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फ़ोटो क्रेडिट - @BJPRamMadhav

नड्डा की टीम में राम माधव क्यों नहीं?, अमित शाह के करीबियों पर भी चली कैंची

राष्ट्रीय स्तर पर 12 उपाध्यक्षों में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे और छत्तीसगढ़ के तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को फिर से शामिल करके संकेत दिया गया है कि अब उन्हें राज्य की राजनीति का मोह छोड़ना ही होगा। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास भी इस टीम में शामिल हैं। पिछले दिनों राजस्थान में कांग्रेस के सियासी संकट के वक्त वसुंधरा राजे की भूमिका पर काफी चर्चा रही थी। 
विजय त्रिवेदी

बीजेपी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने आखिर आठ महीने बाद अपनी नई टीम का एलान कर दिया। कोरोना काल की वजह से यह लगातार टलता जा रहा था। अप्रैल में और फिर श्राद्ध शुरू होने से पहले भी टीम की घोषणा की जाने वाली थी लेकिन यह टल गई थी। 

टीम में सबसे बड़ा फेरबदल संघ से बीजेपी में आए और ताकतवर महासचिव रहे राम माधव की गैर मौजूदगी है। माधव जब से संघ से बीजेपी में आए हैं, तब से उनकी भूमिका अहम रही है। उत्तर-पूर्व में पूरा राजनीतिक नक्शा बदलने और फिर जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी की सरकार बनाने का सेहरा उनके सिर ही बांधा जाता रहा है। 

बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले अमेरिकी दौरे में मेडिसन स्क्वायर पर हुआ शानदार कार्यक्रम माधव के दिमाग की उपज थी। माधव चीन के विशेषज्ञ माने जाते हैं।

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तेजस्वी सूर्या को बड़ी जिम्मेदारी

ख़ैर, पहले बात करते हैं नई टीम की। इस नई टीम में नड्डा ने युवा चेहरों को जगह देने के साथ-साथ ज्यादातर राज्यों को नुमाइंदगी देने का काम किया है। इसके साथ ही मुखर बोलने वालों को महत्ता मिली है। इसमें सबसे ऊपर नाम है कर्नाटक से युवा सासंद तेजस्वी सूर्या का, जिन्हें युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। 

सूर्या अपने धारदार और विवादास्पद बयानों की वजह से बहुत जल्दी सुर्खियों में आ गए थे। साथ ही पिछले काफी समय से युवा मोर्चा एक औपचारिक संगठन के तौर पर काम कर रहा था क्योंकि केन्द्र और बहुत से राज्यों में सरकारें आने के बाद प्रदर्शन और आंदोलनों के लिए उसकी ज़रूरत नहीं रह गई थी।

स्वास्थ्य की तकलीफ के बावजूद अनिल बलूनी को मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता की ज़िम्मेदारी पर रखा गया है और बिहार चुनावों को खासतौर से ध्यान में रखते हुए दो प्रमुख नेता शाहनवाज़ हुसैन और राजीव प्रताप रूडी को भी राष्ट्रीय प्रवक्ता की टीम में रखा गया है। 23 लोगों की इस टोली में सुधांशु त्रिवेदी और संबित पात्रा भी हैं। शाहनवाज और रूडी का काफी समय से प्रभावी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था। दोनों ही नेता केन्द्र में मंत्री रह चुके हैं। 

पंकजा मुंडे बनीं राष्ट्रीय सचिव 

कांग्रेस से बीजेपी में आए टॉम वडक्कन को पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया है। महाराष्ट्र को जगह देते हुए गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है जबकि आंध्र प्रदेश से एनटी रामाराव की बेटी पुरुन्देश्वरी को और असम से सांसद दिलीप सैकिया को महासचिव बनाया गया है। 

पंजाब में अकालियों के सरकार का साथ छोड़ने के बाद वहां से तरूण चुघ को भी राष्ट्रीय महासचिव की ज़िम्मेदारी मिली है। लेकिन राम माधव के साथ अमित शाह की टीम के दो ताकतवर लोग मुरलीधर राव और अनिल जैन भी अब इस टीम में नहीं दिखेंगे।

लेकिन शाह के विश्वस्त माने जाने वाले भूपेन्द्र यादव, अरुण सिंह और कैलाश विजयवर्गीय आठ महासचिवों की टीम में सबसे ऊपर हैं। कैलाश विजयवर्गीय अभी पश्चिम बंगाल में पार्टी की ताकत बढ़ाने में लगे हैं जबकि भूपेन्द्र यादव को यूपी, राजस्थान और कई राज्यों के बाद बिहार में फिर से सरकार बनाने की जिम्मेदारी मिली हुई है। भूपेन्द्र यादव सबसे चुपचाप तरीके से काम करने वाले नेताओं में से एक हैं।

वसुंधरा, रमन सिंह के लिए संदेश 

राष्ट्रीय स्तर पर 12 उपाध्यक्षों में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे और छत्तीसगढ़ के तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को फिर से शामिल करके संकेत दिया गया है कि अब उन्हें राज्य की राजनीति का मोह छोड़ना ही होगा। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास भी इस टीम में शामिल हैं। पिछले दिनों राजस्थान में कांग्रेस के सियासी संकट के वक्त वसुंधरा राजे की भूमिका पर काफी चर्चा रही थी। 

जेपी नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद बने हालात पर देखिए, वीडियो- 

बीजेडी से बीजेपी में आए बैजयंत पांडा को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। अरसे बाद पार्टी को नया कोषाध्यक्ष मिला है। इससे पहले पीयूष गोयल और उनके पिता वेद प्रकाश गोयल लंबे समय तक यह जिम्मेदारी निभाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश से आने वाले राजेंद्र अग्रवाल को यह जिम्मेदारी मिली है। 
शांत स्वभाव और मीठी मुस्कान वाले नड्डा को लेकर हमेशा यह सवाल उठते रहे हैं कि क्या वो पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह की छाया से निकल पाएंगे?

नड्डा के कार्यकाल में बीजेपी की पुरानी सहयोगी अकाली दल उसका साथ छोड़ चुकी है। महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाने के बाद अब सबकी नज़र इस बात पर भी है कि क्या बिहार में बीजेपी जेडीयू के बिग ब्रदर की भूमिका में आ पाएगी? 

नड्डा का असली इम्तिहान तो अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनावों में होना है और फिर 2022 में यूपी में फिर से मजबूत सरकार बनवाना भी एक चुनौती है। बीजेपी में ज्यादातर लोग कहते हैं कि नड्डा की चुप्पी को उनकी कमज़ोरी नहीं ताकत समझिए, उनकी चाल से नहीं निशाने से शोर होता है। 

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