loader

केरल में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं वामपंथी पार्टियाँ

केरल में वामपंथी पार्टियाँ अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। फिलहाल देशभर में सिर्फ़ केरल में ही वामपंथी सत्ता में हैं और अगर लोकसभा चुनाव में यहाँ उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो यहाँ से भी उनके सफाये की भूमिका तैयार हो जाएगी।

ताज़ा ख़बरें
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने केरल की वायनाड सीट को चुनकर वामपंथियों की मुसीबत और भी बढ़ा दी है। सालों से केरल में वामपंथियों के लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एलडीएफ़) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट (यूडीएफ़) में सीधा मुक़ाबला रहा है। मुक़ाबला हर बार काँटे का ही रहा। लेकिन राहुल गाँधी के ख़ुद चुनाव मैदान में आने से कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की ताक़त बढ़ गई है। 
केंद्र में अलग-अलग मुद्दों पर कांग्रेस का समर्थन करने वाली वामपंथी पार्टियों को राहुल गाँधी के केरल से चुनाव लड़ने पर ज़ोर का झटका लगा है।
वामपंथियों को उनके ही गढ़ में बीजेपी से भी झटके मिल रहे हैं। इस बार बीजेपी ने भी केरल में पूरी ताक़त झोंकी हुई है जिसकी वजह से वामपंथियों के लिए अपना गढ़ बचाना मुश्किल साबित हो रहा है। पूरी ताक़त झोंकने के बावजूद बीजेपी केरल की 20 सीटों में से सिर्फ़ 3 सीटों पर ही अच्छा मुक़ाबला करती नज़र आ रही है। 
केरल में तिरुवनंतपुरम, कासरगोड और पल्लाकाड सीटों पर ही बीजेपी मुक़ाबले में है यानी इन सीटों पर मुक़ाबला त्रिकोणीय है और बाक़ी 17 सीटों पर एलडीएफ़ और यूडीएफ़ के बीच सीधी टक्कर है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, बीजेपी अगर केरल में कहीं से अपना खाता खोल सकती है तो वह तिरुवनंतपुरम की सीट ही हो सकती है। बीजेपी ने सबरीमला मंदिर आंदोलन के जरिये हिन्दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की पूरी कोशिश की लेकिन कांग्रेस ने भी इस आंदोलन में जनभावना का ही साथ दिया जिससे बीजेपी की रणनीति कामयाब नहीं हो पायी।

केरल से और ख़बरें

राहुल गाँधी की चुनावी दंगल में मौजूदगी से वामपंथियों की नींद उड़ गई है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ़ ने 20 में से 12 सीटें जीती थीं, जबकि एलडीएफ़ को 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। जबकि 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में एलडीएफ़ ने कांग्रेस की सरकार को हटाने में कामयाबी हासिल की थी। 140 विधानसभा सीटों में एलडीएफ़ को 91 सीटें मिली थीं जबकि यूडीएफ़ को सिर्फ़ 47 सीटें। 

विधानसभा चुनाव में एक बड़ी बात यह भी हुई कि पहली बार बीजेपी का कोई उम्मीदवार केरल में विधायक बन पाया। वरिष्ठ नेता राजगोपाल केरल विधानसभा में पहुँचने वाले बीजेपी के पहले नेता बने। इस कामयाबी के बाद बीजेपी ने केरल में पूरी ताक़त से काम करना शुरू किया।

वामपंथियों को यह चिंता भी सता रही है कि सबरीमला मंदिर आंदोलन में उसके कड़े रुख की वजह से हिंदुओं का एक बड़ा धड़ा उससे दूर हो गया है। 

वामपंथियों ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था जिससे हिन्दू उससे नाराज़ हो गये थे। बीजेपी और कांग्रेस ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था जिसकी वजह से वामपंथियों से दूर हुए हिन्दू कांग्रेस या बीजेपी की ओर चले गये।

अब राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह से वामपंथियों को लगता है कि मुसलमान भी उसका साथ छोड़कर कांग्रेस के साथ चले जाएँगे। सूत्रों के मुताबिक, वामपंथियों को लगता है कि कांग्रेस ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत राहुल गाँधी को वायनाड से चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस चाहती है कि सारे मुसलमान उसकी ओर हो जाएँ। इसीलिए कांग्रेस ने यह तसवीर पेश करने की कोशिश की है कि सिर्फ़ कांग्रेस ही बीजेपी को सत्ता से दूर कर सकती है। 
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वामपंथियों के प्रति मुसलमानों की बढ़ती नज़दीकी को ख़त्म करने के मक़सद से ही राहुल गाँधी ने ख़ुद केरल से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है।

वामपंथियों को राहुल गाँधी की वजह से ही ईसाई मतदाताओं के भी खिसकने का डर सता रहा है। यानी बात साफ़ है। सबरीमला मंदिर आंदोलन की वजह से वामपंथियों का हिन्दू वोट बैंक बीजेपी और कांग्रेस की ओर चला गया। वामपंथियों के ख़िलाफ़ एक और बात जा रही है। जब भी वामपंथी सत्ता में होते हैं तब विरोधियों पर हमले की घटनाएँ ज़्यादा होती हैं। राजनीतिक हिंसा की वजह से भी कई लोग वामपंथियों से ख़फ़ा हैं। 

युवाओं को खींच पाने में विफल 

वामपंथियों के लिए एक और बड़ी समस्या यह है कि वे युवाओं को अपनी ओर खींचने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। युवा या तो कांग्रेस के साथ जा रहे हैं या बीजेपी के साथ। वामपंथी पार्टियों में युवा नेताओं की कमी है और पुराने नेताओं की पारंपरिक और रूढ़िवादी शैली से कई लोग नाख़ुश हैं। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की उम्र 75 साल है और वे भी पहली बार मतदान करने जा रहे युवाओं को वामपंथी पार्टियों की ओर आकर्षित करने में कामयाब नहीं हो पाये हैं।

सत्ता में होने के बावजूद केरल में वामपंथी पार्टियाँ बैकफ़ुट पर दिखती हैं और डिफ़ेंसिव खेल खेलती नज़र आ रही हैं। वहीं, कांग्रेस और बीजेपी अटैकिंग मोड में हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर 23 अप्रैल को मतदान होगा।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अरविंद यादव
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

केरल से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें