तीन तलाक़ की तर्ज़ पर बीजेपी और एनडीए से नाता तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल ने भी अभी वही कहा है जो शिवसेना ज़रा पहले कह चुकी है कि मौजूदा एनडीए वाजपेयी-आडवाणी के ज़माने वाला नहीं है। नीतीश कुमार भी जब 2015 में बीजेपी से दामन छुड़ाकर भागे थे तब भी यही ‘नैरेटिव’ यानी धारणा बनायी गयी थी। हालाँकि, नये-पुराने एनडीए की बातें विशुद्ध भ्रम हैं। राजनीतिक फ़रेब है। दरअसल, वो भी संघ का सत्ता-काल था और ये भी संघ का ही सत्ता-युग है। वाजपेयी-आडवाणी की तरह ही नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की हैसियत भी संघ के मुखौटों जैसी ही है।