डर, डर मेरे दिल, डर,डर, इतना डर, कि डरबन जाये तेरा घरडर में ही तेरा बचाव,छुपाओ, अपने आप को छुपाओछुपाओ अपने आप कोजिस्म में, मकान मेंकार्पोरेटी दुकान मेंअपने आप को छुपाओमौन के तूफ़ान मेंडर से भी डरजीते-जी ही मरडर, ऐ दिल मेरे, डरकि डर से हीउदय होता है, सरडर, ऐ दिल मेरे, डरडर, ऐ देश मेरे, डर
डर और हौसले/हिम्मत को कई बार विरोधी भावनाएँ माना जाता है; डर को मनुष्य की नकारात्मक मानसिक स्थिति से जोड़ा होता है और हौसले को सकारात्मक स्थिति से, लेकिन मनुष्य की मानसिक स्थिति इतनी सीधी और सपाट नहीं होती। वह डरता है स्थितियों से, वारदातों से, घटनाओं से, हालात से, डराने वाले लोगों से, भीड़ से, सेना से, पुलिस और क़ानून से, युद्धों और लड़ाइयों से, अपने और परायों के लालच से, भविष्य की अनिश्चितता से डरता है। अपने समय के परिवेश से, अतीत के अनुभवों और यादों के कारण, बीते समय में दिए गए घावों के कारण. डर मनुष्य के मानसिक दुनिया का हिस्सा है। डरने के बाद ही इंसान सोचता है कि डर को कैसे नियंत्रित करना है, कैसे हिम्मत जुटानी है और कैसे हिम्मत का दामन थामना है। उसे अपने डरने पर शर्म आती है। वह यह भी तय कर सकता है कि वह डरता रहे। ज्याँ पॉल सार्त्र से शब्द उधार लेकर कहा जा सकता है कि “वह दीवार में एक छेद करके उसमें छिप जाएगा” या उसको प्रतीत होता है कि लुक-छिप कर नहीं जी सकता, उसको हालात का सामना करना पड़ेगा।






















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