loader

मोदी के नाम पर स्टेडियम का नामकरण लोगों को गुलाम बनाने की कोशिश?

गुजरात के अहमदाबाद में भारत और इंग्लैंड के बीच क्रिकेट मैच हुआ। मैच शुरू होने से पहले जो घटनाएं घटीं, वह भविष्य में याद की जाती रहेंगी लेकिन नकारात्मक उल्लेख के साथ। देश के पहले गृह मंत्री, किसान नेता, लौहपुरुष और सरदार के नाम से विख्यात वल्लभ भाई पटेल से जिस स्टेडियम की पहचान थी उसे ख़त्म कर दिया गया। 

न तो वल्लभ भाई पटेल ने कभी कहा था कि उनके नाम पर स्टेडियम बनाया जाए और न ही नाम मिटाते वक्त उनकी सहमति का कोई सवाल पैदा होता है। 

आखिर हमने अपने देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के साथ ऐसा क्यों किया? इंग्लैंड के साथ मैच शुरू होने से पहले ही ऐसा क्यों किया, यह और भी महत्वपूर्ण सवाल है। जी हां, इंग्लैंड जिनकी गुलामी उखाड़ फेंकने के 74 साल होने जा रहे हैं। 

ताज़ा ख़बरें

क्रिकेट के मैदान पर इंग्लैंड को हमने अलग-अलग तरीके से जवाब दिया है। यहां तक कि फिल्म के जरिए भी ‘लगान’ वसूली हमने क्रिकेट खेल के बहाने की थी। भारत के सदाबहार सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने लॉर्ड्स में इंग्लैंड के खिलाफ शतक लगाकर टेस्ट क्रिकेट से अपने रिटायरमेंट का एलान किया था। जबकि, लॉर्ड्स में इंग्लैंड को हराकर नेटवेस्ट ट्रॉफी जीतने के बाद सौरव गांगुली ने अपनी शर्ट खोलकर उसे लहराया था। 

आज़ादी के आंदोलन का अपमान

ये घटनाएं इंग्लैंड के साथ अपने गुलामी की अतीत को जवाब देने वाली घटनाएं हैं, गौरव के क्षण हैं, जिन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। लेकिन, 24 फरवरी को जो हुआ वह इंग्लैंड का नहीं इंग्लैंड के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन के नेतृत्व का अपमान है। 

भारत-इंग्लैंड टेस्ट मैच से पहले देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्टेडियम का उद्घाटन किया। गृह मंत्री अमित शाह की ओर से एलान हुआ कि स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम होगा। मतलब यह कि देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर जो स्टेडियम था वह अतीत हो गया। वर्तमान गृह मंत्री की ओर से दिवंगत गृह मंत्री का यह अजीबोगरीब तरीके से किया गया सम्मान है! 

देखिए, इस विषय पर टिप्पणी-
एक ऐसी परंपरा पनप रही है जिसमें खुद ‘नरेंद्र मोदी स्टेडियम’ भी आगे सुरक्षित रहेगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता। अभी इस किस्म के दावे करना आपको चौंका सकता है लेकिन इस दावे के पीछे भी अतीत की प्रवृत्तियां ही हैं। वैश्विक स्तर पर रूसी नेता लेनिन से अधिक लोकप्रिय नेता का उदाहरण नहीं मिलता, जिनकी लाश आज भी सुरक्षित है। मगर, मूर्ति? मूर्ति को जमींदोज होते दुनिया ने देखा है। लेनिनग्राद का नाम भी बदला जा चुका है।

24 फरवरी को अहमदाबाद में वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम का नाम ही नहीं बदला गया। कई अन्य घटनाएं भी घटीं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकेगा। जैसे- नरेंद्र मोदी स्टेडियम का उद्घाटन, वल्लभ भाई स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स का श्रीगणेश, क्रिकेट मैदान के बीचों-बीच ‘रिलायंस एंड’ और ‘अडानी एंड’। 

narendra modi stadium in ahmedabad - Satya Hindi

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते ही नरेंद्र मोदी ने मोटेरा स्टेडियम को लेकर एक सपना देखा था- यह बात दुनिया को बतायी गयी। वह सपना सच हुआ, यह भी हमने जाना। वल्लभ भाई स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के तौर पर क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों के आयोजन भी संभव हुए हैं, 400 स्कूलों के बच्चे इस स्टेडियम से जुड़ सकेंगे। ऐसी ही अनन्य खासियत भी बतायी गयी हैं। 

मगर, क्या नरेंद्र मोदी ने ऐसा सपना देखा था कि वे वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम से पटेल का नाम हटाकर अपना नाम जोड़ लेंगे? नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर अपने इस सपने को अंजाम देंगे, क्या उन्होंने कभी ऐसा सोचा होगा? हममें से कोई यकीन नहीं कर सकता कि ऐसा बहुत साल पहले सोच लिया गया होगा।

क्रिकेट के मैदान पर गेंदबाजी के छोर पर प्रायोजकों के नाम लिखे जाने की परंपरा तो हमने देखी और सुनी है। मगर, किसी क्रिकेट स्टेडियम के दोनों गेंदबाजी छोर को हमेशा के लिए उद्योग और उद्योगपति के नाम कर देने का वाकया पहली बार देखा-सुना गया है।

रिलायंस और अडानी एंड

एक छोर अंबानी की कंपनी के नाम से ‘रिलायंस एंड’ कहलाएगा तो दूसरा गौतम अडानी के नाम पर ‘अडानी एंड’ कहा जाएगा। ऐसा उस स्टेडियम में हुआ है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर जाना जाएगा और जहां दर्शकों की क्षमता 1,32,000 होगी जो कोलकाता के ईडन गार्डन से सबसे बड़े स्टेडियम का रुतबा छीन लेगी। 

सवाल यह है कि क्या हिन्दुस्तान के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम के दोनों छोरों के नाम नीलाम किए गये थे? क्या प्रायोजन संबंधी प्रोटोकॉल के अनुरूप ऐसा किया गया है? 

अगर ऐसा है तो इसकी कोई मियाद भी होगी। एक साल, दो साल, दस साल...आखिर कब तक रिलायंस और अडानी के नाम पर क्रिकेट के छोर बने रहेंगे और हमारे कमेंटेटर क्रिकेट की कमेंट्री करते समय मंत्र की तरह उनका उच्चारण करते रहेंगे? इससे क्रिकेट को क्या फायदा होगा?

देश भर में चर्चा 

यह पूरा वाकया गुजरात में ज़रूर हुआ है मगर असर देश के हर हिस्से ने इसे महसूस किया है। जिनके नाम पर स्टेडियम था वे सरदार वल्लभ भाई पटेल गुजराती थे, जिनके नाम पर स्टेडियम जाना जाएगा वे नरेंद्र मोदी गुजराती हैं। वर्तमान गृह मंत्री भी गुजराती हैं जिन्होंने देश के पहले गृह मंत्री के नाम की जगह नये नाम से स्टेडियम के नामकरण  की घोषणा की। रिलायंस और अडानी नाम की दोनों कंपनियां भी गुजरात में कारोबार करती हैं जिनके नाम से क्रिकेट के दोनों छोर आगे से जाने जाएंगे।

विचार से और ख़बरें

‘हम दो, हमारे दो’ की सरकार 

राहुल गांधी ने इसी बजट सत्र में कहा था कि देश में ‘हम दो, हमारे दो’ की सरकार चल रही है। गुजरात के वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम पर वह जुमला जीवंत दिखा। ‘हम दो’ अगर मोदी-शाह हैं तो इसमें से एक व्यक्ति नाम से और दूसरा सशरीर इस अवसर पर मौजूद था। 

‘हमारे दो’ अगर अंबानी-अडानी हैं तो उनकी उपस्थिति भी स्थायी रूप से गेंदबाजी छोरों के नाम बनकर दिखायी पड़ी। अफसोस की बात यह रही कि गवाह हमने उन्हीं अंग्रेजों को बनाया जिन्हें हमने 1947 में मार भगाया था। यह गवाही धीरे-धीरे आज़ाद हो रही हमारी गुलाम मानसिकता को दीर्घजीवी बना गयी है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रेम कुमार
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें