loader

लोगों की समझ को इतना कम न आंके नेतृत्व

प्रधानमंत्री के दावे और वर्तमान हकीकत में उस समय भी विरोधाभास दिखा जब उन्होंने बताया कि गंगा के दोनों किनारों पर किसान जैविकीय खेती कर लाभ ले रहे हैं। शायद वह भूल गए कि अभूतपूर्व कोरोना संकट की इस घड़ी में पिछले एक सप्ताह से गंगा के दोनों किनारों पर उत्तर प्रदेश और बिहार में शव बहाने की तसवीर और खबरें आ रही हैं। 
एन.के. सिंह

संगीत की दुनिया में भी हर राग का समय होता है। भैरवी शाम को नहीं बजाया जाता। संगीत मकरंद में नारद ने कहा है कि समयानुरूप राग न गाने से सुनने वालों का जीवन-काल तक प्रभावित होता है। 

प्रधानमंत्री ने एक बार फिर किसान सम्मान निधि की आठवीं क़िस्त देने के अवसर को देश भर में टीवी पर दिखवाया। इस स्कीम में करीब 11 करोड़ किसानों को 500 रुपया महीना दिया जाता है। इस शो का उद्देश्य था कि देश में कैसे किसान सरकार की मदद से कृषि के नए आयाम खोज रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इस मौक़े पर कहा कि आत्म-सम्मान और गौरव सबसे बड़ी पूँजी है। 

ताज़ा ख़बरें

किसान सहित पूरा देश जब कोरोना से तिल-तिल कर दवा, इलाज़ और साधन के अभाव में मर रहा हो, बेचारगी में नदियों में लाशें बहाई जा रही हों, विदेशों से मदद की गुहार लगाई गयी हो, देशवासियों को यह बताना कि आत्म-सम्मान और गौरव सबसे बड़ी पूँजी है, प्रधानमंत्री की उस सोच का मुजाहरा है जिसमें औसत भारतीयों की समझ को नेता बेहद बचकाना मानता है। 

जब एक बच्चा असावधानी के कारण बाप की गोद से गिरने पर चोटिल हो कर रोने लगता है तो बाप उसे चुप कराने के लिए कहता है “धरती ने मारा है ये लो, हम इसको डंडे से मारते हैं”। प्रधानमंत्री ने कुछ इसी तरह लोगों की समझ को आँका। 

देश जब दवा, बेड्स, इलाज, ऑक्सीजन और टीके के अभाव में मौत सामने देख रहा है, देर से ही सही, प्रधानमंत्री के सांत्वना और भरोसे के दो शब्द देशवासियों ने सुने। इस पर कितना भरोसा होगा यह तो फिलहाल नहीं बताया जा सकता लेकिन यह न होता तो लोगों का निराशा-जनित आक्रोश जरूर बढ़ता जाता।
प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं की तारीफ की और कहा कि पंजाब के किसान इससे बहुत खुश हैं। जाहिर है सरकार को सबसे बड़ा विरोध पंजाब के किसानों के लगातार चल रहे आन्दोलन को लेकर झेलना पड़ा है। हालांकि दी जाने वाली रकम शायद ही किसी किसान की स्थिति बदल रही हो। 
देखिए, कोरोना संकट में सरकार की भूमिका पर बातचीत- 

गंगा में बहते शव 

प्रधानमंत्री के दावे और वर्तमान हकीकत में उस समय भी विरोधाभास दिखा जब उन्होंने बताया कि गंगा के दोनों किनारों पर किसान जैविकीय खेती कर लाभ ले रहे हैं। शायद वह भूल गए कि अभूतपूर्व कोरोना संकट की इस घड़ी में पिछले एक सप्ताह से गंगा के दोनों किनारों के लगभग 600 किलोमीटर लम्बे नद्य-मार्ग में हजारों की तादाद में उत्तर प्रदेश और बिहार में शव बहाने की तसवीर और खबरें आ रही हैं। 

शायद किसी भी सभ्य समाज और उसकी लोकतांत्रिक सरकार के लिए इससे बड़ी कोई असफलता नहीं हो सकती। ऐसे में उनका सन्देश कि आत्म-सम्मान और गौरव सबसे बड़ी पूँजी है, उन लाखों लोगों के लिए जिनके परिजन ऑक्सीजन के बिना तड़प-तड़प कर दम तोड़ गए, ढांढस देने वाला तो दूर शायद अपनी राजनीतिक समझ पर कोफ़्त का होगा।  

Modi government failed in corona crisis - Satya Hindi

वैक्सीन की कमी 

सत्य को नकारने और बच्चे को झुनझुना पकड़ाने के नेतृत्व की बेपरवाह हिमाकत का एक और उदाहरण देखें। लोगों से प्रधानमंत्री की अपील थी कि चूंकि वैक्सीन बचाव का बहुत बड़ा साधन है लिहाज़ा वे अपनी बारी आने पर वैक्सीन ज़रूर लगवाएं। गोया वैक्सीन तो गली-मोहल्लों में लग रही है लेकिन ये “नासमझ” जनता लगवाने में दिलचस्पी नहीं रखती। 

एक बात फिर लोगों की (ना)समझी को लेकर नेतृत्व के धृष्ट विश्वास को दर्शाती है। लोगों में टीका लगवाने के प्रति उत्साह शायद दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन इसके अभाव के कारण दर्जनों राज्यों ने टीकाकरण रोक दिया है। बेहतर होता देश का नेतृत्व वैक्सीन की उपलब्धता के प्रति लोगों को आश्वस्त करता। बहरहाल यह संबोधन देश की निराशा को शायद कुछ कम कर सके।

Modi government failed in corona crisis - Satya Hindi

आत्ममुग्धता में गलती पर गलती      

पिछली 28 जनवरी को दावोस विश्व आर्थिक फोरम में दुनिया के नेताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा “...और बड़ी-बड़ी संस्थाओं ने क्या-क्या कहा था? भविष्यवाणी की गयी थी कि पूरी दुनिया में कोरोना से सबसे प्रभावित देश भारत होगा, भारत में कोरोना संक्रमण की सुनामी आयेगी। (यह व्यंग्यात्मक शैली प्रधानमंत्री के उस भाव का मुजाहरा है जिसमें नकारात्मक बात कहने वालों को मूर्ख माना जाता है।) उन्होंने आगे कहा “आज भारत विश्व को दिशा दिखा रहा है।” 

हकीकत से कितना दूर है हमारा नेतृत्व?    

पहले तो दोबारा आने वाले खतरे और नए शत्रु की मारक-क्षमता का अहसास हीं नहीं हुआ, बल्कि उसकी जगह राजकीय आत्ममुग्धता ने प्रशासनिक उनींदेपन को जन्म दिया। जब शत्रु घर में घुस-घुस कर मारने लगा तो उसी “मैं कालजयी हूँ” के कुम्भकर्णी भाव ने चुनाव-दर-चुनाव और धार्मिक आयोजन की खुली छूट दी। जब सब कुछ विपरीत जाने लगा तो इस महामारी से लड़ने के हथियार गायब मिले। युद्ध जीतने का अंतिम ब्रह्मास्त्र – वैक्सीन कम पड़ने लगी। 

सिस्टम की कोशिश तो यह होनी चाहिए कि हर कानूनी ताकत, रणनीतिक कौशल और संसाधन का इस्तेमाल कर वैक्सीन का उत्पादन अगले कुछ हफ़्तों में कम से कम ढाई गुना बढ़ाया जाये लेकिन इस संकट के दो माह बाद भी ऐसा उपक्रम अभी तक देखने में नहीं आया।

कोरोना की तीसरी लहर 

जो जनता देश के मुखिया की एक आवाज पर दिया-बत्ती, टार्च, घंटा, घड़ियाल ले कर नाचना शुरू कर देती थी यह मानते हुए कि यह मुखिया हर संकट से बचाएगा, वह आज तरस रही है उसके राष्ट्र के नाम आश्वासन  के लिए। अभी बहु-आयामी संकट की दहशत से लोग डिप्रेशन में जा रहे थे कि शासन के एक लाल-बुझक्कड़ ने अपने ब्रह्मज्ञान से बताया कि “तीसरी लहर भी आयेगी और वह इससे भी ज्यादा संघात-क्षमता वाली होगी”। यह ब्रह्मज्ञान दूसरी लहर के पहले नहीं आया था। 

टीकाकरण की व्यवस्था को क्यों बदला?

अंतिम और सबसे भारी गलती हुई जब देश की सरकार ने टीकाकरण की पूर्व केंद्रीकृत व्यवस्था को बदलते हुए राज्यों और निजी अस्पतालों को सीधे वैक्सीन-निर्माताओं से टीके की कीमत के लिए मोल-तोल करने की व्यवस्था दी। सरकार यह नहीं समझ पायी कि सदियों की सबसे बड़ी त्रासदी का निदान केवल सरकार ही कर सकती है यानी केंद्र टीका खरीदे और समान रूप से राज्यों और निजी अस्पतालों को मुफ्त या बेहद कम कीमत पर उपलब्ध कराये। 

विचार से और ख़बरें

पुरानी व्यवस्था इतनी पुख्ता थी कि 29000 टीका वितरण केन्द्रों से देश भर में इसका वितरण होता था, जिलों में एक संचित वातानुकूलित गोदाम से इसका वितरण प्रशासन करता था। अब ऐसी कोई व्यवस्था संभव नहीं क्योंकि हर अस्पताल, राज्य सरकार अगल-अलग दामों पर टीका हासिल करेगी तो भण्डारण कौन और किस दर पर करेगा? 

कोरोना पर जीत का एक ही रास्ता है सरकार टीका उत्पादन बढ़ाये और वितरण की पहली वाली नीति लागू करे।  

बहरहाल देश के वर्तमान नेतृत्व को देश की जनता के प्रति अपना भाव बदलना होगा। जनता तभी तक किसी नेता को देवत्व देती है जब तक उसके “मानवोचित दुर्गुण” नहीं दिखाई देते।  

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
एन.के. सिंह
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें