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भारत की गति ‘चीता चमत्कारों’ की मोहताज नहीं! 

जब आप अपना कर्तव्य नहीं करते तो किसी भी आलोचना से बचने का सबसे सरल तरीका यही है कि जिसके लिए आपने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया, उसके ओंठ खोलने से पहले ही आप कोई सम्बद्ध-असम्बद्ध प्रश्न कर दें तो फिर सामने वाला अपना प्रश्न या शिकायत भूलकर जवाब ढूँढ़ने में ही लग जाएगा। जैसे कि जब कोई यह शिकायत करने आये कि बिल समय पर जमा कराते रहने पर भी हमारे यहां पानी क्यों नहीं आ रहा है ? तो उसकी बात का उत्तर देने की बजाय उसी से प्रश्न कर दें कि जब देश का विभाजन हुआ तब तू क्या कर रहा था ? या जब गाँधी जी की हत्या हुई तब तू क्या कर रहा था ? 

अरे, भाई हम तो उस समय साढ़े पांच साल के थे। पहली कक्षा में पढ़ रहे थे। उस दिन दिल्ली से तीन सौ किलोमीटर दूर अपने गांव में एक शादी में गए हुए थे। जीम रहे थे तभी किसी ने आकर लड़की के बाप को खबर दी कि किसी नाथूराम गोडसे नाम के सच्चे ‘देशभक्त’ ने गाँधी जी की हत्या कर दी है ? रंग में भंग पड़ गया।  किसी तरह से लोगों ने भारी मन से काम समेटा। अब ज़्यादा जानकारी चाहिए तो किसी हिन्दू महासभा के पुराने और कर्मठ कार्यकर्ता से पूछो कि किसने नाथूराम को बंदूक, गोलियां उपलब्ध करवाईं और योजनाबद्ध तरीके से यह पुण्य कार्य करवाया।  लेकिन उन से कोई नहीं पूछेगा।  

आज जैसे ही तोताराम आया, हमने भी बस, कुछ इसी अंदाज़ में पूछा- “तोताराम, भारत कैसे दौड़ेगा ?”

तोताराम ने पूछा- “कौन भारत ?”

हमने कहा- “भारत को नहीं जानता? अपना महान देश भारत, विश्वगुरु भारत।” 

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बोला- “भारत कोई एक व्यक्ति थोड़े ही है जिसका सुबह-सुबह 'अग्निवीरों' की तरह भर्ती के लिए फिजीकली फिट होने के लिए दौड़ने या किसी के सुबह-सुबह घूमने की तरह कोई निश्चित रूट या तरीका हो। अब इतना बड़ा देश है, 140 करोड़ लोग हैं।  जब जिसका जो मन और आवश्यकता होगी वैसे जो कुछ करना होगा कर लेगा।  सब एक साथ, एक ही काम करें यह तो ज़रूरी नहीं है।  हाँ, कभी जनता की भक्ति और अपनी शक्ति जांचने के लिए मोदी जी एक निश्चित समय देकर ताली-थाली बजवायेंगे, दीये जलवायेंगे, झंडा लहरवाएँगे तो बात और है।” 

वैसे भारत एक प्राचीन देश है। हमारे यहां का एक आदर्श वाक्य है- चरैवेति ....चरैवेति .... | भारत चल ही रहा है अपनी गति से। और चलने का काम भी निरंतर नहीं हो सकता। चलेगा। विश्राम करेगा। फिर चलेगा।  

जीवन चलने का नाम।  चलते रहो सुबह-ओ-शाम।। रोज का काम है चलना।  किससे चलने का सर्टिफिकेट लेना है।   

आज तो तोताराम ने हमें ही अपनी बातों को बोतल में बैठा दिया।  

हमने कहा- “तोताराम, यदि भारत दौड़े तो कैसे दौड़ेगा ?” 

बोला- “अब दुनिया के इस सबसे पुराने, बूढ़े और बुजुर्ग देश को दौड़ाने की क्या ज़रूरत आ पड़ी ?अब तो आज़ादी का 'अमृत महोत्सव' भी मन चुका।  ऐसे में तो इस देश को आडवाणी जी की तरह निर्देशक मंडल में बैठकर यहीं से इस समस्याग्रस्त विश्व का मार्गदर्शन करना चाहिये। अब तो मोदी जी को एक सर्वेक्षण के तहत विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता मान लिया गया है। अब ज़्यादा भागने दौड़ने की ज़रूरत नहीं है।  अब तो मोदी जी का आडवाणी जी के साथ निर्देशक मंडल में बैठने का समय आने वाला है।”

हमने कहा- “दौड़ने की ज़रूरत है क्यों नहीं ? अभी तो अटल जी को छोड़कर पिछली सभी सरकारों द्वारा बिगाड़े गए सभी कामों का सुधार भी तो करना है। वैसे कुछ लोग तो यही मानते हैं कि अभी तो 2014 में आज़ादी मिलने के हिसाब से तो मात्र 8 साल ही हुए हैं। अभी तो मोदी जी बहुत एक्टिव हैं।  दिन में 24 घंटे काम करने में सक्षम है। और उनके काम करते रहने की ज़रूरत भी है।  देश सेवा की इसी लगन के तहत अपने राजस्थान में 88 वर्षीय कैलाश चंद्र मेघवाल उम्र का कैलाश पर्वत छोड़कर 2023 में चुनाव के कुरुक्षेत्र में उतरने की घोषणा कर चुके हैं।  ऐसी लगन लगने पर यदि पार्टी टिकट न दे तो आदमी निर्दलीय या नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ सकता है। सत्ता के लालच में अनुशासित पार्टी भी अपने नियमों का थूक चाट सकती है।”

बोला- “मेरा तो मानना है कि यदि कोई संकट या प्राणों पर भय न आ जाए तब तक सहज चाल से चलना ही उचित   है। वैसे यदि किसी बूढ़े के पीछे भी कोई कुत्ता पड़ जाए तो प्राण बचाने के लिए तेज गति से दौड़ना ज़रूरी हो जाता है। सामान्यतया उम्र अधिक हो जाने पर सहज गति से ही सब काम करने चाहियें।वैसे भी कहा गया है- जल्दी का काम शैतान का।  अंग्रेजी में भी- स्लो एण्ड  स्टीडी विंस द रेस।”

हमने कहा- “जिसे उत्तर नहीं मालूम होता वह तेरी तरह ऐसे ही बिना बात की फालतू और बड़ी-बड़ी बातें बनाने का नाटक करता है। कुछ पढ़ा-लिखा भी कर, ज्ञानियों की संगति का कुछ लाभ उठाया कर। आज पीयूष गोयल का एक लेख छपा है- भारत चीते की गति से दौड़ेगा।”

तोताराम एकदम से दार्शनिक हो गया।  उसके तर्कों में भी हमें कुछ दम लगा, बोला- “मास्टर, भारत भारत की गति से क्यों नहीं चलता ? मनुष्य मनुष्य की तरह क्यों नहीं रहना चाहता ? शेर की तरह दहाड़ना चाहता है, चीते की तरह तेज गति से दौड़ना चाहता है।  सारे योगासन और उपमाएं भी मनुष्य की इसी हीन भावना और कुंठा को दर्शाते हैं।  कोई चूहा हाथी को देखकर कुंठित नहीं होता। वह अपने चूहे के जीवन को ही पूरी निष्ठा से जीता है। हीनभावनाग्रस्त व्यक्ति कभी कंटीली  मूँछें रख कर शहीद-ए-आज़म बनना चाहता है तो कभी दाढ़ी रखकर नानक या टैगोर बनना चाहता है, कभी चरखा चलाकर राष्ट्रपिता बनना तो कभी नेहरू की निंदा करके खुद नेहरू से बड़ा बनना चाहता है।”

हमने कहा- “मोदी जी विश्व के पहले विकास-पुरुष हैं तो उनके विकास की गति चीते से कम कैसे हो सकती है ?  वैसे भी मोदी जी ने भारत का अब तक का सबसे बड़ा 100 लाख करोड़ का 'गति-शक्ति प्रोजेक्ट'  शुरू किया है तो उसका 'शुभंकर' चीते के अतिरिक्त और क्या हो सकता है ? अब तक तो पिछड़े लोग कबूतर उड़ाकर काम चला लेते थे लेकिन अब भारत बदल रहा है, उसका चीते की गति से कम पर काम नहीं चलने वाला। तभी तो 70 साल बाद मोदी जी को चीते लाने पड़े। अब चीते देखो और देश की गति का अनुमान लगाकर गर्व से भर जाओ।” 

Cheetahs from Namibia grand home in Kuno National Park - Satya Hindi

बोला- “मास्टर, पहले कुछ राजा, नवाब चीते पालते थे।  उसके दो कारण थे- पहला लोगों को डराना दूसरा चीतों से शिकार पकड़वाना। राजा के खाने के बाद बची हुई हड्डी चीते को भी मिल जाती है।” 

जैसे आजकल सरकारें किराये की भीड़ जुटाती हैं या दो-दो रुपए प्रति मैसेज के ट्रोलर रखती हैं या बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ लोगों को घटिया और फालतू चीजें टिकाने के लिए एमबीए या सीईओ रूपी चीते रखती हैं। इंदिरा नूई का नाम दुनिया की प्रभावशाली महिलाओं में कई साल तक रहा तो क्या वह किसी जनकल्याण के काम के कारण था ? वह था भारत में हानिकारक कोकाकोला की बिक्री बढ़ाने के कारण। उसके सामने सावित्री बाई फुले या पंडिता रमाबाई कुछ नहीं ?”

इसके बाद बहुत लम्बा भाषण दे चुके किसी चीमड़ मुख्यअतिथि की तरह तोताराम ने कहा- 

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“बस, एक बात कहकर मैं अपनी बात को विराम देता हूँ- चीता एक साथ केवल 300 मीटर तक ही असाधारण गति से दौड़ सकता है।  उसके बाद जयराम जी की।  इसलिए 'चीता की तरह तेज-तेज दौडंती' नहीं सहज गति से 'चरैवति चरैवेति' ही ठीक है।  हाथी की तरह मस्त और भव्य चाल।  गणेश का हाथी, लक्ष्मी का हाथी।” 

याद रख, घास जितनी तेजी से बढ़ती है उसी गति से समाप्त भी हो जाती है। शताब्दियों तक शरण देने वाले संस्कृति के बरगद धैर्यपूर्वक धीरे-धीरे बढ़कर ही पाताल तक अपनी जड़ें गाड़ते हैं।  

और देश, वह भी भारत जैसा देश, कोई सौ मीटर की दौड़ दौड़ने वाला देश नहीं है। वह अनादि काल से अनंत काल तक चलने वाला देश है जिसकी महानता की संभावनाएं 'गाँधी एक असंभव संभावना' की तरह हैं। वह किसी 'गति-शक्ति-प्रोजेक्ट' और 'चीता-चमत्कारों' की मोहताज नहीं है।

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रमेश जोशी
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