रफ़ाल-सौदे पर महालेखा नियंत्रक की रपट संसद में पेश क्या हुई, उजाला और अंधेरा एक साथ हो गया है। सरकार के लोग अपनी पीठ ख़ुद ही थपथपा रहे हैं, यह कहते हुए कि इस रपट के मुताबिक़ मनमोहन सरकार जिस दाम पर यह विमान ख़रीद रही थी, मोदी सरकार ने वह सौदा 2.86 प्रतिशत सस्ते में किया है, जबकि विरोधी इसी रपट के कई अंश निकाल-निकालकर बता रहे हैं कि हमारी सरकार ने रफ़ाल-सौदे में फ़्रांसीसी सरकार और दसॉ कंपनी के आगे कैसे घुटने टेके हैं।
रफ़ाल सौदे पर शक अब भी बाक़ी है
- विचार
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- 9 Mar, 2019

सरकार यह क्यों नहीं बता पा रही है कि उसने 500 करोड़ का जहाज 1600 करोड़ रुपये में क्यों ख़रीदा? इसमें महालेखा नियंत्रक के सहारे की ज़रूरत ही क्या है? पिछले 12 साल में महंगाई और डाॅलर या यूरो की क़ीमत कितनी बढ़ी? उस जहाज में क्या-क्या नए यंत्र या हथियार जोड़े गए?
12 साल से चल रही यह सौदेबाज़ी बोफ़ोर्स की तोपों से भी ज़्यादा गाली-गलौज पैदा कर रही है। मोदी-मोहन, दोनों सरकारें अपनी-अपनी छवि बचाने की कोशिश कर रही हैं।