बीते गणतंतत्र दिवस को ‘भारत का संविधान’ लागू हुए 70 साल पूरे हो गए हैं। इस ख़ास मौक़े पर लोकसभा सचिवालय ने इस साल अपने कैलेंडर का विषय संविधान रखा है। कैलेंडर के हर पेज पर संविधान की ख़ूबियों का ज़िक्र है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि संविधान पर आधारित इस कैलेंडर पर संविधान की आत्मा समझी जाने वाली इसकी प्रस्तावना पूरी तरह ग़ायब है। ऐसा ग़लती से हुआ या फिर जानबूझ कर प्रस्तावना को कैलेंडर पर नहीं छापा गया है? यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है।
लोकसभा के कैलेंडर 2020 से क्यों ग़ायब है संविधान की प्रस्तावना?
- विचार
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- 29 Jan, 2020

लोकसभा सचिवालय के 2020 के कैलेंडरमें इस बार संविधान की प्रस्तावना को जगह नहीं दी गई है। इसे लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द तो कारण नहीं!
दरअसल, मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बदल कर उसे ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। संविधान की प्रस्तावना देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को हर हाल में बहाल रखने की गारंटी देती है। मौजूदा सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द पर ही आपत्ति रही है। वे इसकी जगह ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द इस्तेमाल करते हैं। संविधान के मुताबिक़, इसकी प्रस्तावना को अब न बदला जा सकता है और न ही इसमें कुछ जोड़ा या घटाया जा सकता है। क्या इसी की वजह से संविधान केंद्रित कैलेंडर को इसकी आत्मा के बग़ैर ही छाप दिया गया है?