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फाइल फोटो

सोनिया गांधी के नामांकन के बाद राजस्थान कांग्रेस पर क्यों मंडरा रहा टूट का खतरा ?

राजस्थान में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव 27 फरवरी को होना है। विधानसभा में विधायकों की संख्या के हिसाब से देखे तो जो समीकरणों बैठ रहे हैं उसके मुताबिक भाजपा दो और कांग्रेस एक सीट पर चुनाव जीत सकती है। यहां से सोनिया गांधी ने अपना नामांकन दाखिल किया है। माना जा रहा है कि उनकी जीत पक्की है। 

सोनिया गांधी के नामांकन दाखिल करने के बाद राजस्थान की राजनीति में अंदर ही अंदर जोड़-तोड़ का खेल शुरु होने की बात कही जा रही है। खबर है कि राजस्थान कांग्रेस में अंदर ही अंदर मेल-मुलाकातों का दौर चल रहा है।
राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि सोनिया गांधी के राजस्थान के राज्यसभा उम्मीदवार बनने के बाद से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को यह डर सता रहा है कि भाजपा कांग्रेस के विधायकों को तोड़ सकती है। जब सोनिया गांधी ने नामांकन दाखिल किया था तब ऐसी कोई आशंका नहीं थी लेकिन अचानक से पिछले कुछ दिनों में राजनैतिक जोड़-तोड़ का खेल शुरू हो गया है। 
कांग्रेस को अपने विधायकों के टूटने का डर इस हद तक है सता रहा है कि अशोक गहलोत समेत कई वरिष्ठ नेता बागी होने की आशंका वाले विधायकों को मनाने में लगे हुए हैं। वह लगातार इनसे मुलाकातें कर रहे हैं और समझा रहे हैं कि कांग्रेस नहीं छोड़े। राजस्थान से खबर यह भी आ रही है कि राजस्थान के करीब आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल होने के लिए दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। 
अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक जिन विधायकों के भाजपा में शामिल होने की आशंका जताई जा रही है उनकी संख्या करीब 7 है। हालांकि इनके टूटने से भी सोनिया गांधी को चुनाव जीतने में कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन अब चुनाव से पहले राजस्थान कांग्रेस में टूट होती है तो यह कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है।
इससे कांग्रेस के आत्मविश्वास में भी कमी आयेगी। भाजपा ऐसा कर कांग्रेस को राजनैतिक मैदान में बैकफुट पर लाने की कोशिश कर सकती है। दूसरी तरफ अशोक गहलोत किसी भी कीमत पर कांग्रेस को राजस्थान में टूटने नहीं देना चाहते हैं। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव लड़ा था और वह ही अभी राजस्थान कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। ऐसे में राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में किसी तरह की टूट होना उनकी प्रतिष्ठा से भी जुड़ा मामला है।

राजस्थान में सोनिया गांधी को चुनाव जीतने में फिलहाल कोई खतरा इसलिए भी नहीं है क्योंकि यहां से राज्यसभा की तीन सीटों पर तीन ही प्रत्याशियों ने नामांकन करवाया है।  भाजपा से जहां चुन्नीलाल गरसिया और मदन राठौर ने नामांकन करवाया है वहीं कांग्रेस से सोनिया गांधी ने चुनाव के लिए नामांकन करवाया है । 
ऐसे में तीनों ही उम्मीदवारों के निर्विरोध चुनाव जीतने की उम्मीद है। सोनिया गांधी के खिलाफ अगर भाजपा ने उम्मीदवार उतारा होता तब चुनाव की जरूरत होती और तब कांग्रेस के सामने संकट आता लेकिन फिलहाल सोनिया गांधी के चुनाव जीतने पर कोई संकट नहीं दिख रहा।
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भाजपा कांग्रेस को राजस्थान में क्यों तोड़ना चाहती है? 

फिर सवाल उठता है कि भाजपा राजस्थान में कांग्रेस को क्यों तोड़ना चाहती है या यूं कहे कि कांग्रेस छोड़ कर आने वाले नेताओं का स्वागत करने के लिए भाजपा क्यों तैयार है। इसका जवाब राजनैतिक विश्लेषक यह देते हैं कि कांग्रेस में तोड़-फोड़ भाजपा के राष्ट्रीय एजेंडे के तहत हो रही है। 
भाजपा राजस्थान में राज्यसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को नहीं तोड़ना चाहती है बल्कि वह लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को तोड़ना चाहती है। भाजपा की कोशिश देश भर में कांग्रेस को कमजोर करना है। इसी एजेंडे के तहत राजस्थान में वह कांग्रेस को तोड़ने में लगी हुई है। अगर भाजपा की कोशिशों के कारण राजस्थान कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हो जाए तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं होगा।

कुल मिलाकर अब देखना यह है कि 27 फरवरी तक क्या राजस्थान में फिर कोई राजनैतिक खेल होता है या नहीं। जो भी हो लेकिन इतना तो दिख रहा है कि राजस्थान में भाजपा कांग्रेस को अभी और कमजोर करने की कोशिश तेजी से कर रही है। अब राजस्थान कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती यह है कि उसे अपने विधायकों को भी बचाना है और लोकसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन करना है।

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क़मर वहीद नक़वी
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