विभूति नारायण राय हिंदी के ख्यात लेखक हैं। तमाम कहानियाँ, उपन्यास और लेख उन्होंने लिखे हैं। वह उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अफ़सर रहे और हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति भी रहे। जब गुजरात में दंगे हुए थे तब उन्होंने आईपीएस कैडर के अफ़सरों को पत्र लिखकर संविधान का पालन करने की अपील की थी। जेएनयू के मसले पर उनसे सवाल कर रहे हैं शीतल पी सिंह।
जेएनयू हिंसा पर पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में क्यों है? क्यों पुलिस का बयान बार-बार बदल रहा है? पुलिस की एफ़आईआर में है कि लिखित में पुलिस को जेएनयू कैंपस में घुसने के लिए 3:45 बजे ही अनुमति मिल गई थी, फिर वह हिंसा को रोक क्यों नहीं पायी? पुलिस की एफ़आईआर और पुलिस के बयान में अंतर्विरोध क्यों है? क्या पुलिस झूठ बोल रही है? देखिए आशुतोष की बात।
जेएनयू हिंसा पर तथ्यों की पड़ताल में अब जो मामले सामने आ रहे हैं, वह क्या इशारा करते हैं? एबीवीपी पर जो ऊँगली उठाई जा रही है, वह कितना सच है? हिंसा के लिए ज़िम्मेदार कौन? छात्रों को चुन-चुन कर विशेष तौर पर हमला क्यों किया गया? देखिए शीतल के सवाल में वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के साथ चर्चा।
जेएनयू में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन पर समझौते के लिए एक फ़ॉर्मूला तैयार कर लिया गया, बातचीत हुई, सभी राजी हो गए। फिर क्या हुआ कि सबकुछ ख़त्म हो गया?
जेएनयू में आख़िर दर्जनों नकाबपोश कैसे घुसे थे? किस तरह उन्होंने छात्र-छात्राओं और शिक्षकों पर हमला किया? कौन थे वे? किस तरह उन्होंने हिंसा की? कैसे जख्म और डर के माहौल से वे गुज़रे? देखिए करंट अफ़ेयर्स एडिटर नीलू व्यास की जेएनयू से ग्राउंड रिपोर्ट।
दर्जनों नकाबपोश जेएनयू में कैसे घुसे? तीन घंटे तक हिंसा क्यों होती रही और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही? जेएनयू प्रशासन और वाइस चांसलर क्या कर रहे थे? क्या उनके ऊपर से कोई आदेश आया था? क्या यह पूरी साज़िश थी? किसके इशारे पर यह सब किया गया? देखिए शैलेश की रिपोर्ट में जेएनयू के छात्र रहे और वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश और विनोद अग्निहोत्री की चर्चा।
अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अभिजीत बनर्जी ने जेएनयू परिसर में हुए हमले पर बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए इसे नात्सीवाद की गूँज क़रार दिया है।
जेएनयू में रविवार देर शाम को जब नक़ाबपोश कैंपस में हिंसा करने उतरे तो वैसे लोगों को भी नहीं छोड़ा जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार दिव्यांग कहकर बुलाती है। नक़ाबपोशों ने गुहार लगाते दृष्टिहीन को भी नहीं छोड़ा।
जेएनयू में हिंसा हुई। दर्जनों नकाबपोशों द्वारा। तेज़ाब, लाठी, लोहे की रॉड के साथ होस्टल में घुस कर निहत्थे छात्रों और अध्यापकों पर हमला किया गया। तीन घंटे तक। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस, केन्द्रीय सरकार की शह के बिना यह संभव है? क्या इस हिंसा के लिए साज़िश रची गई। देखिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शीतल पी सिंह की चर्चा।
जेएनयू में रविवार रात को नकाबपोशों द्वारा घातक हमले के बाद पुलिस ने दावा किया है कि कुछ नकाबपोशों की पहचान की गई है। हालाँकि अभी तक एक की भी गिरफ़्तारी नहीं हो पाई है।