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'कभी (केजरीवाल, केसीआर, नायडू आदि) जेल हुई तो उनके पक्ष में एक भी शब्द नहीं बोलूँगा'

पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव और लंबे समय तक नज़रबंदी में रहने के बाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहली बार अपनी पीड़ा व्यक्त की है। वह अनुच्छेद 370 और 35ए पर उतने व्यथित नहीं हैं जितने कि इस पूरे मामले में देश के दूसरे हिस्सों में राजनीतिक दलों और नेताओं के रवैये से हैं। वह कहते हैं कि जब वह मुश्किल में थे, जेल हुई तो किसी ने आवाज़ नहीं उठाई, लेकिन यदि अब उन नेताओं के साथ ऐसा हुआ तो वह भी कभी एक शब्द भी नहीं बोलेंगे। उन्होंने इस दौरान अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं का नाम भी लिया। आख़िर उमर अब्दुल्ला इनसे किस बात को लेकर इतने ज़्यादा नाराज़ हैं और उन्हें यह बात इतनी ज़्यादा क्यों कचोट रही है?

पिछले साल अगस्त में जब अनुच्छेद 370 में बदलाव किया गया था तब राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। इसके बाद से इंटरनेट के साथ ही परिवहन-व्यवस्था व दूसरी सेवाओं पर कई पाबंदियाँ लगाई गई थीं। राजनेताओं सहित सैकड़ों लोगों को नज़रबंद किया गया। बाद में पाबंदियों में धीरे-धीरे ढील दी गई। कई नेता अब भी नज़रबंद हैं। हिरासत और फिर राजनीतिक नज़रबंदी में रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को 24 मार्च को रिहा किया गया था। 

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जम्मू कश्मीर में पिछले 11 महीने से जो राजनीतिक हालात हैं, उस पर उमर अब्दुल्ला ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को इंटरव्यू दिया है। यह पहली बार है जब 5 अगस्त के बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर खुलकर बात रखी है। एक दिन पहले ही उन्होंने एक लेख लिखकर कहा था कि ‘जब तक जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है तक तक मैं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ूँगा।’ उस लेख में उन्होंने अनुच्छेद 370 व 35ए और राज्य को दो भागों में बाँटने पर ग़ुस्सा ज़ाहिर किया था। इस इंटरव्यू में भी वह इस ग़ुस्से के कारण को विस्तार से बताते हैं। 

अब्दुल्ला कहते हैं कि बीजेपी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए पर जिस तरह का माहौल खड़ा किया उससे इसका समर्थन करने में दूसरे दलों की मजबूरी तो फिर भी समझ में आती है। वह इसके लिए दो कारण बताते हैं। एक तो अनुच्छेद 370 और 35ए पर बीजेपी द्वारा बनाए गए माहौल से दूसरे दलों का विरोध करना मुश्किल हो गया था और दूसरा कि उन दलों को जम्मू-कश्मीर और इन अनुच्छेदों के बारे में उनको समझ नहीं है। वह कहते हैं कि उन दलों को यह तर्क वाजिब लगता होगा कि जम्मू-कश्मीर को देश के बाक़ी हिस्सों की तरह होना चाहिए और एक देश में दो प्रणालियाँ क्यों होनी चाहिए?

इसके बाद नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता बताते हैं कि उनकी नाराज़गी आख़िर किस बात को लेकर है। वह कहते हैं, ‘मैं 35A और 370 पर बीजेपी को उनके समर्थन के बारे में कम नाराज़ हूँ, लेकिन मैं यूटी (केंद्र शासित प्रदेश) और विखंडन (राज्य के) पर उनके समर्थन के बारे में ज़्यादा नाराज़ हूँ, क्योंकि उन्हें उस पर बीजेपी को समर्थन देने की ज़रूरत नहीं थी।’

उमर कहते हैं कि राज्य को दो हिस्सों में बाँटना कभी भी बीजेपी के एजेंडे का हिस्सा नहीं था और यह विशुद्ध रूप से जम्मू-कश्मीर को 'दंडित' करने के लिए किया गया था। वह कहते हैं कि यह लोगों को दंडित और अपमानित करने के लिए किया गया और इसके लिए कोई अन्य कारण नहीं था।

इसके लिए तो वह कई पार्टियों और नेताओं का नाम लेकर इसके लिए आलोचना करते हैं। वह आम आदमी पार्टी व इसके नेता अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस और चंद्रबाबू नायडू का ज़िक्र करते हैं। उमर कहते हैं कि जो अरविंद केजरीवाल हर रोज़ बीजेपी से लड़ते दिखते थे उन्हें अब बीजेपी के साथ कोई दिक्कत होती हुई नहीं लगती है। दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की माँग का ज़िक्र करते हुए वह कहते हैं कि जिसके लिए केजरीवाल लेफ़्टिनेंट गवर्नर से लड़ते रहे हैं वह जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने का समर्थन कर ख़ुश हैं। 

वह कहते हैं कि राज्य के दर्जे के लिए लड़ाई लड़ने वाले टीआरएस ने एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने पर बीजेपी का ख़ुशीपूर्वक समर्थन किया। 

चंद्रबाबू नायडू पर ग़ुस्सा क्यों?

इंटरव्यू में उमर अब्दुल्ला सबसे ज़्यादा जिस नेता से व्यथित नज़र आए वह हैं चंद्रबाबू नायडू। वह अपने पिता फारूक अब्दुल्ला और चंद्रबाबू नायडू के बीच रिश्ते का ज़िक्र करते हैं। वह कहते हैं कि उनके पिता अपने लोकसभा चुनाव को छोड़कर चंद्रबाबू नायडू के लिए प्रचार करने गए, वह भी तब जब यह लग रहा था कि नायडू हार रहे थे। वह कहते हैं कि ऐसा माना जा रहा था कि जगन मोहन रेड्डी चुनाव जीतने जा रहे थे फिर भी उनके पिता ने चंद्रबाबू नायडू के लिए प्रचार किया और फिर भी उस आदमी ने समर्थन में एक शब्द भी नहीं बोला। 

इस बीच उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि यह शायद पहली बार था राजनीतिक रूप से मुझे लगा कि हम बिल्कुल अकेले हैं।

उमर कहते हैं, ‘जब उन लोगों को ख़ुद के लिए ज़रूरी था तो वे हमारा समर्थन पाने पर ख़ुश थे, लेकिन वे हमारी तकलीफों में शामिल नहीं हुए। ईमानदारी से, अब मैं उनमें से किसी के लिए खड़ा नहीं होऊँगा। उनमें से एक के लिए भी नहीं। मैं उनमें से किसी के लिए प्रचार नहीं करूँगा, मैं उनमें से किसी का भी समर्थन नहीं करूँगा और ख़ुदा न करे किसी को भी जेल हुई तो मैं उनके लिए एक शब्द भी नहीं बोलूँगा, क्योंकि वे तब नहीं बोले जब यहाँ के लोग पीड़ित थे।’

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उमर अब्दुल्ला कहते हैं, जब कश्मीरी बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे, व्यापारी दुकानें नहीं खोल पा रहे थे, जब पर्यटक हटाए गए तो रातोरात बस और होटल खाली कराए गए थे, बिना किसी कारण लोगों को जेलों में ठूँसा जा रहा था तब इन लोगों की आवाज़ चली गई थी। वह कहते हैं, ‘ख़ुदा न करे यदि कुछ ऐसा ही उनके साथ होता है तो मेरी आवाज़ भी चली जाएगी। मेरा उनसे कोई लेनादेना नहीं है। बस। मैं जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए बोलूँगा और किसी के लिए नहीं।’

अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल किए जाने की माँग के सवाल पर उमर कहते हैं कि लोग उनसे पूछते हैं कि वह क्यों न 370 की बहाली की माँग करते हैं। उमर कहते हैं, ‘अरे भाई, किससे डिमाँड करूँ? जिन्होंने लिया उन्हीं से मैं उम्मीद करूँ कि वो वापस दे देंगे। तब तो फिर लोगों को मूर्ख बनाना हुआ कि आप को ख़ुश करने के लिए मैं डिमाँड कर रहा हूँ, ये जानते हुए भी कि डिमाँड करने से मिलना कुछ नहीं है।’

सड़कों के विरोध के सवाल पर वह कहते हैं कि वह ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि इसका कुछ हासिल नहीं होता है। वह कहते हैं, ‘मैं अपनी आवाज़, अपनी पार्टी के मंच, अदालतों और जो कुछ भी मैं उपयोग कर सकता हूँ उसका उपयोग करूँगा लेकिन मैं विरोध-प्रदर्शन (सड़कों पर प्रदर्शन) नहीं करूँगा।’ वह कहते हैं कि ऐसे विरोध-प्रदर्शन से ग़रीब युवाओं के लिए तबाही आएगी। उमर कहते हैं,

मैंने पहले भी यह कहा है, अगर मैं अपने बच्चों के हाथों में एक पत्थर या बंदूक़ रखने के लिए तैयार नहीं हूँ, तो मेरे पास किसी भी युवा कश्मीरी के लिए ऐसा करने का कोई हक नहीं है। मैं उस पर बहुत स्पष्ट हूँ।


उमर अब्दुल्ला

वह कहते हैं, ‘इसलिए अगर जम्मू और कश्मीर के लोग मेरी तरफ़ एक ऐसे व्यक्ति की तरह देख रहे हैं जो उन्हें सड़कों पर लेकर प्रदर्शन करेगा और भगवान न करे उनमें से कुछ मारे जाएँ तो मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ, मैं ऐसा नहीं करूँगा। जो कुछ हुआ है उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाऊँगा। जो हुआ है उसके ख़िलाफ़ लड़ूँगा लेकिन मैं किसी बंदूक़ लिए वर्दी वाले को यह कारण नहीं दूँगा कि वह हम में से किसी को मारे। वह मैं नहीं हूँ।’

(इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू पर आधारित।) 

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क़मर वहीद नक़वी
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