मध्य प्रदेश की 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार क्या अब चंद घंटों की मेहमान है? यह सवाल राज्यपाल लालजी टंडन द्वारा मुख्यमंत्री को शनिवार और रविवार की दरमियानी रात भेजे गए ख़त के बाद उठाया जा रहा है। ख़त में उन्होंने 22 विधायकों के इस्तीफों के बाद सरकार के अल्पमत में आ जाने का अंदेशा जताते हुए 16 मार्च को उनके (राज्यपाल के) अभिभाषण के ठीक बाद फ़्लोर टेस्ट देने संबंधी निर्देश सरकार को दिए हैं। राज्यपाल ने अपने ख़त में साफ़ कहा है कि मुझे प्रथम दृष्टया विश्वास हो गया है कि आपकी सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है और वह अल्पमत में है।
राज्यपाल लालजी टंडन द्वारा मुख्यमंत्री कमलनाथ को लिखे पत्र में तारीख़ तो 14 मार्च की अंकित है, लेकिन इसे आधी रात के बाद यानी 15 मार्च लग जाने के आसपास सरकार को भेजा गया है। राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 174 सहपठित 175 (2) में निहित अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्रदेश सरकार को ये निर्देश दिए हैं।
ख़त में क्या हैं निर्देश?
- मध्य प्रदेश विधानसभा का सत्र 16 मार्च 2020 को सुबह 11 बजे प्रारंभ होगा। मेरे अभिभाषण के तत्काल बाद एकमात्र कार्य विश्वास प्रस्ताव पर मतदान होगा।
- विश्वासमत विभाजन के आधार पर बटन दबाकर ही होगा और अन्य किसी तरीक़े से नहीं किया जायेगा।
- विश्वासमत की संपूर्ण वीडियोग्राफ़ी विधानसभा द्वारा स्वतंत्र व्यक्तियों से कराई जाएगी।
राज्यपाल ने अपने निर्देशों में यह भी साफ़ कर दिया है कि उपरोक्त कार्यवाही हर हाल में 16 मार्च को प्रारंभ होगी और स्थगित, विलंबित या निलंबित नहीं की जाएगी।
राज्यपाल टंडन ने पत्र में यह भी कहा है कि 22 विधायकों द्वारा विधानसभा स्पीकर को इस्तीफ़े भेजने की सूचना उन्हें है। इस्तीफ़ा भेजने वाले विधायकों ने अपने पदों से त्याग की जानकारी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यमों से भी दी है। मीडिया के समूचे कवरेज को उन्होंने (राज्यपाल ने) ध्यान से देखा है।
राज्यपाल ने कहा है कि ख़ुद मुख्यमंत्री ने 13 मार्च को मिलकर मुझे विश्वासमत हासिल करने की सहमति दी हुई है। वह विधायकों की सुरक्षा चाहते थे। बीजेपी का एक प्रतिनिधिमंडल 14 मार्च को मुझसे मिला और इसने बताया है कि त्यागपत्र देने वाले विधायकों पर अवांछित दबाव बनाया जा रहा है।
बसपा-सपा और निर्दलीय साथ आये तो भी नहीं बचेगी सरकार!
मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। दो पहले से रिक्त थीं। कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफ़े स्पीकर ने मंजूर कर लिए हैं। अभी 16 अन्य विधायकों के त्यागपत्र लंबित होने के हिसाब से फिलहाल सदन में सदस्यों की संख्या 222 बच रही है।
222 नंबरों के हिसाब से सदन में अब 112 नंबरों की आवश्यकता होगी। जिन 16 विधायकों के इस्तीफ़े अभी स्पीकर के पास विचाराधीन हैं उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों की संख्या 13 है। तीन अन्य इस्तीफ़ा देने वाले विधायकों में दो दिग्विजय सिंह खेमे के माने जाते हैं, जबकि एक अन्य हाटपिपल्या के विधायक ने भी सिंधिया के बीजेपी में जाने की वजह से अपना त्यागपत्र भेजा है।
उधर बीजेपी के पास विधायकों की संख्या 107 है। इधर 22 विधायकों द्वारा ‘साथ छोड़ दिए जाने’ के बाद कांग्रेस के पास स्पीकर सहित 92 विधायक ही बचे हैं। बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों का सरकार को समर्थन हासिल था। जिन कांग्रेसी विधायकों का इस्तीफ़ा मंजूर नहीं हुआ है उनकी संख्या 16 को भी जोड़ लिया जाए तो तकनीकी तौर पर कांग्रेस और उसकी सरकार का समर्थन करने वाले सदस्यों की कुल संख्या अभी 115 हो रही है। इनमें वोटिंग के वक्त कितने साथ होंगे? मुख्यमंत्री कमलनाथ भी आज ठोस दावा करने की स्थिति में नहीं हैं।
बता दें कि मार्च महीने की शुरुआत में सरकार गिराने का खेल जब आरंभ हुआ था तब पहली खेप में दिल्ली और हरियाणा ले जाये गये कुल 10 विधायकों में बसपा, सपा और निर्दलीय विधायक भी शामिल रहे थे। अब सदन में इन सात विधायकों में से वोटिंग के समय कमलनाथ सरकार का कितने विधायक साथ देंगे? यह सोमवार को विश्वासमत के लिए वोटिंग की नौबत पैदा होने पर स्पष्ट हो जायेगा।
कमलनाथ सरकार में मंत्री के नाते शामिल निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल पिछले सप्ताह ही साफ़ कर चुके हैं कि वह सरकार के साथ तभी तक रहेंगे, जब तक कमलनाथ मुख्यमंत्री रहेंगे। यदि हालात बदले तो वह पाला बदलने से परहेज नहीं करेंगे।
बसपा की सदस्य रामबाई और संजीव सिंह संजू की स्थिति भी वैसी ही है। एक अन्य निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी बीजेपी के सतत संपर्क में हैं। बीजेपी का दावा तो यह भी है कि वोटिंग के वक़्त कुछ और कांग्रेसी सदस्य भी सदन में पाला बदलेंगे। हालाँकि कांग्रेस अभी भी दावा कर रही है कि वह सदन में अपना बहुमत साबित कर देगी।
सरकार का बच पाना बेहद कठिन
सत्तारूढ़ दल और उसके खेवनहार भले ही सदन के बाहर बहुमत साबित कर देने का दावा करें, लेकिन नंबर गेम में सरकार का बच पाना नामुमकिन नज़र आ रहा है। नंबरों के आधार पर बीजेपी सरकार बनाने की आसान स्थिति में दिख रही है।
आज लौट आयेंगे विधायक
कांग्रेस और उससे बगावत कर भाजपा का दामन थाम लेने वाले विधायक आज दोपहर या शाम तक भोपाल लौट आयेंगे। कांग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर में रखा था। जबकि भाजपा का दामन थाम लेने वाले सिंधिया समर्थक विधायक बेंगलुरू में बीजेपी के ‘मेहमान’ बने हुए थे।
कमलनाथ खेल सकते हैं यह दाँव
जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री कमलनाथ सरकार न बच पाने के हालात बन जाने पर राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपकर विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। कांग्रेस के बचे हुए विधायकों की संख्या 92 है। छह के इस्तीफ़े मंजूर हो चुके हैं। जबकि 16 के लंबित हैं। ऐसे में कुल संख्या 114 हो रही है।
राज्यपाल अनुशंसा नहीं मानेंगे तो 114 सीटों पर उपचुनाव के हालात बनेंगे। इतनी सीटों पर उपचुनाव की बजाय मध्यावधि चुनाव का रास्ता विधिवेत्ता ज़्यादा ‘उत्तम’ क़रार दे रहे हैं।