो शहरी-उन्मुख, संस्थागत रूप से निर्देशित और सुधारों का समर्थक था।” उस व्यक्ति ने तर्क दिया कि ये विचार एक आर्थिक संकट के दौरान उभरे जब भारत में “कुलीन-नेतृत्व वाला शासन था। वो एक ऐतिहासिक परिस्थिति थी।” विश्लेषण करने वाला शख्स यह कहना चाहता था कि जब 90 के दशक में नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जो नीतियां गढ़ रहे थे, उससे शशि थरूर के विचार मेल खाते हैं। उस शख्स ने नेहरू से लेकर राजीव गांधी के कार्यकाल को कुलीन लोगों का शासन बताया है। आगे उसने इस बात को और भी साफ किया है।उस थ्रेड में कहा गया है कि पूर्व कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह (राव के अधीन वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के लिए), पूर्व मंत्री एसएम कृष्णा, और पूर्व योजना पैनल के उप प्रमुख मोंटेक सिंह अहलूवालिया उन लोगों में थे जो शहरी विचारों वाले थे। जिन्होंने इस ढांचे के भीतर काम किया। पोस्ट में लिखा गया, "उन लोगों की राजनीति जन लामबंदी या सांस्कृतिक बुनियाद पर नहीं, बल्कि नीति, संस्थानों और प्रशासनिक क्षमता पर निर्भर थी।"
उस थ्रेड में दावा किया गया कांग्रेस में इन “शहरी टेक्नोक्रेटिक नेताओं” को दरकिनार कर दिया गया है। विश्लेषण ने दावा किया कि इन लोगों ने "राइट विंगर्स (दक्षिणपंथियों) से अधिक पहचान और सम्मान प्राप्त किया है।" यह एक तरह से बीजेपी और पीएम मोदी की ओर से शशि थरूर को दिए गए सम्मान के बारे में है।
राहुल के नेतृत्व में पार्टी का रुख 'ग्रामीण प्रेरित'
X थ्रेड ने राहुल गांधी के ग्रामीण झुकाव वाले विचारों पर भी लिखा है। उसके मुताबिक: “भाजपा के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस का 2010 के बाद खुद को एक ग्रामीण प्रेरित जन पार्टी के रूप में पुनर्स्थापित करने का प्रयास है। यह एक प्रतिक्रियाशील, फिर भी विनाशकारी बदलाव था जिसे स्वयं चुनावी नतीजों के माध्यम से देखा जा सकता है।"कांग्रेस ने हाल ही में तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राजद और महागठबंधन के साथ एक जूनियर सदस्य के रूप में बिहार में हार का सामना किया। कांग्रेस ने ग्रामीण और जाति-केंद्रित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जैसा कि भाजपा-जेडीयू के नेतृत्व वाले एनडीए ने किया, लेकिन नीतीश कुमार की सरकार को हटाने के लिए मतदाताओं को मना नहीं सकी।
एक्स पर उस विश्लेषण में लिखा गया है कि राहुल गांधी पार्टी के लिए “इस ग्रामीण मोड़ का नेतृत्व कर रहे हैं” जब वह “भारतीय राजनीति में सबसे कुलीन और इन्सुलेटेड (सुरक्षित) हस्तियों में से एक हैं। वो एक वंशवादी परिवार में पैदा हुए। उनकी प्रतीकात्मक ग्रामीण राजनीति में कोई विश्वसनीयता नहीं है।"
हाल ही में, केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा ने केरल स्थानीय निकाय चुनाव में तिरुवनंतपुरम में वाम गठबंधन को हराया। यह इलाका थरूर का लोकसभा क्षेत्र है। लेकिन केरल में बाकी जगह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने हासिल की है। लेकिन तिरुवनंतपुरम ने भाजपा को राज्य की राजधानी में पैर रखने की जगह तो दे ही दी है।
थरूर ने यूडीएफ और भाजपा दोनों को बधाई दी और नतीजों को राज्य के लोकतंत्र के उत्सव के रूप में बताया।
थरूर के रीपोस्ट का समय
थरूर ने हाल ही में एक लेख लिखा था, जिसमें नेहरू-गांधी परिवार को वंशवादी राजनीति के उदाहरण के रूप में बताया गया था। इसे उन्होंने योग्यता के लिए हानिकारक बताया था। उन्होंने उस लेख में भाजपा नेताओं के परिवारों के किसी भी उदाहरण का हवाला नहीं दिया, और सत्तारूढ़ पार्टी से तारीफ हासिल की। हालांकि बीजेपी में भी कम परिवारवाद नहीं है। उनकी यह पोस्ट ऐसे समय में आई है जब उन्होंने अपनी गतिविधियों से अक्सर पार्टी या उसके रुख से असहमति दिखाई है। उन्होंने हाल ही में पार्टी की तीन बैठकों में भाग नहीं लिया। सबसे हालिया बैठक संसद के शीतकालीन सत्र के बीच में थी। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ देश की छवि बनाने के लिए जो दल दूसरे देशों में भेजा था, उसका नेता शशि थरूर को ही बनाया गया था। ये अलग बात है कि इससे भारत को कुछ हासिल नहीं हुआ।
थरूर ने इनमें से एक बैठक में शामिल न होने के लिए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था, लेकिन जब वह अगले ही दिन एक कार्यक्रम में थे जहां पीएम मोदी ने एक व्याख्यान दिया, तो सवाल उठे। थरूर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पीएम की प्रशंसा करते हुए सोशल मीडिया पोस्ट किए। अधिक हाल ही में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भोज दिया था। जिसमें बुलाए गए थरूर अकेले कांग्रेसी प्रतिनिधि थे। उस भोज में नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को नहीं बुलाया गया।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस पर तंज कसा था: “हर किसी की अंतरात्मा की एक आवाज होती है। जब मेरे नेताओं को आमंत्रित नहीं किया जाता है, लेकिन मुझे किया जाता है, तो हमें यह समझना चाहिए कि खेल क्यों खेला जा रहा है, कौन खेल खेल रहा है, और हमें इसका हिस्सा क्यों नहीं होना चाहिए।" दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने वंशवादी राजनीति पर थरूर के लेख में राहुल गांधी को "नेपो किड" कहकर "सीधे चुनौती देने" के लिए थरूर को "खतरों के खिलाड़ी" कहा।