दिल्ली के नगर निगम चुनाव में आम आदमी के मुखिया अरविंद केजरीवाल इस बार कम सक्रिय हैं क्योंकि वह गुजरात में व्यस्त हैं। वहां उनके लिए काफी कुछ दांव पर है। वहां के चुनाव प्रचार में वह अपने को नरेन्द्र मोदी के समकक्ष रखने की कोशिश में जुटे हुए है ताकि विपक्ष के राष्ट्रीय नेता के तौर पर वह स्थापित हो जाएं। उनका यह प्रयास वाराणसी से शुरू हुआ था जहां वह प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उतर गये थे और बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे।
केजरीवाल के बयानों और भाषणों में अब वह तल्खी क्यों नहीं है?
- विश्लेषण
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- 3 Dec, 2022


दिल्ली नगर निगम के चुनाव में अरविंद केजरीवाल बीजेपी के खिलाफ आक्रामक नहीं रहे और उनका अधिकतर वक्त गुजरात में चुनाव प्रचार करते हुए बीता। ऐसा क्यों हुआ?
ज्यादातर लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि हार की पक्की संभावना के बावजूद केजरीवाल चुनाव में क्यों उतर गये हैं। तब कुछ समझदार विश्लेषकों ने यह बात पकड़ ली थी कि दरअसल केजरीवाल, राष्ट्रीय रंगमंच पर आने के इरादे से ही वाराणसी के बहुप्रचारित चुनाव में उतरे हैं न कि जीतने के इरादे से।
इसके बाद दिल्ली के मुख्य मंत्री के तौर पर केजरीवाल अपना काम-धंधा छोड़कर पीएम मोदी और उनके सहयोगियों पर लगातार हमले करते रहे। लगभग तीन वर्षों तक ऐसा करने के बाद उन्हें समझ में आया कि इससे बात नहीं बनेगी। इतना ही नहीं अरुण जेटली सहित कई नेताओं से उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी। उसके बाद से उनका टोन वैसा तो नहीं रहा। उन्होंने आक्रामक हमले कम कर दिये।





















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