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कोवैक्सीन का परीक्षण रोकने की मांग, मोदी को चिट्ठी

कोवैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल यानी परीक्षण के बाद भोपाल में एक गैस पीड़ित वालंटियर की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। वैक्सीन का कथित फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दरवाजा खटखटाते हुए परीक्षण पर तत्काल रोक लगाने की माँग की गई है।

परीक्षण पर सवाल

कोवैक्सीन निर्माता कंपनी से लेकर मध्य प्रदेश सरकार एवं परीक्षण में शामिल निजी अस्पताल की सफाई के बाद रविवार को कई और ऐसे पीड़ित वालंटियर्स सामने आये, जिन्हें टीके के परीक्षण के बाद से स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की  परेशानियाँ हो रही हैं। आरोप है कि अंधेरे में रखते हुए आधा दर्जन बस्तियों में लगभग 700 ग़रीब लोगों पर टीके का परीक्षण किया गया। इनमें कई अनपढ़ बताये गये हैं।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और गैस पीड़ितों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाली रचना ढींगरा ने रविवार को मीडिया के सामने दर्जनों ऐसे वालंटियर्स को पेश किया, जिन पर टीके का परीक्षण किया गया है। 

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टीका लगने के बाद शिकायतें

वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में सामने आये अनेक पीड़ितों ने बताया कि टीका लगने के बाद से भूख नहीं लगने, चक्कर आने, सिर दर्द, आँसू आने, कमर दर्द, वजन कम होने और पेट दर्द जैसी दिक्क़तें हो रही हैं।

ऐसे ही एक पीड़ित मानसिंह ने बताया, ‘अस्पताल प्रबंधन ने उनसे कहा था कि इंजेक्शन लगने के बाद कोरोना नहीं होगा। टीका लगाने के बाद उन्हें बुकलेट दी गई थी। कहा था, अगर कोई समस्या हो, तो इसमें लिख देना।’

परमार का कहना है कि उन्हें पढ़ना ही नहीं आता। अगर टीका लगाने वाले पहले से बताते कि यह कोरोना का ट्रायल टीका है, तो वह लगवाते ही नहीं।

एक अन्य पीड़ित वालंटियर गोलू दास ने कहा,

"पहला डोज़ लगवाने के बाद कोरोना टेस्ट की उनकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आ गयी। अस्पताल ने बाहर की दवा लिखकर चलता कर दिया। दूसरा टीका भी नहीं लगाया।"


गोपाल दास, वालंटियर

पीड़ितों ने ये भी आरोप लगाये कि एक ही परिवार के कई लोगों को टीका लगाया गया, टीका लगाने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने उसके बाद निगरानी नहीं रखी और पहली बार टीका लगाने के बाद दिए काग़ज़ वापस ले लिए गए।

‘भोपाल में इतिहास ना दोहराया जाए’

वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद अंतरराष्ट्रीय गोल्डमैन एनवायर्नमेंटल प्राइज़ से नवाजी गयीं भोपाल गैस पीड़ित महिला कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, ‘हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज ई-मेल इस उम्मीद के साथ किया है कि भोपाल मेमोरियल अस्पताल में हुए क्लिनिकल ट्रायल को ना दोहराया जाये।’

उन्होंने कहा, ‘कोवैक्सीन टीका कितना सुरक्षित है, किसी को भी नहीं मालूम है, बावजूद इसके कोरोना टीके के ट्रायल में 1700 वालंटियर्स में 700 गैस पीड़ितों को भी शामिल किया गया।’

irregularities in covaccine clinical trail, letter to modi - Satya Hindi

उन्होंने कहा, "टीका लगने के दस दिनों के अंदर एक गैस पीड़ित की संदिग्ध हालातों में मौत हो गई। काफी संख्या में वालंटियर्स गंभीर किस्म की तकलीफ़ें झेल रहे हैं। लेकिन परीक्षण करने वालों और राज्य सरकार ने किसी की भी सुध लेना उचित नहीं समझा है।"

उन्होंने यह भी कहा, "भोपाल गैस पीड़ित लोगों पर इस तरह का ट्रायल किसी भी सूरत में जायज नहीं है।"

रशीदा बी ने कहा, 

"गैस पीड़ितों के उपचार के लिए स्थापित भोपाल मेमोरियल अस्पताल में 12 वर्ष पहले विदेशी दवा कंपनियों की दवाओं के क्लिनिकल ट्रायलों में 13 गैस पीड़ितों की मौतें हो चुकी हैं। आज तक किसी को भी सजा नहीं हुई है।"


रशीदा बी, अध्यक्ष, भोपाल गैस पीड़ित महिला कर्मचारी संघ

उन्होंने ट्रायल के बाद जान गंवाने वाले दीपक मरावी के परिवार को 50 लाख रुपयों का मुआवजा दिये जाने की वकालत भी की।

दिहाड़ी मज़दूर की मौत

बता दें भोपाल के टीला जमालपुरा क्षेत्र के सूबेदार कालोनी में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर दीपक मरावी 12 दिसंबर को कोवैक्सीन का ट्रायल टीका दिया गया था। नौ दिनों के बाद 21 दिसंबर को दीपक की संदिग्ध हालातों में मौत हो गई। दीपक के परिवार में पत्नी के अलावा तीन बच्चे हैं।

मरावी की पत्नी का आरोप है कि कोवैक्सीन ट्रायल के पहले तक उसके पति अच्छे-भले थे। किसी तरह की परेशानी नहीं थी। वे रोज़ मजदूरी पर जाया करते थे। ट्रायल के बाद से उनकी तबियत बिगड़ने लगी थी। लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली। उनकी तबियत 19 दिसंबर को ज्यादा बिगड़ी एवं 21 दिसंबर को मुँह से झाग निकलने के बाद उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

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वैक्सीन कंपनी की सफाई

कोवैक्सीन का निर्माण करने वाली कंपनी भारत बायोटेक इंटरनेशनल ने सफाई देते हुए कहा था दीपक की मौत सांस एवं हृदय गति रुकने से हुई है। संदेह है कि उसे ज़हर दिया गया है। पुलिस पूरे मामले की जाँच कर रही है।

उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी मृतक के बिसरे की जाँच की रिपोर्ट आने तक इंतजार करने को कहा। उन्होंने कहा था, ‘वैक्सीन ट्रायल के दुष्परिणाम 24 घंटे से लेकर तीन दिन के अंदर आ जाते हैं।’ सीएम ने यह भी कहा था, ‘वैक्सीन को लेकर गलत धारणा नहीं बनाना चाहिए।’

गैस पीड़ित संगठनों और नये पीड़ितों के सामने आने के बाद वैक्सीन का ट्रायल कर रहे पीपुल्स कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज एवं रिसर्च सेंटर भोपाल ने भी अपनी सफाई पेश की है।

डीन डॉक्टर अनिल दीक्षित के हस्ताक्षर से रविवार को जारी की गई एक प्रेस बयान में दावा किया गया है ट्रायल में सभी मापदंडों और नियमों का पालन किया जा रहा है।

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संजीव श्रीवास्तव
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