सरकारी आँकड़े झूठे होते हैं, यह भारत में एक आम धारणा है। इसलिए लोग यही मानते हैं कि देश में कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जितने आँकड़े दिए जा रहे हैं वे सच नहीं हो सकते। एक वजह यह भी है कि महामारी के आतंक को लेकर लोगों के अनुभव कुछ अलग क़िस्म के हैं, जिनकी झलक उन्हें इन आँकड़ों में नहीं मिलती। 
दुनिया भर में इसे कुछ अलग तरह से देखा जाता है और सांख्यिकी की दुनिया में यह कहा जाता है कि भारत में आँकड़ों की दरिद्रता वाला समाज है, यानी डाटा डेफिसियेंट सोसायटी।
भारत सरकार के आँकड़े बताते हैं कि यहाँ कोविड संक्रमण से मरने वालों की कुल संख्या अभी तक साढ़े चार लाख से कुछ ज़्यादा रही। कुछ समय पहले ब्रिटिश पत्रिका इकानामिस्ट ने कहा था कि हमें इन आँकड़ों को छह से गुणा करके देखना चाहिए। कुछ दूसरे अनुमान बताते हैं कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मरने वालों की संख्या लगभग 40 लाख रही होगी।