दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो एकबार के लिये ऐसा लगेगा कि कुछ भी तो नहीं बदला है। फिर से वही आम आदमी पार्टी की सरकार, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री, बीजेपी की करारी हार और राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस एक बार फिर शून्य पर यानी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। लेकिन थोड़ा ध्यान से देखेंगे, थोड़ा रुककर देखेंगे तो समझ आता है कि इससे बड़े बदलाव का चुनाव तो कभी हुआ ही नहीं। सब कुछ तो बदल गया। चुनाव का नैरेटिव ही बदल गया। सरकार में रहने वाली पार्टी अपने काम के नाम पर चुनाव जीत गई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें हार गईं, नफ़रत की राजनीति हार गई। 

नहीं दिखी एंटी इनकमबेंसी 

आम आदमी पार्टी ने पचास फ़ीसद से ज़्यादा वोट हासिल किये हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत उनके सभी मंत्री चुनाव जीत गए हैं। पांच साल दिल्ली जैसे राज्य में सरकार चलाना और काम के नाम पर चुनाव जीत जाना मुश्किल काम है, बहुत मुश्किल काम। केजरीवाल सरकार के सभी मंत्रियों का चुनाव जीतना यह बताता है कि कोई एंटी इनकमबेंसी नहीं है। किसी मंत्री के ख़िलाफ़ भी नहीं। किसी मंत्री के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं। कोई नाराजग़ी दिखाई नहीं दी।