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प्रतीकात्मक तसवीर।

कोरोना संकट: पंजाब में कहीं लाठीचार्ज तो कहीं खुदकुशी             

22 मई को विभिन्न संगठनों की ओर से देशव्यापी रोष-प्रदर्शन के तहत पंजाब के भी 16 जन-संगठनों ने समूचे राज्य में जबरदस्त प्रदर्शन किए और धरने दिए। घर वापसी के लिए आतुर प्रवासी मजदूरों पर पुलिस ने कई जगह लाठीचार्ज किया। सूबे की पुलिस अब सड़कों पर आए मजदूरों के ख़िलाफ़ जालिमाना पैंतरे अपना रही है। 

दो महीनों के भयावह संकट के बाद पंजाब में मौजूद ज्यादातर प्रवासी मजदूर किसी भी सूरत में अपने मूल राज्यों को लौट जाना चाहते हैं। हालांकि उद्योगपति, किसान और सरकार उनकी रोजी-रोटी के लिए उन्हें आश्वस्त करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।                

22 मई को हुए रोष-प्रदर्शन में एक स्वर में कहा गया कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कोरोना वायरस संकट को बहाना बनाकर मजदूर जमात पर तीखा हमला किया है। 8 घंटे के बजाए 12 घंटों की दिहाड़ी लागू करना श्रम कानूनों की खुली हत्या है और मानवता के साथ बहुत बड़ी ज्यादती।

आरोप लगाया गया कि पंजाब में भी 12 घंटे काम की नीति लागू करने की तैयारी हो रही है। सरकारें राहत देने के बजाए संकट को और ज्यादा गंभीर बना रही हैं और लॉकडाउन अब दमन का हथियार हो गया है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि लॉकडाउन ने पुलिसिया अत्याचारों, नाजायज गिरफ्तारियों, भुखमरी, हादसों और आत्महत्याओं के नए रास्ते खोले हैं और केंद्र और राज्य सरकार अवाम की असली दिक्कतों की तरफ पीठ किए हुए है।

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जालंधर, लुधियाना में पुलिसिया जुल्म

जब सूबे के अलग-अलग हिस्सों में मजदूरों की जमात के हकों की हिफाजत के लिए लड़ने की गुहार की जा रही थी तो ठीक उसी वक्त दो महानगरों जालंधर और लुधियाना में पुलिस ने निहत्थे मजदूरों पर बेरहमी से लाठीचार्ज किया और वह भी बगैर किसी चेतावनी के।       

जालंधर का बल्ले-बल्ले फार्म हाउस इन दिनों घर वापसी करने वाले प्रवासी मजदूरों की पनाहगाह बना हुआ है। तकरीबन तीन हजार प्रवासी श्रमिकों ने यहां अपना डेरा बनाया हुआ है। एक मज़दूर शैलेंद्र यादव ने बताया,  “दोपहर को पुलिस ने अचानक लाठीचार्ज कर दिया। हमें तो वजह भी नहीं मालूम।" एक अन्य मजदूर अनवर खान के मुताबिक़, "शायद पुलिस हमें यहां से हटाना चाहती है और इसीलिए हमें तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया गया।" 

हालांकि जालंधर पुलिस के अधिकारी लाठीचार्ज कीइस घटना को मानने से इनकार कर रहे हैं। इसी तरह लुधियाना में भी प्रवासी मजदूरों पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज हुआ। पंजाब में कई जगह प्रवासी मजदूर पुलिसिया लाठीतंत्र के शिकार हो रहे हैं। 

सरकारी दावे हैं कि मजदूरों को लगातार खाना और कच्चा राशन मुहैया कराया जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत का जायजा लेने पर पता चलता है कि इन दावों का कोई सिर-पैर ही नहीं है।

जालंधर के पठानकोट रोड बाईपास के फ्लाईओवर के नीचे महेश कुमार महंतो अपने परिवार के सात सदस्यों के साथ बीते एक हफ्ते से बैठे हैं। परिवार के सदस्यों में दो बुजुर्ग और तीन छोटे बच्चे हैं। वह बताते हैं कि स्वयंसेवी संगठनों और गुरुद्वारों की ओर से कभी खाना मिल जाता है तो कभी भूखे ही रहना पड़ता है। उनकी छह महीने की बच्ची है, उसके लिए दूध भी नसीब नहीं होता। 

महेश के अनुसार, वह 2006 से पंजाब में हैं। रोजी-रोटी ठीक चल रही थी लेकिन अब कोरोना ने बेतहाशा बदहाल कर दिया। किसी तरह झारखंड पहुंच जाएं, फिर देखेंगे कि लौटना है या नहीं। 

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स्थानीय लोग भी बदहाल 

कोरोना वायरस प्रवासियों को ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों को भी गहरे जख्म दे रहा है। लॉकडाउन के चलते आर्थिक बदहाली के कारण मानसा जिले के बोहा कस्बे के एक नौजवान ने 22 मई को खुदकुशी कर ली। मृतक का नाम रणधीर सिंह उर्फ बिट्टू था जो सुनार का काम करता था। 

परिवार के मुताबिक़, लॉकडाउन के बाद रणधीर खाली बैठा था और उसके पिता गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। इलाज-खाने तक के लिए पैसे नहीं बचे थे, इलाज के अभाव में पिता की मौत हो गई और रणधीर गहरे अवसाद में रहने लगा। 

दुकान का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए दुकान खाली करके सामान घर ले आया था और अक्सर कहा करता था कि इन हालात में जीने की जगह खुदकुशी कर लेना बेहतर है। नहर में डूब कर उसने अपनी जान दे दी। उसके परिवार में बुजुर्ग मां, पत्नी और दो बेटियां हैं। क्या कोई भी हुकूमत इस खुदकुशी पर कुछ कह सकती है? 

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अमरीक
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