जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चोसोटी गांव में गुरुवार दोपहर बादल फटने की भीषण घटना ने भारी तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा ने चोसोटी गांव को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। इस आपदा में कम से कम 38 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 100 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। भारी बारिश और दुर्गम इलाकों की वजह से बचाव कार्य और मुश्किल हो गया है।

क्लाउडबर्स्ट यानी बादल फटने का सीधा मतलब है कि बहुत कम समय में बेहद तेज़ बारिश होना। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, यदि 20-30 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हो, तो इसे बादल फटना कहते हैं। यह बारिश इतनी तेज़ होती है कि नदियाँ उफान पर आ जाती हैं, भूस्खलन शुरू हो जाते हैं, और बस्तियाँ तबाह हो जाती हैं। खास तौर पर पहाड़ी इलाकों में। ऐसा ही कुछ जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में हुआ।
यह बादल फटने की घटना किश्तवाड़ जिले के पड्डर क्षेत्र में चोसोटी गांव में हुई। यह मचैल माता मंदिर की तीर्थयात्रा के रास्ते पर आखिरी मोटर योग्य गांव है। इस दौरान सैकड़ों तीर्थयात्री और स्थानीय लोग मंदिर की ओर जा रहे थे। बादल फटने से अचानक आई बाढ़ ने कई घरों, सड़कों, पुलों और एक सामुदायिक रसोई (लंगर) को बहा दिया। चोसोटी में मौजूद एक सुरक्षा चौकी और कई दुकानें भी बाढ़ की चपेट में आ गईं। अधिकारियों ने बताया कि इस आपदा ने पड्डर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तबाही मचाई, जिसमें कई गांव पूरी तरह से मलबे में दब गए।

कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि इस आपदा में दो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवान भी मारे गए हैं। इसके अलावा 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें से 37 की हालत गंभीर है। इन घायलों को किश्तवाड़ जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जबकि 70-80 अन्य घायलों का इलाज पड्डर के उप-जिला अस्पताल में चल रहा है।

बचाव और राहत कार्य

बादल फटने की सूचना मिलते ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। किश्तवाड़ के उपायुक्त पंकज कुमार शर्मा ने स्वयं बचाव कार्यों की निगरानी के लिए घटनास्थल का दौरा किया। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल यानी एनडीआरएफ़, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल यानी एसडीआरएफ़, सेना, पुलिस और स्थानीय प्रशासन की टीमें बचाव कार्य में जुटी हैं। उधमपुर से दो एनडीआरएफ़ टीमें किश्तवाड़ के लिए रवाना की गई हैं। भारी मशीनरी का उपयोग करके मलबे को हटाने और अवरुद्ध सड़कों को खोलने का प्रयास किया जा रहा है। हवाई सर्वेक्षण भी शुरू किया गया है, ताकि दूरदराज के गांवों में फँसे लोगों का पता लगाया जा सके।

लगातार बारिश और दुर्गम इलाकों ने बचाव कार्यों को मुश्किल बना दिया है। कई गांवों तक सड़क संपर्क टूट गया है और भारी बारिश के कारण राहत कार्य बार-बार बाधित हो रहे हैं। अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि मृतकों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि कई लोग अभी भी मलबे में दबे हो सकते हैं।

मचैल माता यात्रा स्थगित

इस आपदा के कारण 25 जुलाई को शुरू हुई और  5 सितंबर तक चलने वाली मचैल माता यात्रा को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया है। यह तीर्थयात्रा हर साल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है और इस समय चोसोटी में लंगर और अन्य सुविधाएं तीर्थयात्रियों के लिए स्थापित की गई थीं। ये सभी बाढ़ में बह गईं।

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस आपदा पर गहरा दुख व्यक्त किया और प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। उन्होंने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, 'चोसोटी, किश्तवाड़ में बादल फटने से हुई तबाही से मैं बहुत दुखी हूं। शोक संतप्त परिवारों के प्रति मेरी संवेदनाएं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना। मैंने सिविल प्रशासन, पुलिस, सेना, NDRF और SDRF को बचाव और राहत कार्यों को तेज करने का निर्देश दिया है।'
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी स्थिति पर नजर रखने और किश्तवाड़ उपायुक्त के साथ समन्वय करने की बात कही। उन्होंने कहा, 'बचाव टीमें मौके पर हैं और लापता लोगों का पता लगाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।' जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात की और उन्हें किश्तवाड़ की स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि प्रशासन और बचाव टीमें पूरी ताकत से काम कर रही हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने भी इस घटना पर दुख जताया और सरकार से तत्काल राहत और बचाव कार्यों की मांग की। बीजेपी नेता जहांजेब सिरवाल ने इस आपदा को किश्तवाड़ में अनियंत्रित बिजली परियोजनाओं से जोड़ा और केंद्र सरकार से पर्यावरणीय मूल्यांकन की मांग की।

जलवायु परिवर्तन और बादल फटने की बढ़ती घटनाएं

विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं हाल के वर्षों में बढ़ी हैं, जिसका एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है। अनियोजित विकास और पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी ने भी इन आपदाओं के प्रभाव को और बढ़ा दिया है। किश्तवाड़ में पहले भी 2021 में बादल फटने की घटना हुई थी जिसमें 26 लोगों की मौत हुई थी और 17 घायल हुए थे।

किश्तवाड़ में हुई इस त्रासदी ने एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं की भयावहता को उजागर किया है। प्रशासन और बचाव टीमें लगातार राहत कार्यों में जुटी हैं, लेकिन मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियां और दुर्गम इलाके चुनौतियां बढ़ा रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार ने प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता का वादा किया है।