महाराष्ट्र में काफ़ी मशक्कत के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार तो बन गई है, लेकिन क्या यह नयी सरकार अब आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों से निपट पाएगी? राज्य की आर्थिक हालत ठीक नहीं है, रोज़गार मुहैया कराने की भी चुनौती है और ऐसे में न्यूनतम साझा कार्यक्रम में की गई किसानों की क़र्ज़माफ़ी की घोषणा के लिए भी बड़ी राशी की ज़रूरत होगी।
सरकार तो बना ली, आर्थिक मोर्चे पर महाराष्ट्र को कैसे संभालेंगे उद्धव?
- महाराष्ट्र
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- 29 Nov, 2019

महाराष्ट्र में काफ़ी मशक्कत के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार तो बन गई है, लेकिन क्या यह नयी सरकार अब आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों से निपट पाएगी?
प्रदेश पर पाँच लाख करोड़ का क़र्ज़ है जो पिछले पाँच सालों में तेज़ी से बढ़ा है। वर्तमान केंद्र सरकार के जो नेता या अर्थशास्त्र विशेषज्ञ हैं वे मुंबई स्थित मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के क़ारोबार को ही अर्थ-व्यवस्था का संकेतक मानते हैं और इस नयी सरकार आने से उसमें कोई गिरावट देखने को नहीं मिली है लिहाज़ा यह नहीं कहा जा सकता कि देश के कुछ चुनिंदा औद्योगिक घरानों की सेहत पर प्रदेश की सत्ता परिवर्तन का कुछ असर पड़ने जा रहा है। वस्तु और सेवा कर में निरंतर दर्ज हो रही गिरावट का राष्ट्रव्यापी असर है और महाराष्ट्र को भी इसका सामना करना पड़ रहा है। तीनों ही दलों ने मिलकर एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम या यूँ कह लें कि एक सामूहिक घोषणा पत्र तैयार किया है उसमें किसानों की पूर्ण क़र्ज़ माफ़ी इसमें सबसे प्रमुख है। यानी सरकार सबसे पहले जो काम करने जा रही है वह 55 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ माफ़ करना है।