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मोहन भागवत जी ऊंचा सोचते हैं, नीचे देखते नहीं

मोहन भागवत जी के साथ थोड़ी उदारता से सोचने की जरूरत है। भारत में रहने वाले सभी लोगों को वे हिन्दू बताते हैं। सबका डीएनए तक एक बता चुके हैं। वे मानते हैं कि मुसलमानों तक के पूर्वज श्री राम हैं।

कहने की जरूरत नहीं कि बाकी धर्म के लोगों के भी पूर्वज उनकी सोच में श्री राम ही होंगे। ईसाई, यहूदी, पारसी जैसे धर्म के लोगों के बारे में थोड़ा संकोच वे रखते हैं। कहते हैं कि जिनके भी पूर्वज भारत के हैं (नहीं भी हो सकते हैं), वे श्री राम की संतान हैं।

मोहन भागवत इतनी ऊंची सोच रखते हैं तभी तो ‘अखण्ड भारत’ तक वे सोच पाए हैं। उन्होंने भारत के आगे ‘अखण्ड’ शब्द ही तो जोड़ा है- ‘अखण्ड भारत’। इसका दूसरा मतलब है एकजुट भारत जो आज खण्ड-खण्ड है। भला कश्मीर के बगैर भी ‘अखण्ड भारत’ हो सकता है? वैसे, कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर भी अखण्ड नहीं हो सकता।

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‘अखण्ड भारत’ का मतलब

गलती उन लोगों की है जिन्होंने सोच लिया कि अखण्ड भारत का मतलब कम से कम पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत भारत तो है ही। वे सोचने लगे कि पाकिस्तान की आबादी 23 करोड़, बांग्लादेश की 17 करोड़ और भारत की 140 करोड़ मिलाकर 180 करोड़ की जनसंख्या वाला भारत जब खड़ा होगा तो दुनिया देखती रह जाएगी। उस अखण्ड भारत में हर तीसरा व्यक्ति मुसलमान होगा। 

बीते 3 अप्रैल को ही एक अन्य ‘विद्वान’ महंत यति नरसिंहानन्द सरस्वती ने अगले 7, 12 या 17 सालों में मुसलमान प्रधानमंत्री बनने की संभावना जताते हुए कहा कि अगर ऐसा हुआ तो 50 प्रतिशत हिंदू धर्मांतरित हो जाएंगे। 40 प्रतिशत मारे जाएंगे और शेष 10 प्रतिशत अगले 20 साल तक शिविरों में या फिर अन्य देशों में शरणार्थी बनकर रहेंगे।

Mohan Bhagwat Akhand Bharat statement - Satya Hindi

सनातनियों ने क्यों स्वीकारा ‘हिंदू’ संबोधन?

मोहन भागवत हिन्दुओं के लिए इतना बुरा नहीं सोच सकते। वे कहते हैं कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है। लेकिन, सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र क्यों है? सनातनियों को हिंदू नाम किसने दिया? सनातनियों ने हिंदू नाम को क्यों स्वीकार कर लिया? 

चलिए मोहन भागवत जी की सहूलियत के लिए यह सोच लेते हैं कि अगर सनातनियों ने हिंदू कहलाना स्वीकार कर लिया तो यह भी स्वीकार कर लेंगे कि सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र है। मगर, जो सनातनी धर्म में नहीं हैं वे क्या करेंगे? उनके लिए मोहन भागवत क्या सोच रहे हैं?

मोहन भागवत ने अहिंसा की बात की है लाठी लेकर। उन्होंने कहा है- “हमारे मन में कोई द्वेष, शत्रुता भाव नहीं है लेकिन दुनिया शक्ति को ही मानती है तो हम क्या करें।” यहां भी आप जल्दबाजी ना करें- मोहन भागवत दूसरों के लिए गलत सोच नहीं सकते। थोड़ा ध्यान दीजिए। वे आगे कहते हैं कि ‘अखण्ड भारत’ ताकत से नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के जरिए संभव है! 

भागवत प्रवचन से पसोपेश में संघी

ओ माई गॉड। इतना धैर्य, इतनी ऊंची सोच! भारत की धरती से निकला बौद्ध धर्म जापान, चीन, म्यांमार, श्रीलंका कहां-कहां नहीं पहुंचा। तो, सनातन धर्म सनातन तरीके से अपने ही दिल के टुकड़ों के पास क्यों नहीं पहुंच सकता! आखिर वे भी कभी हमारी काया का हिस्सा थे। सनातनी आवरण में ढंके थे। डीएनए एक है तो एक बार फिर वे सनातनी क्यों नहीं हो सकते? सनातनी और खासकर आरएसएस के लोग भी भिक्षुक बनकर अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करेंगे।

अब तक आरएसएस से जुड़े लोग यह कहकर सनातनी संस्कृति का मजाक उड़ाया करते थे कि हमारी सहिष्णुता ने हमसे अफगानिस्तान ले लिया, पाकिस्तान-बांग्लादेश ले लिया और अपने ही देश में लगातार सनातनी अल्पसंख्यक होते चले जा रहे हैं। ऐसे में मोहन भागवत के हिम्मत की हम दाद क्यों नहीं दे सकते। उन्होंने पूरे दम-खम के साथ कहा है कि एक हजार साल तक भारत के सनातन धर्म को समाप्त करने के प्रयास लगातार किए गये। वे मिट गये पर हम और सनातन धर्म आज भी वहीं हैं।

Mohan Bhagwat Akhand Bharat statement - Satya Hindi

द्विराष्ट्र के सिद्धांत से तौबा?

मोहन भागवत के साथ उदारता से सोचते हुए यह पूछना बहुत जरूरी हो गया लगता है कि द्विराष्ट्र का सिद्धांत क्या आरएसएस ने छोड़ दिया है? अगर, नहीं तो अखण्ड भारत में यति नरसिंहानन्द का बताया खतरा हिन्दुओँ को लील ले जा सकता है। फिर आपकी बात गलत हो जाएगी कि मिट गये हमें मिटाने वाले। हमारे लिए यह बहुत आसान है कि हम यति नरसिंहानन्द को गलत ठहराते हुए मोहन भागवत को सही ठहराएं।

मोहन भागवत के साथ रहकर हम उदारता से सोचें तो ‘अखण्ड भारत’ का सपना पूरा हो सकता है। द्विराष्ट्र के सिद्धांत को छोड़ने से आरएसएस खत्म तो नहीं हो जाएगा। बल्कि, मुसलमानों के बीच भी आरएसएस की शाखाएं खुल जाएंगी। पाकिस्तान, बांग्लादेश हर जगह शाखाएं ही शाखाएं होंगी। मोहन भागवत सबके प्रमुख होंगे। संभव है कोई श्रीकृष्ण भागवत भी इस भूमिका में नज़र आएं। 

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…तो हिन्दू-मुसलमान रह सकते हैं साथ-साथ!

द्विराष्ट्र के सिद्धांत को छोड़ने का मतलब यह मान लेना है कि हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ रह सकते हैं। हर तीसरा व्यक्ति अगर अखण्ड भारत में मुसलमान होगा तो बाकी दो व्यक्तियों के लिए न डरने वाली बात होगी, न लड़ने वाली बात। मोहन भागवत के उदार व्यापक दूरदर्शी संदेशों को समझिए। आने वाले समय में ऐसे और भी संदेश सामने आ सकते हैं। 

बस मोहन भागवत नहीं बोलेंगे तो आज देश में फैलती नफरत पर, अपनी ही जनता पर जुल्म कर रही सत्ता पर और कानून हाथ में ले रहे नामुराद कट्टरपंथी ताकतों पर। मोहन भागवत जी ऊंचा सोचते रहते हैं लेकिन नीचे देखते नहीं। इसके जो ख़तरे हैं क्या उन्हें देख पा रहे हैं हम?

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प्रेम कुमार
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